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एक्शन रिप्ले : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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निर्माता-निर्देशक : विपुल शाह
संगीत : प्रीतम
कलाकार : अक्षय कुमार, ऐश्वर्या राय, नेहा धूपिया, किरण खेर, ओम पुरी, आदित्य राय कपूर, रणविजय, राजपाल यादव, रणधीर कपूर
यू सर्टिफिकेट * 2 घंटे 15 मिनट
रेटिंग : 2/5

टाइम मशीन का आइडिया ही रोमांचक है। हर व्यक्ति इस बारे में अपनी कल्पना की उड़ान भरता है। उसे भविष्य में जाना है या अतीत में, इस बारे में विचार करता है।

कई फिल्में टाइम मशीन पर बनी है और गुजराती नाटक पर आधारित विपुल शाह ने भी ‘एक्शन रिप्ले’ बनाई है, जिसमें टाइम मशीन की कल्पना है। एक बेटा अतीत में जाकर अपने माँ-बाप की अरेंज मैरिज को लव मैरिज में बदलना चाहता है क्योंकि वे आए दिन झगड़ते रहते हैं।

पहली बात तो ये कि झगड़ने का शादी के तरीके से कोई संबंध नहीं है। ऐसा तो है नहीं कि लव मैरिज करने वाले झगड़ते नहीं हैं या तलाक नहीं लेते हैं। उधर अरेंज मैरिज वाले भी पूरी उम्र प्यार में गुजार देते हैं। ‍

इस तर्क-वितर्क के बावजूद ये तो मानना पड़ेगा कि आइडिया रोचक है, लेकिन जरूरी नहीं कि आइडिये के उम्दा होने से फिल्म भी अच्छी बन जाए। कसावट वाली स्क्रिप्ट, कमाल का डायरेक्शन, जोरदार एक्टिंग व डॉयलॉग्स की भी जरूरत होती है।

‘एक्शन रिप्ले’ की सबसे बड़ी खामी इसकी स्क्रिप्ट है। इसमें कसावट नहीं है। लॉजिक नहीं है। कई ट्रेक्स आधे-अधूरे से लगते हैं। एक-दो कैरेक्टर्स को छोड़ अन्य को उभरने का मौका ही नहीं मिला। फिल्म मनोरंजन तो करती है, लेकिन टुकड़ों-टुकड़ों में। फिल्म देखने के बाद लगता है कि भरपेट मनोरंजन नहीं हो पाया, कुछ कसर बाकी रह गई।

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बंटी (आदित्य रॉय कपूर) अपने माँ माला (ऐश्वर्या राय) और पिता किशन (अक्षय कुमार) के झगड़ों से बहुत परेशान है। दोनों की बिलकुल नहीं बनती। अपनी गर्लफ्रेंड तान्या (सुदीपा सिंह) के दादा (रणधीर कपूर) के द्वारा बनाई गई टाइम मशीन के जरिये वह 35 वर्ष पीछे चला जाता है।

उसके माँ-बाप पड़ोसी रहते हैं और उनकी शख्सियत एक-दूसरे से बिलकुल जुदा। एक उत्तर है तो दूसरा दक्षिण। किशन एकदम दब्बू किस्म का इंसान है और माला तेजतर्रार लड़की। बंटी दोनों के बीच प्यार का रिश्ता कायम करना चाहता है जो बेहद मुश्किल काम है क्योंकि किशन के पिता (ओम पुरी) और माला की माँ (किरण खेर) भी एक-दूसरे को नापसंद करते हैं। किस तरह बंटी इस काम को करने में सफल होता है यह फिल्म का सार है।

फिल्म शुरुआती घंटे में धीमी है। इस वजह से बोरियत भी होती है। स्क्रीन पर जो दिखाया जा रहा है उससे कोई जुड़ाव महसूस नहीं होता। अक्षय कुमार और ऐश्वर्या की लड़ाई बेहद बनावटी है। ऐसा लगता है कि केवल लड़ने के दृश्य दिखाना है इसलिए वे लड़ रहे हैं। फिल्म दूसरे घंटे में रफ्तार पकड़ती है और कुछ मनोरंजनक दृश्य देखने को मिलते हैं।

लेखक और निर्देशक के पास सत्तर का दशक दिखाने का बढ़िया मौका था जो उन्होंने व्यर्थ कर दिया। केवल कान पर बाल रखने या बेलबॉटम पहनाकर ही उस दशक को सामने खड़ा करने की कोशिश की गई है। जबकि वर्तमान समय से उस समय में गए व्यक्ति के जरिये दोनों समय की तुलना कर हास्य रचने का एक बेहतरीन अवसर था।

सत्तर के दशक के जो लोग या किरदार दिखाए गए वे कार्टून की तरह नजर आते हैं। क्या उस दौर में सारे लोग इस तरह लाउड थे? जहाँ तक नई पीढ़ी को उस दौर से परिचित कराने का सवाल है तो वो टीवी पर उस दौर की फिल्म देख इस बारे में जानती है।

फिल्म की स्क्रिप्ट में कई खामियाँ हैं और अगर फिल्म में एंटरटेनमेंट ना हो तो इन कमियों की ओर ध्यान जाता है। मसलन बंटी अचानक अक्षय और ऐश्वर्या के परिवार के इतने नजदीक कैसे पहुँच जाता है? हर मामले में वह कैसे दखल देता है? ऐसे कई प्रश्न दिमाग में उठते हैं।

अक्षय और ऐश्वर्या के बीच वह प्रेम के बीज बोता है, लेकिन उनके प्रेम को दर्शक महसूस नहीं कर पाता। ओम पुरी-किरण खेर और नेहा धूपिया-आदित्य राय कपूर के ट्रेक्स भी अधूरे से लगते हैं।

निर्देशक के रूप में विपुल शाह में कल्पनाशीलता का अभाव नजर आता है। कमजोर स्क्रिप्ट का असर तो उनके डायरेक्शन पर पड़ा ही है, लेकिन वे भी अपने काम से प्रभावित नहीं कर पाए। फिल्म के सारे कलाकारों से उन्होंने ओवर एक्टिंग करवाई है।

अक्षय कुमार ने अपने किरदार को ठीक से पेश किया है, लेकिन उनका लुक बेहूदा है। पता नहीं उन्हें इतनी घटिया विग क्यों पहनाई गई? टॉमबॉय गर्ल के रूप में ऐश्वर्या राय सुंदर लगीं और उनका अभिनय भी उम्दा है।

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आदित्य रॉय कपूर इन सभी से बेहतर साबित हुए हैं। रणविजय प्रभावित नहीं कर पाए। अक्षय और ऐश पर इतना फोकस किया गया है कि किरण खेर, ओम पुरी, राजपाल यादव, नेहा धूपिया को उभरने का मौका ही नहीं मिला।

प्रीतम का संगीत भी फिल्म का प्लस पाइंट है। जोर का झटका, बेखबर और नखरे हिट हो चुके हैं और इनका फिल्मांकन भी उम्दा है। फिल्म का बैकग्राउंड सत्तर के दशक को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है और अच्छा बन पड़ा है।

कुल मिलाकर ‘एक्शन रिप्ले’ उन आशाओं पर खरी नहीं उतर पाती जो दर्शक इसे देखने के पहले लेकर जाता है।

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