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एक विलेन : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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'एक विलेन' की कहानी साधारण है, लेकिन फिल्म के दमदार किरदार और मोहित सूरी के अच्छे निर्देशन के कारण फिल्म देखते हुए समय अच्छे से कट जाता है। यह फिल्म कोरियन मूवी 'आय सा द डेविल' (2010) से प्रेरित है, जिसमें भारतीय दर्शकों की पसंद के मुताबिक बदलाव किए गए हैं।

फिल्म में एक हीरो, एक हीरोइन और एक विलेन है जिनके इर्दगिर्द बॉलीवुड की ज्यादातर कमर्शियल फिल्में घूमती हैं। एक किरदार ऐसा है जिसकी मौत करीब है और मरने के पहले वह अपनी कुछ ख्वाहिश, जैसे- बारिश में मोर का नृत्य देखना, एक दिन के लिए प्रसिद्ध होना, किसी की जिंदगी बचाना, पूरी कर लेना चाहता है। वह आशावादी है।

दूसरा किरदार गुंडा किस्म का है। एक गैंगस्टर के लिए काम करता है, लेकिन उसके अंदर अच्छा इंसान जिंदा है। जरूरत है उसे सही राह दिखाने की। तीसरा किरदार लल्लू किस्म का है। उसे कोई भी डरा-धमका लेता है, लेकिन सभी अनजान है कि उसके अंदर एक खतरनाक विलेन छिपा है जो वक्त आने पर छोटी सी बात के लिए किसी की भी हत्या कर देता है।

ये तीनों किरदारों एक-दूसरे की राह में आते हैं और उनकी जिंदगी में उथल-पुथल मच जाती है। तीनों की कहानियों को अच्छे तरीके से गूंथा गया है जिससे नियमित अंतराल में फिल्म में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। जहां एक ओर फिल्म में दो किरदारों के अंधेरे पक्ष हावी रहते हैं तो एक किरदार का उजला पक्ष फिल्म का संतुलन बनाए रखता है।

आमतौर पर फिल्मों के दूसरे हाफ में घटनाक्रमों में तेजी आती है, लेकिन 'एक विलेन' के निर्देशक मोहित ने फिल्म को ऐसा पेश किया है मानो रिवर्स में देख रहे हों। पहले हाफ में ही उन्होंने सारे घटनाक्रम और एक महत्वपूर्ण घटना को दर्शकों के सामने रख दिया है। इंटरवल होने पर लगता है कि फिल्म में अब सब कुछ तो हो गया है और दूसरे हाफ में निर्देशक के दिखाने के लिए बचा ही क्या है? ये उत्सुकता दूसरे हाफ में थोड़ी निराशा में बदलती है क्योंकि वाकई में निर्देशक के पास कुछ था ही नहीं सिवाय घटनाओं के सिरे को एक-दूसरे के जोड़ने के, लेकिन फिल्म का आशावादी अंत इसे बचा लेता है।

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मोहित सूरी का प्रस्तुतिकरण उम्दा है। उन्होंने फ्लैशबेक का अच्छा उपयोग किया है। फिल्म अतीत और वर्तमान में लगातार जम्प करती रहती है। मोहित ने अपने किरदारों को बारीकी से समझा और उनकी मनोदशा को स्क्रीन पर अच्छी तरह से पेश किया। उनके बेहतरीन निर्देशन की वजह से ही फिल्म बांध कर रखती है। एक गुंडे की जिंदगी में प्यार का आगमन और उसकी मानसिक सोच को बदलने के अहसास को अच्छी तरह से पेश किया गया है।

जहां तक स्क्रिप्ट का सवाल है तो कुछ खामियां हैं, जैसे, विलेन तक फिल्म का हीरो बहुत आसानी से पहुंच जाता है, पागलखाने से एक वृद्ध को भगाने वाला सीन कमजोर है, अस्पताल में रितेश और सिद्धार्थ की फाइट वाला सीन हास्यास्पद है। इससे ज्यादा चर्चा नहीं की जा सकती क्योंकि सस्पेंस खुल सकता है। आइटम सांग की फिल्म में कोई जरूरत नहीं थी। करेले पर नीम तब चढ़ गया जब इस आइटम सांग में प्राची देसाई जैसी ठंडी अभिनेत्री नजर आईं।

प्रोमो और प्रचार के जरिये फिल्म थ्रिलर होने का आभास देती है, लेकिन इस फिल्म को थ्रिलर कहना गलत होगा क्योंकि सस्पेंस जैसा इसमें कुछ भी नहीं है और न ही विलेन तक पहुंचने के लिए भागमभाग। सब कुछ स्पष्ट है कि कौन विलेन है और क्यों वह यह सब कर रहा है।

फिल्म का संगीत और पार्श्व संगीत प्रस्तुतिकरण को दमदार बनाता है। मोहित की फिल्मों का संगीत वैसे भी हमेशा से हिट रहा है। कहते हैं कि उनके घर यदि करोड़ों रुपये लेकर फिल्म निर्माता आ जाए तो मोहित उसे मिलने के लिए समय नहीं देते, लेकिन यदि कोई स्ट्रगलर म्युजिशियन या सिंगर आ जाए तो वे फौरन उससे मिल लेते हैं। अंकित तिवारी, मिथुन और सोच बैंड ने बेहतरीन काम किया है और गलिया, बंजारा, जरूरत जैसे गीत मधुर दिए हैं।

एंग्री यंग मैन के किरदार में सिद्धार्थ मल्होत्रा जमे हैं। उनका जो लुक है वो किरदार पर सूट करता है। श्रद्धा कपूर ने बबली गर्ल का रोल निभाया है। कुछ दृश्यों में उनकी अभिनय की कोशिश नजर आती हैं तो कुछ दृश्य में वे सहज हैं। रितेश देशमुख को लंबे समय बाद ऐसे रोल में देखा गया जिसमें उन्हें कॉमेडी नहीं करना थी और रितेश ने अपना काम बखूबी किया। इन तीनों को छोड़ अन्य कलाकारों का चयन ठीक से नहीं किया गया। आमना शरीफ, रैमो फर्नांडिस, प्राची देसाई अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय नहीं कर पाए।

कुल मिलाकर 'एक विलेन' मनोरंजन के मामले में विलेन नहीं है।

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बैनर : बालाजी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : शोभा कपूर, एकता कपूर
निर्देशक : मोहित सूरी
संगीत : मिथुन, अंकित तिवारी
कलाकार : सिद्धार्थ मल्होत्रा, श्रद्धा कपूर, रितेश देशमुख, आमना शरीफ, रैमो फर्नांडिस, कमाल रशीद खान
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 9 मिनट 10 सेकंड
रेटिंग : 3/5

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