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सिनेमा लोगों को सोचने पर मजबूर करता है: कबीर खान

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फिल्मकार कबीर खान का मानना है कि ऐसी फिल्म जो कोई 'संदेश' देती हो, वह लोगों को सोचने के लिए बाध्य कर सकती है। हालांकि वे आशंका जताते हैं कि इससे वास्तविकता नहीं बदल सकती।
 
वर्ष 2015 में आई फिल्म 'बजरंगी भाईजान' के निर्देशक ने कहा कि उनकी इस फिल्म ने लोगों को भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों के बारे में सोचने को बाध्य किया। यह फिल्म एक भारतीय व्यक्ति के बारे में है जो एक बच्ची को पाकिस्तान में उसके घर पहुंचाने में मदद करता है।
 
उन्होंने कहा, 'सिनेमा इतना शक्तिशाली है कि वह लोगों को सोचने और मंथन करने पर बाध्य कर सकता है, भले उन्हें बदल नहीं सके। बजरंगी भाईजान के बाद बहुत से लोगों ने सोचा कि भारत और पाकिस्तान के संबंध आखिर किस दिशा में बढ़ रहे हैं। जंग के मुकाबले क्या यह एक बेहतर विचार नहीं है? सिनेमा लोगों को अपनी राय पर फिर से विचार करने को मजबूर करता है।' 
 
कबीर ने कहा, 'लेकिन क्या यह इतना शक्तिशाली है कि वास्तविकता को बदल दे? दुर्भाग्य से शायद नहीं।' कबीर की नई फिल्म भारत-चीन के बीच वर्ष 1962 में हुए युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी 'ट्यूबलाइट' है जो 23 जून को रिलीज होनी है।
 
कबीर ने कहा कि उन्होंने अपनी फिल्मों में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उठाने से कभी परहेज नहीं किया। वह अपने विचार रखने से नहीं डरते।
 
कबीर ने कहा, 'देश में फिल्में बहुत शक्तिशाली माध्यम है और फिल्मकारों को बिना डर के प्रभावी तरीके से अपने विचार रखने चाहिए।' सिनेमा पर राजनीतिक दबाव के बारे में कबीर ने कहा कि उन्होंने इस का सामना नहीं किया है और वह इसके आगे झुकेंगे भी नहीं।
 
कबीर कहते हैं ''मेरे ख्याल से आज के वक्त में यह अहम है कि आप बोलें। हमारे देश की यह महानतम चीज है कि यह हमें अपने विचार रखने की इजाजत देता है। इंटरनेट पर ट्रॉलिंग मुझे परेशान नहीं करती हालांकि सार्वजनिक बहस की निराशाजनक स्थिति चिंता का बड़ा विषय है। हो सकता है कि लोग एक दूसरे से सहमत ना हो लेकिन बहस करने का भी एक तरीका होता है।(भाषा) 

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