जब मुकेश के कहने पर अनिल बिश्वास ने गाना छोड़ दिया
पुण्यतिथि 31 मई के अवसर पर
भारतीय सिनेमा जगत में अनिल बिश्वास को एक ऐसे संगीतकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने मुकेश, तलत महमूद समेत कई पार्श्वगायकों को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाया। मुकेश के रिश्तेदार मोतीलाल के कहने पर अनिल बिश्वास ने मुकेश को अपनी एक फिल्म में गाने का अवसर दिया था लेकिन उन्हें मुकेश की आवाज पसंद नहीं आई, बाद में उन्होंने मुकेश को वह गाना अपनी आवाज में गाकर दिखाया।
इस पर मुकेश ने अनिल बिश्वास ने कहा कि दादा बताइए कि आपके जैसा गाना भला कौन गा सकता है? अगर आप ही गाते रहेंगे तो भला हम जैसे लोगों को कैसे अवसर मिलेगा?
मुकेश की इस बात ने अनिल बिश्वास को सोचने के लिए मजबूर कर दिया और उन्हें रातभर नींद नहीं आई। अगले दिन उन्होंने अपनी फिल्म 'पहली नजर' में मुकेश को बतौर पार्श्वगायक चुन लिया और निश्चय किया कि वे फिर कभी व्यावसायिक तौर पर पार्श्वगायन नहीं करेंगे।
7 जुलाई 1914 को पूर्वी बंगाल के बारिसाल (अब बांग्लादेश) में जन्मे अनिल बिश्वास ने महज 14 वर्ष की उम्र से ही संगीत समारोह में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था, जहां वे तबला बजाया करते थे।
30 के दशक में वर्ष 1930 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिए छिड़ी मुहिम में अनिल बिश्वास भी शामिल हो गए और इसके लिए उन्होंने अपनी कविताओं का सहारा लिया। इस क्रम में उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
वर्ष 1935 में प्रदर्शित फिल्म 'धरम की देवी' से बतौर संगीत निर्देशक अनिल बिश्वास ने अपने सिने करियर की शुरुआत की। वर्ष 1937 में महबूब खान निर्मित फिल्म 'जागीरदार' की सफलता के बाद बतौर संगीत निर्देशक वे फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए।
वर्ष 1942 में अनिल बिश्वास बॉम्बे टॉकीज से जुड़ गए और 2,500 रुपए मासिक वेतन पर काम करने लगे। वर्ष 1943 में बॉम्बे टॉकीज निर्मित फिल्म 'किस्मत' उनके करियर की सर्वाधिक कामयाब फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह है कि इसका एक गीत 'आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है...' फिल्म की समाप्ति पर दर्शकों की मांग पर दुबारा दिखाया जाता था।
वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म 'अनोखा प्यार' अनिल बिश्वास के सिने करियर के साथ-साथ व्यक्तिगत जीवन में अहम फिल्म साबित हुई। फिल्म का संगीत तो हिट हुआ ही, साथ ही फिल्म के निर्माण के दौरान उनका झुकाव भी पार्श्वगायिका मीना कपूर की ओर हो गया। बाद में अनिल बिश्वास और मीना कपूर ने शादी कर ली।
60 के दशक में अनिल बिश्वास ने फिल्म इंडस्ट्री से लगभग किनारा कर लिया और मुंबई से दिल्ली आ गए। वर्ष 1963 में अनिल बिश्वास दिल्ली प्रसार भारती में बतौर निदेशक काम करने लगे।
अपने संगीतबद्ध गीतों से लगभग 3 दशक तक श्रोताओं का दिल जीतने वाले महान संगीतकार अनिल बिश्वास 31 मई 2003 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।(वार्ता)