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इंग्लिश विंग्लिश : फिल्म समीक्षा

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हमें फॉलो करें इंग्लिश विंग्लिश

समय ताम्रकर

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बैनर : होप प्रोडक्शन्स, इरोज इंटरनेशनल
निर्माता : सुनील ए. लुल्ला, राकेश झुनझुनवाला, आर. बाल्की
निर्देशक : गौरी शिन्दे
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : श्रीदेवी, मेहदी नेबू, आदिल हुसैन, प्रिया आनंद, अमिताभ बच्चन (मेहमान कलाकार)
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 15 मिनट 33 सेकंड
रेटिंग : 3.5/5

आजाद होने के बावजूद गुलामी के कुछ अंश अभी भी हमारे खून में मौजूद है। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले को या किसी गोरी चमड़ी वाले को देखते ही हम हीन भावना से ग्रस्त होकर अपने आपको कम समझने लगते हैं।

भारत में तो इस समय यह आलम है कि विद्वान उसे ही माना जाता है जिसे अंग्रेजी आती है। करोड़ों भारतीय ऐसे हैं जिन्हें यह भाषा बिलकुल पल्ले नहीं पड़ती हैं और बेचारे रोजाना इस हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं।

इंग्लिश विंग्लिश ऐसी ही शशि नामक महिला की कहानी है जो इस भाषा में अपने आपको व्यक्त नहीं कर पाती है। उसकी दस-बारह वर्ष की लड़की पैरेंट्स-टीचर मीटिंग में अपनी मां को ले जाने में शर्मिंदगी महसूस करती है क्यों उसकी मां टीचर्स से हिंदी में बात करेगी। घर पर बच्चे और पति अक्सर उसका मजाक बनाते है क्योंकि अंग्रेजी शब्दों का वह गलत उच्चारण करती है।

शशि नामक किरदार के जरिये सूक्ष्मता के साथ दिखाया गया है कि किस तरह अंग्रेजी नहीं जानने वाला शख्स बैंक, एअरपोर्ट या बड़े होटल में जाने में घबराता है। न्यूयॉर्क में शशि एक रेस्तरां में अपने लिए कॉफी खरीदने जाती है तो उससे अंग्रेजी में ऐसे बात की जाती है कि बेचारी घबरा जाती है। अंग्रेजी में जब उसके आसपास के लोग बात करते हैं तो उसे नींद आने का बहाना बनाकर वहां से उठना पड़ता है ताकि उनके बीच वह बेवकूफ न लगे।

शशि अपनी बहन की बेटी की शादी के लिए न्यूयॉर्क जाती है और वहां अंग्रेजी सीखने का फैसला करती है। क्लास में उसका परिचय ऐसे कई लोगों से होता है जो अंग्रेजी नहीं जानते हैं। लेकिन इसको लेकर न उनमें शर्मिंदगी है और न ही उनका मजाक बनाया जाता है। भारत, स्पेन, चीन, फ्रांस से ये लोग आए हैं और अमेरिका में रहने के लिए अंग्रेजी सीखते हैं।

यहां यह बताने की कोशिश की गई है कि भारत में अंग्रेजी का हौव्वा बनाया गया है और माहौल ऐसा बनाया गया है कि अंग्रेजी में बात करना विद्वता की निशानी है। टूटी-फूटी हिंदी या क्षेत्रीय भाषा यदि कोई बोलता है तो उसका कोई मजाक नहीं बनाया जाता।

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फिल्म दो ट्रेक पर चलती है। एक शशि की अंग्रेजी में कमजोरी और दूसरा, इस हाउसवाइफ को घर में सम्मान नहीं मिलता। वैसे वह बूंदी के लड्डू बनाकर बेचती है, लेकिन इसे बहुत छोटा काम समझा जाता है। शशि के लड्डू को यदि कोई बेहद स्वादिष्ट बताता है तो उसका पति यह कहकर शशि का मजाक उड़ाता है कि ये तो पैदा ही लड्डू बनाने के लिए हुई है।

न्यूयॉर्क में जब शशि अकेली इंग्लिश क्लास में जाती है और थोड़ी-बहुत इस भाषा से परिचित होती है तो उसकी चाल में आत्मविश्वास नजर आने लगता है। क्लास में एक फ्रेंच पुरुष शशि की ओर आकर्षित होता है और पूरी क्लास के सामने उसकी सुंदरता की तारीफ करता है। शशि को बुरा जरूर लगता है, लेकिन यहां से वह खुद से प्यार करने लगती है और उसकी एक नई यात्रा शुरू होती है।

न चाहते हुए भी फिल्म यह बात रेखांकित करती है कि अंग्रेजी महत्वपूर्ण भाषा है क्योंकि अंग्रेजी सीखने के बाद शशि का आत्मविश्वास और सम्मान दोनों बढ़ जाता है। हालांकि न्यूयॉर्क से भारत लौटते समय वह हवाई जहाज में हिंदी अखबार पढ़ने को मांगती है और इसके जरिये यह दिखाने की कोशिश की गई है कि उसके लिए हिंदी भी महत्वपूर्ण है, लेकिन केवल सिर्फ एक सीन से बात नहीं बनती। फिल्म जिस थीम से शुरू होती है उसका निर्वाह अंत में नहीं करती है।

विज्ञापन फिल्म बनाने में गौरी शिंदे का बड़ा नाम है और फीचर फिल्म बनाकर उन्होंने साबित किया कि वे इस माध्यम की गहरी समझ रखती है। इंग्लिश विंग्लिश न केवल हंसाती है या रुलाती है बल्कि सोचने पर भी मजबूर करती है। फिल्म का मूड उन्होंने बेहद हल्का-फुल्का रखा है। बीच में कहानी इंच भर भी नहीं खिसकती है, लेकिन गौरी शिंदे ने फिल्म को बिखरने नहीं दिया।

फ्रेंच पुरुष के शशि के प्रति आकर्षण को उन्होंने बखूबी दिखाया है। दोनों के बीच कुछ दृश्य में वह फ्रेंच बोलता है और शशि हिंदी, लेकिन दोनों एक-दूसरे की बात समझ जाते हैं। कही-कही भाषा की जरूरत नहीं होती है और केवल भाव से हम सामने वाले के मन की अंदर की बात जान लेते हैं।

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लगभग 15 वर्ष बाद श्रीदेवी की वापसी हुई है, लेकिन कैमरे के सामने अभिनय करना वे नहीं भूली हैं। इन पन्द्रह वर्षों में उन्हें सैकड़ों फिल्मों के प्रस्ताव मिले, लेकिन सही स्क्रिप्ट की उनकी तलाश ‘इंग्लिश विंग्लिश’ पर आकर खत्म हुई और उनका चुनाव एकदम सही है। शशि की झुंझलाहट, उपेक्षा और आत्मविश्वास को उन्होंने बेहद शानदार तरीके से स्क्रीन पर पेश किया। आदिल हुसैन, सुलभा देशपांडे सहित तमाम कलाकारों का अभिनय शानदार है जो परिचित चेहरे नहीं हैं। अमिताभ बच्चन दो-तीन सीन में नजर आते हैं और ये सीन हटा भी दिए जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता है।

इंग्लिश विंग्लिश एक अनोखे विषय, शानदार निर्देशन और श्रीदेवी के बेहतरीन अदाकारी की वजह से देखी जा सकती है।

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