यदि माँ और बड़ी बहन मशहूर अभिनेत्री हैं, तो जान लीजिए कि बेटी और छोटी बहन को उतनी सफलता नहीं मिलने वाली है। यदि किसी माँ की बेटी पापुलर स्टार हो जाए, तो मान लीजिए कि बेटी के नाम से माँ पहचानी जाएगी। फिल्मी दुनिया में ऐसा होता है, और हुआ भी है अभिनेत्री तनूजा के साथ।
माँ शोभना समर्थ और दीदी नूतन की छोटी बहन और काजोल की माँ तनूजा एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री होते हुए भी पीछे धकेल दी गई। आज वे काजोल-तनीषा की माताश्री और अजय देवगन की सास के रूप में हमारे बीच मौजूद हैं।
टॉम बॉय तनूजा
अपनी प्रतिभा को संवारने या निखारने के लिए तनूजा भी एक हद तक दोषी रही हैं। बचपन में उसे माँ तथा दीदी का इतना अधिक लाड़-प्यार मिला कि पचास के दशक में वे टॉम बॉय घोषित कर दी गई। पार्टियों में वे खुले कपड़े पहनते थीं। सिगरेट और शराब खुलेआम पीती थीं। चेहरे पर नकाब या मुखौटा लगाकर समाज में जाना उन्हें जरा भी पसंद नहीं है।
पचास के दशक में हिन्दी फिल्म की नायिकाओं के लिए पति को परमेश्वर और घर को स्वर्ग बनाए रखने के रोल मिला करते थे। ऐसे में कोई निर्माता भला तनूजा को क्यों कर साइन करने लगा? उनकी पहली फिल्म छबीली (1960) आई, जो माँ शोभना ने प्रोड्यूस की थी। इसके बाद केदार शर्मा ने अपने बेटे अशोक को लांच करने के लिए हमारी याद आएगी फिल्म बनाई। स्वाभाविक था पूरी फिल्म में अशोक पर कैमरा मेहरबान था। तनूजा को कम फुटेज मिला।
तनूजा में उस दौर की नायिकाओं से होड़ लेने की कोई इच्छा शक्ति भी नहीं थी, लेकिन अपने खिलंदड़ स्वभाव और आदतों की वजह से गीताबाली की नटखट परम्पराओं को उन्होंने जीवित रखा।
रात अकेली है...
दीदी नूतन को बड़े बैनर, बड़े डायरेक्टर के निर्देशन में लगातार फिल्में मिलती गईं। तनूजा के नसीब में यह सब कुछ नहीं था। इसके बावजूद उन्होंने कुछ उम्दा फिल्मों में उम्दा भूमिकाएँ कर अपनी प्रतिभा को दर्शाया है।
देव आनंद की फिल्म ज्वेलथीफ में वैजयंती माला हीरोइन हैं, लेकिन तनूजा पर फिल्माया गाना 'रात अकेली है' को उन्होंने अपने बलबूते पर लोकप्रिय बनाया। इसी तरह बच्चों तथा बड़ों दोनों प्रकार के दर्शकों में लोकप्रिय फिल्म हाथी मेरे साथी में तनूजा के हीरो राजेश खन्ना थे। इस फिल्म में तनूजा का यादगार रोल है।
बिमल राय जैसे निर्देशक ने नूतन को लेकर बंदिनी और सुजाता जैसी नायिका प्रधान कालजयी फिल्में बनाईं। इसी प्रोडक्शन की हास्य फिल्म दो दूनी चार तनूजा के हिस्से में आई। शेक्सपीयर के नाटक 'कॉमेडी ऑफ एरर्स' पर यह फिल्म आधारित थी।
बसु भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित अनुभव में तनूजा ने एक पत्र के सम्पादक की उपेक्षित पत्नी का रोल संजीदगी से निभाया था। पति-पत्नी के रिश्तों पर बसु भट्टाचार्य की त्रयी में अनुभव पहली फिल्म थी।
बहारें लौटकर नहीं आई
यह तनूजा का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जब-जब उन्हें अच्छे बैनर या डायरेक्टर की फिल्में मिलीं, कोई न कोई दुर्घटना घटित हो गई। गुरुदत्त ने बहारें फिर भी आएँगी में तनूजा को लिया तो उनकी आसमयिक मौत हो गई। जैस-तैसे भाई आत्मराम ने फिल्म पूरी की मगर वह मार खा गई।
सफलता को अपने नजदीक न आते देख तनूजा ने सेकंड लीड वाले रोल स्वीकारना शुरू कर दिए। राज कपूर की फिल्म प्रेम रोग में वे ऐसे ही रोल में हैं। बलराज साहनी के बेटे परीक्षित साहनी की पहली फिल्म 'पवित्र पापी' में तनूजा का अविस्मरणीय अभिनय रहा है।
इसके बाद वे भाभी, मौसी या माँ के रोल करने लगी। कुछ धारावाहिकों में भी अभिनय किया। जब बिटिया काजोल बड़ी हो गई, तो उनका करियर सँवारने में वे परदे के पीछे चली गईं। कुछ बंगला फिल्में और एन ऑगस्ट रेक्विम नामक अँग्रेजी फिल्म भी तनूजा की फिल्मोग्राफी में शामिल हैं।
तनूजा की एक दिक्कत यह भी रही कि हमेशा उनके अभिनय की तुलना दीदी नूतन से की जाती रही। एक अच्छी संभावनाओं वाली तारिका होते हुए भी तनूजा पहली पंक्ति में कभी नहीं आ सकी। बीच में पति शोमू मुखर्जी से हुआ अलगाव भी उन्हें गुमनामी के अंधेरे में ले गया।
आज काजोल जैसी सफल नायिका की माँ होने उनके लिए गर्व की बात है। काजोल के चुलबुले शोखी भरे अभिनय में हमें तनूजा की मस्ती भरी अदाओं की झलक मिलती है।
प्रमुख फिल्म
आज और कल, अनुभव, बहारें फिर भी आएँगी, दो चोर, दो दूनी चार, एक बार मुस्करा दो, घराना, हाथी मेरे साथी, हमराही, इम्तिहान, जीने की राह, ज्वेल थीफ, जीयो और जीने दो, मेरे जीवन साथी, पवित्र पापी, नई उमर की नई फसल, प्रेमरोग।