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केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने पर नजर रखने के लिए भारत और चीन बात कर रहे हैं।

रमेश ने फाइनेंशियल टाइम्स से कहा कि हम हिमालयी ग्लेशियरों की निगरानी के लिए चीन से बात कर रहे हैं। उन्होंने हालाँकि यह भी कहा कि भारत चीनी वैज्ञानिकों को अपने ग्लेशियरों पर चढ़ने की अनुमति नहीं देगा, लेकिन वह सहयोगात्मक अनुसंधान कार्यक्रम चाहता है।

उन्होंने ‘वाटर टॉवर ऑफ एशिया’ के स्वास्थ्य की वैज्ञानिक जाँच के परिप्रेक्ष्य में कहा कि पर्वतीय क्षेत्र से जुड़ी दोनों ओर की शैक्षणिक अनुसंधान इकाइयाँ एक-दूसरे को सूचना उपलब्ध कराएँगी।

उन्होंने कहा कि भारत जल संसाधनों पर चीन से बातचीत को तैयार है। इस मुद्दे पर दोनों देशों की साझा चिंताएँ हैं। दिसंबर में कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन पर होने वाले सम्मेलन से पहले पर्यावरण मंत्री इस महीने एक समझौता करने के लिए चीन जाएँगे।

रमेश ने कहा कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी उन नियमों का विरोध करने में भारत और चीन ‘‘बराबर की शक्तियाँ’’ हो सकते हैं, जो सर्वाधिक तेजी से विकास कर रही दोनों अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति के लिए खतरा हैं। हिमालयी क्षेत्र और तिब्बती पठार दोनों देशों के लिए सामरिक रूप से संवेदनशील हैं।

गंगा और यांगत्ज सहित विश्व की सात महानतम नदियों तथा दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत आबादी को ग्लेशियरों से पानी मिलता है।

फाइनेंशियल टाइम्स ने अपनी खबर में कहा है कि भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन के चलते हिमालयी ग्लेशियरों के बारे में की गई उन भविष्यवाणियों पर सवालिया निशान लगाया है, जिनमें कहा गया है कि ग्लेशियर पूरी तरह खत्म हो जाएँगे।

भारत सरकार का कहना है कि ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे इस बात को बल मिल सके कि 40 साल के भीतर ग्लेशियर अदृश्य हो जाएँगे।

रमेश ने कहा यह काफी भावात्मक मुद्दा है, लेकिन किसी को भी हिमालयी ग्लेशियरों पर समाधि लेख लिखने से पहले थोड़ी सावधानी बरतना चाहिए।

भारत सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से आग्रह किया है कि वे स्थिति के आकलन के लिए पूर्वी तथा पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों का व्यापक सर्वेक्षण करें।

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