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ओह माय गॉड : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : एस. स्पाइस स्टुडियोज़, प्लेटाइम क्रिएशन्स, ग्रेजिंग गोट प्रोडक्शन्स, वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स
निर्माता : अक्षय कुमार, अश्विनी यार्डी, परेश रावल
निर्देशक : उमेश शुक्ला
संगीत : हिमेश रेशमिया, अंजान-मीत ब्रदर्स, सचिन-जिगर
कलाकार : अक्षय कुमार, परेश रावल, मिथुन चक्रवर्ती, महेश मांजरेकर, गोविंद नामदेव, सोनाक्षी सिन्हा-प्रभुदेवा
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 12 मिनट
रेटिंग : 3/5

ओह माय गॉड गवान के खिलाफ न होकर उनके नाम पर व्यवसाय चलाने वालों के खिलाफ है। धर्म का भय बताकर धर्म के नाम पर जो लूट-खसोट की जा रही है उन लोगों पर व्यंग्य करते हुए उन्हें बेनकाब करने की कोशिश की गई है।

आस्था के नाम पर अंधे बने हुए लोग भी कम दोषी नहीं हैं। मंदिरों में चढ़ावे के नाम पर पैसे, हीरे-जवाहरात, मुकुट, सिंहासन चढ़ाए जाते हैं जिनकी कीमत सुन हम दंग रह जाते हैं। एक तरफ भोजन के अभाव में लोग भूखे मर रहे हैं तो दूसरी ओर लीटरों दूध भगवान पर चढ़ाया जा रहा है जो मंदिर से निकलकर गटर में मिल जाता है।

लोगों को तन ढंकने के लिए चादर नहीं है और दरगाह में चादर चढ़ाई जाती हैं। कुछ साधु-संत भगवान का रूप बने हुए हैं, सोने के सिंहासन पर वे बैठते हैं, लाखों की कार में घूमते हैं और शानो-शौकत में राजा-महाराजाओं को पीछे छोड़ते हैं। इन लोगों के नकाब खींचने का काम ‘ओह माय गॉड’ करती है।

धर्मभीरू लोग इतने डरे हुए हैं कि हजारो वर्ष पुरानी परंपराओं का पालन बिना सोचे-समझे अभी भी कर रहे हैं। उन्होंने यह बात अपने माता-पिता से सीखी है और इसे वे अपने बच्चों को भी सिखाते हैं। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि ये परंपराएं उस कालखंड में उस दौर के सामाजिक दशा को देखकर बनाई गई थी, जिनका वर्तमान में कोई महत्व नहीं है।

रीतियां कुरीति बन चुकी हैं। भगवान से सौदे किए जाते हैं कि तुम मेरा ये काम कर दोगे तो मैं इतने रुपये चढ़ाऊंगा, उपवास करूंगा। ताबीज पहन कर, अंगुठियों में पत्थर पहन कर समझा जा रहा है कि उनका भविष्य सुधर जाएगा।

ताज्जुब की बात तो ये है कि ये अनपढ़ नहीं बल्कि पढ़े-लिखे लोग भी कर रहे हैं जबकि आस्थाएं पाखंड में बदल चुकी हैं और अंधविश्वास की जड़ें बहुत गहरी हो गई हैं। सभी साधु-संतों को ढोंगी नहीं बताया गया है। फिल्म में एक संत ऐसा है जो ढोंगियों को पोल देखते हुए बहुत खुश होता है। फिल्म में बताया गया है कि गीता, कुरान और बाइबल को समझे बिना लोग धर्म की अपने तरीके से व्याख्या कर रहे हैं।

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कांजी मेहता के किरदार से इतनी गंभीर बातें बेहद हल्के-फुल्के तरीके से फिल्म में दिखाई गई है। मोटे तौर पर सोचा जाए तो भगवान को मानना भी एक तरह का अंधविश्वास है। लेकिन फिल्म में भगवान को भी दिखाया गया है और इसको लेकर कुछ लोगों को आपत्ति भी हो सकती है। खैर, भगवान यहां खुद खुश नहीं है कि उनके नाम पर किस तरह अंधविश्वास फैल चुका है।

