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सितारा देवी : रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जिन्हें कहा था कत्थक क्वीन

हमें फॉलो करें सितारा देवी : रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जिन्हें कहा था कत्थक क्वीन
, सोमवार, 8 नवंबर 2021 (14:05 IST)
Photo : Twitter
सितारा देवी पर निर्माता राज सी आनंद ने बायोपिक बनाने की घोषणा की है। प्री-प्रोडक्शन का काम शुरू हो चुका है और यह पूरा होते ही कलाकारों का चयन शुरू होगा। सितारा देवी के बेटे और संगीतकार रंजीत बारोट इस काम में टीम की मदद भी कर रहे हैं। कौन है सितारा देवी? जानिए: 
 
कत्थक नृत्यांगना सितारा देवी जैसी प्रतिभावान नर्तकी बहुत कम होती है। नृत्यकला के सहारे उन्होंने विश्व ख्याति अर्जित की थी। दूध के दांत भी ठीक से नहीं निकल पाए थे कि पांच साल की कच्ची उम्र में उन्होंने नृत्य करना शुरू कर दिया था। सोलह साल की उम्र में उन्हें कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 'कत्थक क्वीन' खिताब से विभूषित किया। 
 
1971 में सितारा ने लगातार बारह घंटे नृत्य कर दर्शकों को मोह लिया। नृत्य के प्रति उनकी साधना, त्याग और समर्पण के कारण ही वे लोकप्रिय हो सकीं। 1971 में उन्हें पद्मश्री से अलंकृति किया तथा खैरागढ़ विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी। उन्होंने विद्यापीठ से नृत्य विलास खिताब प्राप्त किया। 
 
बनारस घराने की इस नृत्यांगना के पिताजी पंडित सुखदेव महाराज वाराणसी दरबार के राजगुरु थे। वे संगीतकार भी थे। उनकी मां मत्स्यकुमारी नेपाल की थीं। सितारा ने अट्ठट्ठन, शंभू और बिरजू महाराज से नृत्य की शिक्षा ली। सितारा के पिता को इस बात से चिढ़ थी कि नृत्य को नवाब और महाराजा के मनोरंजन का साधन समझा जाता है। 
 
उनके पिता ने निर्णय कर लिया कि वे नृत्य कला को सम्मानजनक बनाएंगे। जब उन्होंने पांच साल की नन्ही सितारा को नृत्य कला सिखाना शुरू किया तो उनका तीव्र विरोध हुआ। उनके पिता विरोध से घबराए नहीं। दस साल की उम्र तक आते-आते सितारा नृत्य में काफी निपुण हो चुकी थी। इसके बाद उसके पिता ने उसे पेशेवर स्टेज तक पहुंचाया। 
 
धीरे-धीरे सितारा की तारीफ मुंबई में होने लगी। निर्माता-निर्देशक निरंजन शर्मा ने उन्हें फिल्म 'उषा हरण' के लिए चार सौ रुपये माह पर अनुबंधित किया। सितारा को तीन माह के लिए बारह सौ रुपये मिले। सितारा ने स्टेज प्रोग्राम देना जारी रखा, लेकिन यह नया माध्यम उन्हें ज्यादा रोमांचक एवं विस्तृत लगा। 
 
1939 में बनी 'नदी किनारे' में सितारा ने अभिनय के साथ-साथ गायिका की भूमिका भी निभाई। फिल्म के निर्देशक मणिभाई व्यास तथा नायक कुमार थे। सितारा ने 1933 में जयंत देसाई द्वारा निर्देशित 'औरत का दिल' में भी काम किया। इसके अलावा उन्होंने महबूब खान की 'अलहिलाल' में काम किया था। 
 
उनकी अन्य फिल्में थीं- रणजीत स्टूडियो की 'धीरज', 'गुडलक', 'पागल', 'अछूत', 'नदी किनारे', 'इंडिया टूडे' और 'वतन'। सितारा को फिल्मों से अच्छी खास आमदनी होने लगी थी। सितारा ने चंदूलाल शाह, चतुर्भुज दोषी, मणिभाई व्यास, बादामी तथा रमणीक लाल देसाई जैसे वरिष्ठ निर्देशकों के साथ काम किया। 
 
सितारा ने ए.आर. कारदार द्वारा निर्देशित स्वामी तथा 'पूजा' में भी काम किया था। वीणा तथा अशोक कुमार द्वारा अभिनीत 'नजमा' में सितारा ने परित्यक्ता पत्नी की यादगार भूमिका निभाई थी। 
 
स्टेज प्रोग्राम के साथ-साथ सितारा का फिल्मों में काम करना भी जारी रहा। उन्होंने नजीर और के. आसिफ के साथ कई फिल्मों का निर्माण किया। उनकी यादगार फिल्में थीं- 'सोसायटी', 'सलमा', 'काजल', 'होली', 'फूल' और 'हलचल'। फिल्म 'मुगल-ए-आजम' में उन्होंने स्मरणीय नृत्य प्रदर्शन किया। 
 
सितारा ने कई मशहूर अभिनेताओं याकूब, ईश्वरलाल, दिलीप कुमार, नासिर खान, बलराज साहनी, मोतीलाल आदि के साथ काम किया। सितारा द्वारा अभिनीत 'नजमा' ही एकमात्र ऐसी फिल्म थी, जिसमें उन्होंने नृत्य नहीं किया था। सितारा ने भले ही फिल्मों में अभिनय किया हो, लेकिन वे नृत्यों के कारण पहचानी जाती रहीं। उनकी यही सफलता उन्हें दूसरों से अलग करती है। 
(परदे की परियाँ - पुस्तक से साभार) 
 

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