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आयशा : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : अनिल कपूर फिल्म्स कंपनी, पीवीआर पिक्चर्स
निर्माता : अनिल कपूर, अजय बिजली, संजय बिजली, रिया कपूर
निर्देशक : राजश्री ओझा
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : अभय देओल, सोनम कपूर, सायरस साहूकर, अरुणोदय सिंह, इरा दुबे, अमृता पुरी, लिसा हेडन, युरी सूरी, एम.के. रैना

2 घंटे 11 मिनट * 14 रील
रेटिंग : 2.5/5

‘आयशा’ जेन ऑस्टिन के उपन्यास ‘एम्मा’ पर आधारित है जो उन्होंने लगभग 200 वर्ष पूर्व (सन् 1815 में) लिखा था। वर्तमान दौर के मुताबिक बदलाव और भारतीयकरण किया गया है, लेकिन इस बात का ध्यान रखने की भी कोशिश की गई है कि उपन्यास की आत्मा के साथ छेड़छाड़ नहीं हो।

दिल्ली में रहने वाली आयशा (सोनम कपूर) मैच मेकर है और ये उसका शौक है। दूसरों के मामले में वह हद से ज्यादा दखल देती है। शैफाली (अमृता पुरी) एक बहनजी टाइप लड़की है, जिसकी जोड़ी वह रणधीर गंभीर (सायरस साहूकार) के साथ जमाने की कोशिश करती है। इस काम में पिंकी (इरा दुबे) नामक उसकी सहेली मदद करती है।

शैफाली के प्रति रणधीर आकर्षित हो इसके लिए आयशा मिडिल क्लास गर्ल शैफाली का हुलिया बदल देती है ताकि वह हॉट नजर आए। लेकिन आयशा का यह प्रोजेक्ट तब फेल हो जाता है जब रणधीर उसे प्रपोज करता है। आयशा उसे ठुकरा देती है तो रणधीर को पिंकी अच्छी लगने लगती है।

इसके बाद वह कई जोडि़याँ जमाने की कोशिश करती है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिलती है और सबसे वह बुराई मोल ले लेती है। अंत में जब वह अकेली रह जाती है तब उसे अहसास होता है कि जोड़ी जमाई नहीं जा सकती है।

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उपन्यास का फिल्मीकरण करना मुश्किल काम है और ये बात ‘आयशा’ में भी महसूस होती है। इमोशंस खुलकर सामने नहीं आ पाते हैं। प्यार के मामले में ज्यादातर किरदार कन्फ्यूज नजर आते हैं। पूरी फिल्म में आयशा और अर्जुन (अभय देओल) लड़ते रहते हैं, लेकिन फिल्म के अंत में आयशा को अचानक महसूस होता है कि वह अर्जुन को चाहती है। शायद इस डर से वह अर्जुन को अपना लेती है क्योंकि उसके सामने कोई विकल्प नहीं था।

स्क्रीनप्ले कुछ इस तरह लिखा गया है कि फिल्म जरूरत से ज्यादा लंबी हो गई है और कहानी धीमी रफ्तार से आगे बढ़ती है।

फिल्म के सारे कैरेक्टर्स उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनके पास पैसों की कमी नहीं है। पार्टियाँ, क्लब, पिकनिक, ब्यूटी पॉर्लर, शादियाँ, फैशन, स्टाइलिंग और गॉसिपिंग के इर्दगिर्द उनका जीवन घूमता है। आयशा को भी कुछ काम नहीं है इसलिए वह मैच मेकिंग के लिए लोगों को ढूँढती रहती है ताकि उसकी लाइफ में मसाला रहे। उच्च वर्ग की लाइफ स्टाइल को अच्छी तरह से दिखाया गया है।

फिल्म की निर्देशक राजश्री ओझा ने स्क्रिप्ट की बजाय स्टाइलिंग पर ज्यादा ध्यान दिया है। यदि वे थोड़ा ध्यान स्क्रिप्ट पर भी देती तो फिल्म बेहतरीन बन सकती थी। उन्होंने कलाकारों से अच्छा अभिनय करवाया। सारे किरदारों और वातावरण को बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है। स्टाइलिंग के मामले में फिल्म लाजवाब है। ड्रेसेस, लाइफ स्टाइल, एसेसरीज़, रंगों का संयोजन आँखों को सुकून देते हैं। कास्ट्यूम डिजाइनर्स पर्निया कुरैशी और कुणाल रावल का काम उल्लेखनीय हैं।

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फिल्म का संगीत प्लस पाइंट है। अमित त्रिवेदी ने अच्छी धुनें बनाई हैं और ‘आयशा’ तथा ‘गल ‍मीठी मीठी बोल’ हिट हो चुके हैं। डिएगो रॉड्रिग्ज की सिनेमॉटोग्राफी फिल्म को रिच लुक देती है। संवाद चुटीले हैं।

फीमेल एक्टर्स का फिल्म में दबदबा है। सोनम कपूर पूरी फिल्म में छाई रहीं। अभय देओल के लिए अवसर कम थे, लेकिन वे अपना असर छोड़ने में कामयाब रहे। इरा दुबे, अमृता पुरी, सायरस, अरुणोदय सिंह भी किसी से कम नहीं रहे।

‘आयशा’ को गुड फिल्म की बजाय गुड लुकिंग फिल्म कहना बेहतर होगा।

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