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एक मैं और एक तू : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : धर्मा प्रोडक्शन्स, यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : करण जौहर, रॉनी स्क्रूवाला, हीरू जौहर
निर्देशक : शकुन बत्रा
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : इमरान खान, करीना कपूर, बोमन ईरानी, रत्ना पाठक शाह, राम कपूर
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 1 घंटा 52 मिनट * 15 रील
रेटिंग : 3.5/5

‘एक मैं और एक तू’ में करीना कपूर की ही हिट फिल्म ‘जब वी मेट’ को महसूस किया जा सकता है। उसमें भी बोरिंग किस्म का लड़का संयोग से जिंदगी के हर सेकंड का आनंद उठाने वाली लड़की के संपर्क में आता है। उससे जिंदगी जीने का अंदाज सीखता है और प्यार कर बैठता है। इसी से मिलती-जुलती स्टोरी ‘एक मैं और एक तू’ में भी देखने को मिलती है। हालांकि ‘एक मैं और एक तू’ में नई बात यह है कि हीरो-हीरोइन में शादी हो जाती है। दोनों शादी तोड़ने की कार्रवाई करते हैं और इस दौरान उनमें दोस्ती हो जाती है।

राहुल (इमरान खान) और रिहाना (करीना कपूर) की परवरिश बिलकुल अलग माहौल में हुई है। राहुल अपने डैडी के सामने मुंह नहीं खोल पाता। टाई भी वो अपने पिता से पूछ कर पहनता है। मम्मी के कहने पर हर कौर 32 बार चबा कर खाता है। दिन में तीन बार ब्रश करता है और अंडरवियर भी इस्त्री कर पहनता है। माना कि इनमें से कुछ अच्छी आदते हैं, लेकिन उस पर बहुत ज्यादा मैनर्स लाद दिए गए हैं जिनका वजन ढोते-ढोते वह परेशान हो गया है। वह 25 वर्ष का हो गया है, लेकिन उसके पैरेंट्सं अभी भी उसे दस वर्ष का बच्चा मानते हैं।

दूसरी ओर रिहाना अपनी मर्जी की मालकिन है। अपनी तरीके से लाइफ एंजॉय करती है। पैरेंट्स का किसी किस्म का उस पर प्रेशर नहीं है। रिहाना और उसके डैड के संबंध इतने खुले हुए हैं कि वे अपनी बेटी से पूछ लेते हैं कि जिस इंसान से उसने गलती से शादी कर ली है, उसके साथ वह सोई है या नहीं।

लास वेगास में रहने वाले ये दोनों बंदे जॉबलेस हैं। क्रिसमस के पहले वाली रात में खूब शराब पी लेते हैं और नशे में वेडिंग चैपल जाकर शादी कर लेते हैं। लास वेगास में आप कभी भी और किसी भी हाल में शादी कर सकते हैं। सुबह नींद खुलती है तो गलती का अहसास होता है। वे अपनी शादी को रद्द (एनल्ड) करने के लिए दौड़ते हैं। इसमें कुछ दिन लगते हैं और इस दौरान दोनों की जिंदगी में कई बदलाव आते हैं।

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कहानी जानी-पहचानी लगती है, लेकिन शकुन बत्रा का निर्देशन इतना बढिया है कि फिल्म बांध कर रखती है। हल्के-फुल्के तरीके से उन्होंने बात कही है। कहीं भी इमोशनल या ड्रामेटिक सीन का ओवरडोज नहीं है। फिल्म के दोनों कैरेक्टर्स एक-दूसरे से जुदा है और शकुन ने डिटेल के साथ उन्हें पेश किया है। इमरान और करीना के स्वभाव को देख अंदाज लगाया जा सकता है कि उनकी परवरिश किस माहौल में हुई है।

आमतौर पर इंटरवल के बाद वाले हिस्से में लव स्टोरीज पर आधारित फिल्में बिखर जाती हैं, लेकिन इस हिस्से को शकुन ने बहुत ही अच्छी तरह संभाला है। कहानी मुंबई शिफ्ट होती है और कुछ करीना के परिवार वाले कुछ उम्दा सीन देखने को मिलते हैं। अभिजात्य वर्ग के बनावटीपन को डिनर टेबल पर फिल्माए गए सीन के जरिये बखूबी पेश किया गया है, जिसमें इमरान का गुस्सा फूट पड़ता है। इमरान और करीना की प्यार को लेकर गलतफहमी वाला सीन और इमरान के पिता द्वारा उसको टाई पहनाने वाले दृश्य भी तारीफ के काबिल हैं।

लड़के और लड़की के बीच दोस्ती और प्यार की लाइन बड़ी धुंधली होती है और इसके इर्दगिर्द फिल्म बनाना आसान नहीं है, लेकिन शकुन इसमें सफल रहे हैं और फिल्म का अंत भी ताजगी लिए हुए है। फिल्म में कनवर्सेशन (बातचीत) ज्यादा है और एक्शन कम, इसलिए स्क्रिप्ट और डायलॉग कसे हुए होना चाहिए। इसमें लेखक आयशा देवित्रे और शकुन बत्रा कामयाब रहे हैं क्योंकि इमरान और करीना की बातचीत सुनना अच्छा लगता है।

संगीतकार अमित त्रिवेदी और गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य का उल्लेख भी जरूरी है। दोनों ने सुनने लायक और युवा संगीत दिया है। गानों को स्क्रिप्ट में ऐसे गूंथा गया है कि गानों के जरिये कहानी आगे बढ़ती रहती है। गुब्बारे, आंटीजी और एक मैं और एक तू जैसे गाने तो पहली बार सुनने में ही पसंद आ जाते हैं।

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फिल्म की लीड पेयर करीना कपूऔर इमरान खाकी कैमिस्ट्री खूब जमी है। इसका सारा श्रेय उनकी एक्टिंग को जाता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ करीना न केवल सुंदर होती जा रही हैं बल्कि उनका अभिनय भी निखरता जा रहा है। रिहाना की जिंदादिली को उन्होंने जिया है और पूरी फिल्म में उनका अभिनय देखने लायक है।

अभिनय के मामले में इमरान भी कम नहीं है। उनके किरदार की अपने पिता के सामने बोलती बंद हो जाती है और इन दृश्यों में उन्होंने बेहतरीन अभिनय किया है। बोमन ईरानी, रत्ना पाठक शाह, राम कपूर सहित सारे कलाकारों ने अच्छा काम किया है।

‘एक मैं और एक तू’ स्वीरोमांटिक मूवी है। इस फिल्म को देख वेलेंटाइन वीक को बेहतर बनाया जा सकता है।

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