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ऑल द बेस्ट : फिल्म समीक्षा

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हमें फॉलो करें ऑल द बेस्ट

समय ताम्रकर

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बैनर : अजय देवगन फिल्म्स
निर्माता : अजय देवगन
निर्देशक : रोहित शेट्टी
गीतकार : कुमार
संगीतकार : प्रीतम
कलाकार : अजय देवगन, बिपाशा बसु, फरदीन खान, संजय दत्त, मुग्धा गोडसे, असरानी, मुकेश तिवारी, जॉनी लीवर, संजय मिश्रा
रेटिंग : 2/5

‘गोलमाल’ और ‘गोलमाल रिटर्न’ की सफलता के बाद रोहित शेट्टी उस भ्रम का शिकार हो गए, जो कई फिल्मकारों को लील गया। रोहित को लगने लगा है कि उन्हें सफलता का फॉर्मूला मिल गया है, जिसका नतीजा ‘ऑल द बेस्ट’ में नजर आता है। यह फिल्म दोहराव का शिकार है और रोहित कुछ नया नहीं दे पाए।

‘मिस्टेकन आइडेंटिटी’ को लेकर कई हास्य फिल्में बनी हैं और यही थीम ‘ऑल द बेस्ट’ की भी है, लेकिन इस फिल्म के हास्य में वो धार नहीं है जो पूरी फिल्म में दर्शकों को हँसने पर मजबूर कर दे।

वीर (फरदीन खान) विदेश में रहने वाले अपने सौतेले भाई धरम कपूर (संजय दत्त) द्वारा भेजी गई पॉकेटमनी जिंदगी गुजारता है। पॉकेटमनी में बढ़ोतरी के लिए वह धरम से झूठ बोलता है कि उसने अपनी गर्लफ्रेंड विद्या (मुग्धा गोडसे) से शादी कर ली है। वीर को झूठ बोलने में प्रेम चोपड़ा (अजय देवगन) उसकी मदद करता है। अजय की पत्नी जाह्नवी (बिपाशा बसु) एक टूटा-फूटा जिम चलाती है।

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एक दिन अचानक वीर के घर धरम आ जाता है। झूठ को सच साबित करने के चक्कर में जाह्नवी को विद्या बना दिया जाता है। इसके बाद शुरू होता है झूठ को छिपाने का लंबा सिलसिला जो फिल्म के अंत तक चलता रहता है।

‘राइट बैड, रांग हसबैण्ड’ से प्रेरित ‘ऑल द बेस्ट’ सिंगल ट्रेक पर चलती है। पूरी फिल्म में प्रेम और वीर, धरम के आगे यह साबित करने में लगे रहते हैं कि जाह्नवी ही विद्या है। फिल्म में कई किरदार आते हैं, जिससे कई बार प्रेम और वीर की पोल खुलते-खुलते रह जाती है। तरह-तरह के बहाने वे बनाकर धरम को बेवकूफ बनाते हैं। दो-चार बार तो यह बहाने ठीक लगते हैं, लेकिन बार-बार इन्हें देख कोफ्त होने लगती है।

इतना बड़ा बिजनैस मैन धरम क्या इतना बड़ा बेवकूफ है जो इतनी सी बात नहीं जान पा रहा है। धरम जानबूझकर अंजान बनता तो फिल्म थोड़ी रोचक हो सकती थी। धरम के आगे प्रेम और वीर की पोल खुलने वाला प्रसंग फिल्म का रोचक हिस्सा होना था, लेकिन इसे बड़े हल्के तरीके से निपटा दिया गया। फिल्म का समापन भी ठीक से नहीं किया गया है।

निर्देशक रोहित शेट्टी ने हर सीन में हास्य पैदा करने की कोशिश की है। कलाकारों से मुँह बनवाए, उटपटाँग हरकतें करवाई, लेकिन बात नहीं बनी।

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फिल्म के सारे लीड कलाकार कॉमेडी के मामले में कमजोर माने जाते हैं, इसलिए भी फिल्म का प्रभाव कम हो गया। हर कलाकार से लाउड एक्टिंग करवाई गई है। अजय देवगन, फरदीन, बिपाशा, संजय दत्त का अभिनय ठीक कहा जा सकता है। मुग्धा गोडसे अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाई। जॉनी लीवर, संजय मिश्रा और असरानी का काम उम्दा है। फिल्म का संगीत और बैकग्राउंड म्यूजिक शोरगुल भरा है।

कुल मिलाकर ‘ऑल द बेस्ट’ एक औसत फिल्म है।

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