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डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्षी की कहानी

हमें फॉलो करें डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्षी की कहानी
बैनर : यशराज फिल्म्स, दिबाकर बैनर्जी प्रोडक्शन्स
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : दिबाकर बैनर्जी
संगीत : स्नेहा खानवलकर, दिबाकर बैनर्जी, मैड बॉय/मिंक
कलाकार : सुशांत सिंह राजपूत, स्वास्तिका मुखर्जी, आनंद तिवारी, दिव्या मेनन, मियांग चांग 
रिलीज डेट : 3 अप्रैल 2015 
फिल्म ब्योमकेश बक्षी के पात्रों से पहले परिचय जरूरी है। 
ब्योमकेश बक्षी (सुशांत सिंह राजपूत)
घमंडी, आकर्षक, प्रतिभाशाली। ब्योमकेश बक्षी ऐसा इंसान है जिससे नफरत करना सभी को पसंद है। ब्योमकेश अपनी आसपास की दुनिया को सही तरीके से समझने की कोशिश में लगा रहता है। अपरंपरावादी सोच रखते हुए छुपे हुए सच को बाहर लाना उसके लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य है। जिस पल भी सच्चाई सामने आ जाती है ब्योमकेश की उस विषय में रूचि समाप्त हो जाती है। ब्योमकेश सच से अधिक उसे खोजने के तरीकों में रूचि रखता है। उसकी याददाश्त जबरदस्त है और किसी भी रहस्य को सुलझाए बिना छोड़ना उसके लिए संभव नही है। वर्तमान में अपने पहले केस जिसमें एक प्रतिभाशाली रसायनशास्त्र ज्ञाता के अचानक गायब हो जाने के रहस्य से पर्दा उठाना ही ब्योमकेश का एकमात्र लक्ष्य है। 
 
ब्योमकेश की जिंदगी में दोस्तों और प्यार की कमी है। केस पर काम करते हुए ब्योमकेश की अजीत बैनर्जी से मित्रता हो जाती है जो समय के इतनी प्रगाढ़ हो जाती है। ब्योमकेश के जीवन की दूसरी कमी प्यार, सत्यवती के आने से मिट जाती है जो ब्योमकेश जितनी ही होशियार और साहसी है। 
 
अजीत बैनर्जी (आनंद तिवारी)
अजीत बैनर्जी बांग्ला साहित्य में विद्यासदन महाविद्यालय में अध्ययनरत है। वह लेखक बनना चाहता है। शरीर को स्वस्थ, ताकतवर और गठीला रखना उसका शौक है। उसके ही पिता व प्रतिभाशाली रसायन शास्त्र के ज्ञाता भुबन बैनर्जी के गायब होने के केस पर ब्योमकेश वर्तमान में काम कर रहा है।    
 
सत्यवती (दिव्या मेनन)
सत्यवती सुकुमार की बहन है और गजानन सिकदर की भतीजी है। वह अकेली ऐसी इंसान है जो चाचा और भतीजे को एकदूसरे का गला पकडने से रोके रखती है। वह कम उम्र की, कम बोलने वाली और शांत स्वभाव की है परंतु उसे देखते ही उसके तेज दिमाग और अपने विचारों पर अडिग रहने के गुणों का पता चल जाता है।  
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अंगुरी देवी (स्वस्तिका मुखर्जी)
बंगाल में इनके चाहने वाले बहुत हैं। इनके प्रशंसकों में इनकी फिल्म देखने के लिए दंगा तक कर देते हैं। फिल्मों में इनके आंसू गिरते हैं तो सड़कों पर बाढ़ आ जाती है। फिल्म में अंगूरी की जब मृत्यु होती है तो प्रशंसक अपनी कलाई तक काट लेते हैं। इनके गाना गाने पर दिल टूट जाते हैं। इनके चेहरे का इस्तेमाल सौंदर्य साबुन से लेकर हीरों के आभूषणों को तक बेचने में किया जाता है। इनके आशिक गजानन सिकदर की राजनीति में गहरी पकड़ है। वह पैसे और अन्य तरीकों से अंगुरी का संबल बना हुआ है। परंतु फिर भी ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह दुखद रोलों में जान डाल देती हैं?  
 
डॉक्टर अनुकूल गुहा (नीरज कबि) 
डॉक्टर अनुकूल गुहा एक होम्योपैथी के डॉक्टर हैं और महामाया बोर्डिंग घर के मालिक और प्रबंधक हैं। यह बोर्डिंग घर को घड़ियों की सुइयों के हिसाब से चलाते हैं। घर में रहने वाले हर इंसान की जरूरत को तुरंत पूरा करते हैं, साथ ही साथ मुफ्त में होम्योपैथी दवाइयों का वितरण करते हैं। यह अकेले ऐसे इंसान हैं जो बोर्डिंग घर में नए आए ब्योमकेश बक्षी से सम्मान पा सके हैं। 
 
डीसीडीडी विल्की (मार्क बेन्निंगटन)
यह अब तक लाल बाजार में बैठने वाले सबसे अधिक होशियार जासूसों में से एक हैं। कुछ लोग उनके बेबाकी और निर्दयी होने पर उनसे नफरत करते हैं। परंतु बहुत से लोगों का मानना है कि डीसीडीडी को कलकत्ता से प्यार है। उन्हें भेष बदलकर खतरनाक जगहों से नई जानकारी निकालने में मज़ा आता है। परंतु जब से शंघाई से आया हुआ अफीम का सबसे बड़ा शिपमेंट गायब हुआ है वह अत्यधिक चिंतित रहते हैं।  
 
कनाई दाओ (मियांग चैंग)
यह चीनी अफीम विक्रेता है जिसने महामाया बोर्डिंग को ही अपना घर बना लिया है। इन्हें फिश करी बहुत पसंद है। यह बेहतरीन बंगाली बोल लेता है अब तो कनाई ने अपना चीनी नाम भी बदल लिया है। यह किसी चेंग लिंग की तलाश में है। परंतु यह है कौन? 
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फिल्म की कहानी 
1943 का कलकत्ता, एक युद्ध ... एक रहस्य ... और एक जासूस... 
जासूस ब्योमकेश बक्षी प्रसिद्ध बंगाली लेखक सारादिंदु बंदोपाध्याय द्वारा उकेरे गए भारतीय जासूस पर आधारित है। फिल्म में निर्देशन दिबाकर बेनर्जी का है। फिल्म का कथानक द्वितीय विश्व युद्ध के समय के कलकत्ता शहर का है। पढ़ाई पूरी कर निकले ब्योमकेश बक्षी का हत्या, वैश्विक राजनीति, षड्‍यंत्र और प्रलोभन से भरी दुनिया में अपनी चतुराई के दम पर एक प्रतिभाशाली परंतु दुष्ट प्रवृत्ति के इंसान का सामना करने की कहानी है, जिसने दुनिया नष्ट करने की ठान रखी है।

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