सत्तर के दशक में चले मध्यमार्गीय सिनेमा के दौर ने हिन्दी फिल्मी दुनिया को कई बेजोड़ रत्न दिए। इन्हीं में से एक है बसु चटर्जी की 'खट्टा-मीठा' (1978)। दो परिवारों के एक होने को आधार बनाकर, जीवन के छोटे-बड़े सुख-दुःख को साझा करने का संदेश देती यह पारिवारिक कॉमेडी बड़े सितारों के अभाव के बावजूद खूब पसंद की गई थी। दूसरी शादी करने वाले बुजुर्ग दंपति को केंद्र में रखकर बनाई गई फिल्म में परंपरागत युवा लव स्टोरी थी भी (राकेश रोशन-बिंदिया गोस्वामी) तो सब-प्लॉट के रूप में।
होमी मिस्त्री (अशोक कुमार) विधुर हैं तथा अपने चार बेटों के साथ रहते हैं। नौकरी भी करते हैं और घर-गृहस्थी के सारे काम भी संभालते हैं। नर्गिस सेठना (पर्ल पदमसी) भी विधवा हैं और अपने दो बेटों व एक बेटी के साथ रहती हैं। घर और बाहर के सारे कामों का बोझ अकेले उनके कंधों पर है।
एक परिचित सोली (डेविड) के सुझाव पर दोनों दूसरी शादी के लिए मन बनाते हैं, आपस में मिलते हैं, एक-दूसरे को पसंद करते हैं और शादी कर ही डालते हैं। शादी के बाद होमी अपने बेटों के साथ नर्गिस के घर में रहने चले आते हैं और इसके साथ ही शुरू होता है सौतेले भाई-बहन में टकराव जिससे कई मजेदार परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं।
सदा आपस में लड़ती-झगड़ती इस टोली में न जाने कब अपनत्व व प्रेम का बंधन आकार लेने लगता है। फिर इकलौती बहन फ्रेनी (प्रीति गांगुली) की शादी की खुशी हो या फिरोज (राकेश रोशन) की प्रेमिका जरीन (बिंदिया गोस्वामी) के रईस पिता (प्रदीप कुमार) द्वारा खड़ी की गई परेशानियों का सामना करना हो, सब एक हो जाते हैं।
'खट्टा-मीठा' की खासियत थी इसका सौंधापन। एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार के जीवन की छोटी-छोटी बातों को बसु चटर्जी ने बारीकी से पकड़ा है और हास्य-विनोद की चाशनी में डुबोकर परोसा है। फिल्म के कई किरदार व दृश्य बरसों बाद भी दर्शकों की स्मृतियों में ताजा हैं।
मसलन नन्हे मास्टर राजू को कपड़े बदलते देख 'मेरे कमरे में एक मर्द कपड़े बदल रहा है!' चीखने वाली प्रीति गांगुली या 'मम्मी ओ मम्मी, तू कब सास बनेगी' का रोना रोने वाले देवेन वर्मा। सबसे यादगार दृश्य शायद वह है जिसमें होमी नर्गिस को देखने आते हैं और चाय की ट्रे लेकर आई नर्गिस उतनी ही नर्वस हैं जितनी कोई 20-25 साल की युवती लड़के वालों द्वारा 'देखने आने' पर होती है... शायद उससे भी ज्यादा! इधर-उधर की बात होती है। नर्गिस के माथे पर पसीने की बूँदें चमकने लगती हैं।
चाय की चुस्की लेते हुए उन्हें लगभग ठस्का लगता है और फिर वे मानो अकारण ही हँसने लगती हैं। एक बार शुरू हुई यह हँसी रोके नहीं रुकती, बल्कि और तीव्र ही होती जाती है। नर्गिस होमी से कहती भी हैं, 'माफ करना, मुझे जरा ज्यादा हँसी आती है!' उधर नर्गिस की बेकाबू हँसी देखकर होमी की भी हँसी छूट जाती है... और हँसते-हँसते रिश्ता पक्का हो जाता है!
थिएटर की खाँटी कलाकार पर्ल पदमसी ने अपनी पहली ही फिल्म में इस सीन में (और अपने पूरे रोल में ही) जान फूँक दी थी। साथ में अशोक कुमार तो थे ही पानी की तरह सहज बहकर अपने रोल में फिट हो जाने वाले...।
रोचक तथ्य
'खट्टा-मीठा' में अशोक कुमार की बेटी प्रीति गांगुली ने पर्ल पदमसी की बेटी का रोल किया था, जबकि पर्ल के बेटे रंजीत चौधरी ने अशोक कुमार के बेटे का रोल किया। प्रीति के जीजा देवेन वर्मा ने उनके पति की भूमिका निभाई। राकेश रोशन ने इसमें अभिनय किया और उनके भाई राजेश रोशन ने संगीत दिया।