सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक में हिंदी सिनेमा देखने वाले फिल्म निर्माता-निर्देशक टी. रामाराव के नाम से अच्छी परिचित हैं। दक्षिण भारतीय सिनेमा का यह दिग्गज हर साल दो-तीन हिंदी फिल्में भी निर्देशित करता था जिसमें अमिताभ बच्चन, जीतेन्द्र, ऋषि कपूर, धर्मेन्द्र, रजनीकांत, संजय दत्त, मिथुन चक्रवर्ती जैसे सितारे हुआ करते थे। पोस्टर पर टी. रामाराव का बड़ा सा नाम रहता था। वे मसाला फिल्म बनाते थे जिसमें सोशल मैसेज भी होता था और कहानी में उतार-चढ़ाव भी होते थे। पारिवारिक, रोमांटिक, एक्शन जैसी हर तरह की फिल्में टी. रामाराव बनाते थे जिनमें से अधिकांश बॉक्स ऑफिस पर कामयाब रहती थी।
टी. रामाराव तेजी से काम करने के लिए जाने जाते थे। 1966 से 2000 के बीच उन्होंने 70 से ज्यादा फिल्में निर्देशित कर डाली जो दर्शाता है कि वे किस स्पीड से काम करते थे। 1966 में तेलुगु फिल्म 'नवरात्रि' से उन्होंने निर्देशन की शुरुआत की थी और जल्दी ही वे धड़ाधड़ फिल्में निर्देशित करने लगे। जीतेन्द्र की जब मुंबइया फिल्मों में पूछ-परख कम हो गई तो उन्होंने दक्षिण भारत का रूख किया और टी. रामाराव ने उनको लेकर कई कामयाब हिंदी फिल्में निर्देशित की। इसके बाद अमिताभ, धर्मेन्द्र, मिथुन, संजय दत्त, अनिल कपूर जैसे सितारे भी टी. रामाराव की फिल्मों का हिस्सा बने।
टी. रामाराव द्वारा पहली निर्देशित हिंदी फिल्म 'लोक परलोक' (1979) थी। जिसमें यमराज और चित्रगुप्त पृथ्वी पर आते हैं और कई हास्यास्पद परिस्थितियां निर्मित होती हैं। आज के दौर में इस तरह की फिल्म बनाना आसान नहीं है। 1980 में उन्होंने जीतेन्द्र और रेखा को लेकर 'जुदाई' बनाई जो एक फैमिली ड्रामा थी। उम्र के एक मोड़ पर आकर पति-पत्नी अलग हो जाते हैं और बाद में उनके युवा बच्चे दोनों को एक करते हैं। यह फिल्म सुपरहिट रही थी।
टी. रामाराव की अधिकांश हिंदी फिल्मे तेलुगु फिल्मों का रीमेक हुआ करती थी। वे हिंदी फिल्मों के दर्शकों की पसंद के अनुसार थोड़ा बदलाव कर देते थे। मांग भरो सजना (1980), एक ही भूल (1981), मैं इंतकाम लूंगा (1982) जैसी लगातार सफल फिल्म उन्होंने दी।
रजनीकांत को हिंदी फिल्मों में वे ही लेकर आए। 'अंधा कानून' (1983) में रजनीकांत, अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी जैसे सितारे एक साथ नजर आए। यह फिल्म सुपरहिट रही और इसके बाद रजनीकांत को हिंदी फिल्मों में काम मिलने लगा।
अमिताभ बच्चन को लेकर टी. रामाराव ने 'इंकलाब' (1984) फिल्म बनाई जो बेहद चर्चित रही। इंकलाब की कहानी राजेश खन्ना अभिनीत 'आज का एमएलए रामअवतार' से मिलती-जुलती थी और दोनों एक ही समय में रिलीज हुई थी। दो सुपरस्टार की एक ही विषय पर फिल्म का रिलीज होना चर्चा का विषय बन गया था। अमिताभ-राजेश के रिश्ते भी जगजाहिर थे।
हकीकत (1985), सदा सुहागन (1986), नसीब अपना (1986) जैसी महिला प्रधान और आंसू बहाऊ फिल्मों का भी उन्होंने सफलतापूर्वक निर्देशन किया। इन फिल्मों को देखने के लिए सिनेमाघर में ज्यादातर महिला दर्शक ही हुआ करती थी। सुधा चंद्रन को लेकर 'नाचे मयूरी' (1986) बनाई जो सुधा की जिंदगी पर ही आधारित थी।
मल्टीस्टारर फिल्में 'वतन के रखवाले' (1987), दोस्ती दुश्मनी (1986), खतरों के खिलाड़ी (1988) भी उन्होंने बनाई। वर्ष 2000 में रिलीज बेटी नंबर 1 उनके द्वारा निर्देशित अंतिम हिंदी फिल्म थी।
टी. रामाराव ने कभी महान फिल्म बनाने का दावा नहीं किया। वे उन लोगों के लिए फिल्में बनाते थे जो थिएटर में अपनी समस्या को भूलने के लिए आते थे। टी. रामाराव अपनी फिल्मों के जरिये उनका मनोरंजन करते ताकि ढाई-तीन घंटे के लिए दर्शक उनकी परेशानियों को भूल जाएं।
आखिरी रास्ता, अंधा कानून, एक ही भूल, जॉन जानी जनार्दन और संसार जैसी फिल्में उन्होंने प्रोड्यूस भी की। तमिल और तेलुगु फिल्में भी बनाईं। 83 वर्ष की आयु में उनका चेन्नई में निधन हुआ। वे वृद्धावस्था में होने वाली बीमारियों और परेशानियों से जूझ रहे थे।
टी. रामाराव द्वारा निर्देशित हिंदी फिल्में
लोक परलोक (1979), जुदाई (1980), मांग भरो सजना (1980), एक ही भूल (1981), मैं इंतकाम लूंगा (1982), जीवन धारा (1982), ये तो कमाल हो गया (1982), अंधा कानून (1983), मुझे इंसाफ चाहिए (1983), इंकलाब (1984), ये देश (1984), जॉन जानी जनार्दन (1984), हकीकत (1985), नसीब अपना अपना (1986), सदा सुहागन (1986), दोस्ती दुश्मनी (1986), नाचे मयूरी (1986), संसार (1987), इंसाफ की पुकार (1987), वतन के रखवाले (1987), खतरों के खिलाड़ी (1988), सचाई की ताकत (1989), मजबूर (1989), मुक़द्दर का बादशाह (1990), प्रतिकार (1991), मुक़ाबला (1993), मि. आज़ाद (1994), मेरा प्यारा भारत (1994), रावण राज (1995), हथकड़ी (1995), जंग (1996), सौतेला (1999), बुलंदी (2000), बेटी नंबर 1 (2000)