कांजी भाई की भूकंप में दुकान बरबाद हो जाती है और इंश्योरेंस कंपनी इसे ‘एक्ट ऑफ गॉड’ करार देते हुए हर्जाना देने से इंकार कर देती है। कांजी भाई भगवान के खिलाफ मुकदमा दायर करते हैं कि यदि उन्होंने उनकी दुकान बरबाद की है तो उन्हें हर्जाना देना पड़ेगा। कोर्ट कांजी भाई को कहती है कि वे भगवान होने का सबूत दें। कांजी भाई सभी धर्मों के पंडित, मौलवी और पादरी को लीगल नोटिस भेजते हैं।

गुजराती नाटक ‘कांजी विरुद्ध कांजी’ और हिंदी नाटक ‘किशन वर्सेस कन्हैया’ पर यह फिल्म आधारित है। यह एक ऐसा विषय है जिसे ‍एक फिल्म में समेट पाना बेहद मुश्किल काम है। ‘ओह माय गॉड’ में भी कई बातें अनुत्तरित रह जाती है। कई जगह फिल्म दिशा भटक जाती है, लेकिन फिर भी यह फिल्म अपना मैसेज देने में कामयाब रहती है।

खुद लेखक इस बात को जानते हैं कि कुछ लोगों की सोच इस फिल्म को देख बदल सकती है, लेकिन ये असर ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाएगा। इसीलिए फिल्म के अंत में परेश रावल से संत बने मिथुन चक्रवर्ती कहते हैं कि धर्म और आस्था अफीम के नशे की तरह है, जिन लोगों की सोच तुमने बदली है थोड़े दिनों बाद मेरे आश्रमों में नजर आएंगे।

मिथनु, पूनम झावर और गोविंद नामदेव के किरदार रियल लाइफ से प्रेरित हैं। किससे प्रेरित हैं, यह पता करने में ज्यादा देर नहीं लगती है।

निर्देशक उमेश शुक्ला के पास नाटक तैयार था और उसको उन्होंने स्क्रीन पर अच्छे से उतारा। कलाकारों का चयन सटीक है जिससे उन्हें फिल्म को बेहतर बनाने में आसानी रही। स्क्रीनप्ले में कुछ कमियां हैं, लेकिन धर्म को लेकर हजारों सालों से बहस चली आ रही है इसलिए लेखक को दोष देना गलत होगा। ‍अंत में परेश रावल को बीमार करना और भगवान के चमत्कार से ठीक होना फिल्म को कमजोर करता है। फिल्म के कुछ संवाद तीखे हैं जो कुछ लोगों को चुभ सकते हैं।

परेश रावल इस फिल्म के हीरो हैं। कांजी भाई के रूप में किसी और को सोचना मुश्किल है। परेश की एक्टिंग की खास शैली है और उसी शैली में उन्होंने कांजी भाई का रोल निभाया है। अक्षय कुमार का रोल बेहद छोटा है, लेकिन भगवान के रूप में वे प्रभावित करते हैं। इस रोल के लिए जो सौम्यता और चेहरे पर शांति का भाव चाहिए था वो उनके चेहरे पर नजर आता है।

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मिथुन चक्रवर्ती ने अपनी ‘अदाओं’ से दर्शकों को हंसाया है और उन्होंने अपने किरदार को अश्लील नहीं होने दिया है। गोविंद नामदेव की एक्टिंग लाउड है, लेकिन उनके किरदार पर सूट होती है। पूनम झावेर को कम फुटेज मिले।

सोनाक्षी सिन्हा और प्रभुदेवा पर फिल्माया गया आइटम सांग ‘गो गो गोविंदा’ शानदार कोरियोग्राफी के कारण देखने लायक है।

‘ओह माय गॉड’ धर्मभीरू लोगों को यह बात सिखाती है कि भगवान से डरो नहीं बल्कि उनसे प्यार करो और इंसानियत को ही सबसे बड़ा धर्म मानो।

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