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एट बाय टेन तस्वीर : आउट ऑफ फोकस

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हमें फॉलो करें एट बाय टेन तस्वीर

समय ताम्रकर

IFM
निर्माता : शैलेन्द्र सिंह
निर्देशक : नागेश कुकुनूर
संगीत : सलीम-सुलैमान, नीरज श्रीधर
कलाकार : अक्षय कुमार, आयशा टाकिया, शर्मिला टैगोर, जावेद जाफरी, गिरीश कर्नाड, अनंत महादेवन, बेंजामिन गिलानी
रेटिंग : 1/5



जिन लोगों के परिवार का कोई सदस्य गुम हो जाता है और जिसे ढूँढ पाने में वे नाकाम रहते हैं, उनमें से कुछ लोग ऐसे बाबाओं के पास जाते हैं जो उन्हें बताते हैं कि वो इनसान किस दिशा में है या कौन से शहर में है। कहा जाता है कि उनके पास ऐसी शक्ति (?) रहती है। ‘एट बाय टेन : तस्वीर’ के नायक जय (अक्षय कुमार) को भी ऐसी विशिष्ट शक्ति प्राप्त है। वह तस्वीर देखकर एकदम सटीक बता देता है कि फलाँ इनसान कहाँ है। लोगों को उस पर विश्वास है क्योंकि वह सब कुछ सही बताता है, लेकिन उसकी प्रेमिका, दोस्त, माँ पता नहीं उस पर क्यों अविश्वास करते हैं।

जय अपने पिता से नाराज है क्योंकि उनके व्यवसाय करने के तरीके उसे पसंद नहीं हैं। आखिर तक पता नहीं चलता कि वो तौर-तरीके क्या थे, जिससे दोनों के बीच अनबन थी। जय के पिता (बेंजामिन गिलानी) की जहाज पर से गिरने की वजह से मौत हो जाती है। मरने के ठीक पूर्व वे अपने भाई और दो दोस्तों के साथ फोटो उतरवाते हैं। ये फोटो खींचती हैं जय की माँ (शर्मिला टैगोर)।

अचानक एक पुलिस कम जासूस (जावेद जाफरी) टपक पड़ता है, जो जय को बताता है उसके पिता की हत्या हुई है। जय तस्वीर को देखता है। एक-एक कर उन आदमियों की आँखों में चला जाता है जो वहाँ पर मौजूद थे। उसे पता चल जाता है कि कौन लोग उसके पिता की मौत के कारण हैं। आधी से ज्यादा फिल्म तक तो गलत विश्लेषण करता रहता है और अंत में वह सही कातिल तक पहुँचता है।

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निर्देशक और लेखक नागेश कुकुनूर जब सही कातिल पर से परदा उठाते हैं तो आप लेखक की बेवकूफी पर सिवाय आश्चर्य के कुछ नहीं कर सकते। उस कातिल को सही ठहराने के लिए जो तर्क दिए गए हैं वे बेहद बेहूदा हैं। आश्चर्य होता है नागेश की समझ पर, उन लोगों की समझ पर जो इस फिल्म से जुड़े हुए हैं।

क्यों कातिल अपने पिता की हत्या करता है? वह क्यों अपनी माँ को चाकू मारता है? ऐसे सैकड़ों प्रश्न आपके दिमाग में उठेंगे, जिनका जवाब कहीं नहीं मिलता। अनेक गलतियों से स्क्रीनप्ले भरा हुआ है। कुछ पर गौर फरमाइए। जय की माँ को चाकू मारा गया है। वह जय को कातिल का नाम बताने के बजाय उसे एक बक्सा खोलकर तस्वीर देखने की बात कहती है। जय भी एक बार भी नहीं पूछता कि माँ आपको चाकू किसने मारा है। बताया गया है कि जय तस्वीर देखते समय वहीं पहुँच जाता है जहाँ तस्वीर उतारी गई है। यदि उसी समय कोई तस्वीर को नष्ट कर दे तो वह वर्तमान में वापस नहीं आ सकता है। फिल्म के अंत में कातिल तस्वीर को जला देता है और फिर भी जय वर्तमान में लौट आता है। कैसे? कोई जवाब नहीं है।

नागेश कुकुनूर की कहानी का मूल विचार अच्छा था, लेकिन उसका वे सही तरीके से निर्वाह नहीं कर सके और ढेर सारी अविश्वसनीय गलतियाँ कर बैठे। निर्देशक के रूप में भी वे प्रभावित नहीं कर पाए। ‘बॉम्बे टू बैंकॉक’ के बाद उन्होंने लगातार दूसरी घटिया फिल्म दी है, इससे साबित होता है कि कमर्शियल फिल्म बनाना उनके बस की बात नहीं है।

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अक्षय कुमार के चेहरे के भाव पूरी फिल्म में एक जैसे रहे, चाहे दृश्य रोमांटिक हो या भावनात्मक। आयशा टाकिया को करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। जावेद जाफरी कहीं हँसाते हैं तो कहीं खिजाते हैं। गिरीश कर्नाड, शर्मिला टैगोर, अनंत महादेवन, बेंजामिन गिलानी और रुशाद राणा ने अपने किरदार अच्छे से निभाए। विकास शिवरमण ने कनाडा और दक्षिण अफ्रीका को बड़ी खूबसूरती के साथ स्क्रीन पर पेश किया।

कुल मिलाकर ‘एट बाय टेन : तस्वीर’ बेहद घटिया फिल्म है, जिसे अक्षय कुमार के प्रशंसक भी पसंद नहीं करेंगे।

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