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'पड़ोसन' के विद्यापति गुरु

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कॉमेडी फिल्में तो बहुत बनती हैं, लेकिन कुछ ऐसी होती हैं जो कॉमेडी की पाठ्‌य पुस्तक का रूप ले लेती हैं। ऐसी ही फिल्म है 'पड़ोसन' (1968)। गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने को उतावला, मतवाला और शुद्धतः बावला भोला (सुनील दत्त), उसका दिल चुरा बैठी उसकी पड़ोसन बिंदु (सायरा बानो), बिंदु पर फिदा उसका म्यूजिक टीचर पिल्लई (मेहमूद) आज भी दर्शकों की स्मृतियों में दर्ज हैं। इनके साथ ही फिल्म में एक और किरदार था, विद्यापति उर्फ गुरु का जिसे किशोर कुमार ने इस कदर जीवंत किया कि वह सिने इतिहास का बिलकुल अनूठा किरदार बन गया।

विद्यापति की कहानी में एंट्री तब होती है जब भोला को बिंदु से सकारात्मक रिस्पांस नहीं मिलता और वह अपने गुरु पिल्लई पर फिदा नजर आती है। तय होता है कि संगीत के माध्यम से ही भोला बिंदु का दिल जीत सकता है। इसके लिए भोला महाशय जाते हैं विद्यापति की शरण में, जिसके लिए नाटक ही जीवन है और जीवन भी नाटक ही है।

वह भोला को गाना सिखाने की कोशिश करता है लेकिन भोला तो जैसे इस जन्म में गवैया न बनने की कसम खाकर आया है। तब विद्यापति को वह नुस्खा सूझता है जो फिल्मों में अपनाया जाता है। यानी सबके (खासतौर पर बिंदु के) सामने हीरो यानी भोला होंठभर हिला दे और सचमुच में गाना पीछे से छुपकर पार्श्व गायक का धर्म निभाते हुए विद्यापति गाए! नुस्खा काम कर जाता है, बिंदु का दिल भोला पर आ जाता है लेकिन... झूठ का पर्दाफाश होना ही होता है, सो होकर रहता है...।

किशोर कुमार ने जिस तरह से विद्यापति के किरदार को मूर्त रूप दिया, वह अद्‌भुत है। कहते हैं कि उन्होंने इसके लिए अपने एक रिश्तेदार धनंजय बनर्जी को आधार बनाया, जो शास्त्रीय गायक थे। धोती पहने, बीच से निकली माँग के इर्द-गिर्द गिरते बालों को पीछे झटकते रहने वाले विद्यापति महाशय, जिनके मुख के एक कोने से पीक की धारा सदा प्रवाहमान रहती है, 'पड़ोसन' को एक अलग ही ऊँचाई पर ले जाते हैं।

अपनी नाटक मंडली के साथियों के साथ मिलकर विद्यापति जिस तरह अपने मित्र की प्रेम कहानी को सफल करने के लिए एक से बढ़कर एक नाटकीय उपाय अपनाता है, वह देखते ही बनता है। खासतौर पर वह दृश्य जहाँ वह भोला को बिंदु से प्यार का इजहार करने का नुस्खा सिखाते हुए 'मेरी प्यारी बिंदु...' गा पड़ता है।

बताते हैं कि किशोर कुमार ने 'पड़ोसन' करने से साफ इंकार कर दिया था। वे इस बात से नाराज थे कि दो साल पहले 'प्यार किए जा' के लिए मेहमूद को उनसे ज्यादा पारिश्रमिक दिया गया था। मेहमूद, जो 'पड़ोसन' के निर्माता भी थे, हर हाल में विद्यापति के रोल के लिए किशोर कुमार को ही साइन करना चाहते थे।

उन्होंने किशोर का मान रखने के लिए पहले से तय राशि से दोगुने का प्रस्ताव रखा, तब जाकर किशोरदा तैयार हुए। यही नहीं, किशोरदा ने अपने अधिकांश दृश्यों में भी अपनी मर्जी से परिवर्तन किए। बताते हैं कि 'मेरी प्यारी बिंदु...' गीत मूल रूप से फिल्म में था ही नहीं। यह तो एक दृश्य था, जिसे किशोरदा ने सेट पर ही गीत की सिचुएशन में बदल दिया। उन्होंने ही गीत के बोल रचे, धुन रची और कोरियोग्राफी भी कर डाली! ऐसे जीनियस द्वारा ही जिया जा सकता था विद्यापति गुरु जैसा पात्र।

- विकास राजावत


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