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पीकू की कहानी

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बैनर : एमएसएम मोशन पिक्चर्स, सरस्वती एंटरटेनमेंट, राइजिंग सन फिल्म्स प्रोडक्शन्स
निर्माता : एनपी सिंह, रॉनी लहरी, स्नेहा राजानी 
निर्देशक : सुजीत सरकार 
कलाकार : अमिताभ बच्चन, दीपिका पादुकोण, इरफान खान, मौसमी चटर्जी, जीशु सेनगुप्ता, रघुवीर यादव
रिलीज डेट : 8 मई 2015 
पीकू की कहानी पीकू (दीपिका पादुकोण), बाबा (अमिताभ बच्चन) और राणा (इरफान खान) के इर्दगिर्द घूमती है। 
पीकू बड़े शहर की सिंपल, खुले और मजबूत विचारों वाली कामकाजी लड़की है। वह पेशे से आर्किटेक्ट है और दिल्ली में अपनी शर्तों पर रहती है, परंतु फिर भी वह जमीन से जुड़ी हुई है। उसके लिए परिवार सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। वह अपने पिता की देखभाल में कोई कमी नही रखती। पीकू जिम्मेदारियों से भागती नहीं है। 
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भास्कर बैनर्जी उर्फ बाबा पीकू के पिता हैं जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं और अपना ज्यादातर समय उम्र संबंधी मुद्दों के बारे में सोचते हुए बिताते हैं। वह जिद्दी और नाटकीय हैं और उनकी अपनी समस्याएं हैं। उनकी पसंद-नापसंद बिल्कुल अलग है और अपनी विचारधाराओं को बदलना उनके लिए नामुमकिन है। उन्हें सामाजिक जीवन पसंद नहीं है। बाबा, फिल्मों में आमतौर पर होने वाले हीरो जैसे नहीं हैं परंतु फिल्म उनकी घरेलू जिंदगी के इर्दगिर्द घुमती है। 
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राणा, बैनर्जी परिवार का हिस्सा नही है परंतु वह बैनर्जी परिवार में चलने वाली गतिविधियों में उलझा रहता है। वह एक टैक्सी सर्विस का मालिक है और उसकी खुद की भी बहुत सी समस्याएं हैं। बैनर्जी परिवार की समस्याओं में उलझने से राणा की परेशानियां बढ़ गई हैं और इससे फिल्म में मजाकिया मोड़ आते हैं। 
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पीकू अपने घर से छोटे स्तर पर व्यवसाय करती है क्योंकि उसे अपने 70 वर्षीय पिता भास्कर बैनर्जी की देखभाल करना होती है। उसके पिता भी चाहते हैं कि पीकू उन्हीं पर 24 घंटे ध्यान दे। पीकू को अपने लिए बहुत कम वक्त मिल पाता है। रोमांस और अपने शौक पूरा करने का उसके पास वक्त नहीं है, लेकिन इससे पीकू को कोई परेशानी नहीं है। दोनों के बीच बेहतरीन रिश्ते हैं। 
 
पीकू के पिता एक बार रोड से दिल्ली से कोलकाता जाने की फरमाइश करते हैं। पीकू को इमोशनल ब्लैकमेल कर मना लेते हैं। कैब सर्विस के मालिक राणा को ड्राइवर बन उनकी कार चलाना पड़ता है क्योंकि भास्कर के सनकी स्वभाव के कारण कोई भी ड्राइवर तैयार नहीं होता। इस यात्रा के दौरान तीनों एक-दूसरे से कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए, सीख जाते हैं। इस दौरान भास्कर की बाथरूम हैबिट्स का खुलासा भी होता है। 
 
कोलकाता में अपनी जड़ों के पास पहुंचने पर भास्कर भावुक हो जाते हैं। यह फिल्म उतार-चढ़ाव से भरपूर है और पीकू की रोजमर्रा जिंदगी में उसके पिता के साथ होने से आने वाली समस्याओं को उभारती है। साथ ही यह पिता-पुत्री के संबंध को बारीकी से रेखांकित करती है। 


 

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