हीरो की शक्ति के बारे में स्पष्ट नहीं किया गया है। भविष्य देखने वाला अपने कॉलेज के ऑफिस का पता पूछते नजर आता है। मुंबई में आने पर पूरा जमाना उसके इस विशेष गुण के बारे में जान जाता है। क्या जवान होने तक उसने कभी किसी की जान नहीं बचाई या ऐसा कोई कारनामा नहीं किया, जिससे सभी को पता चले कि वह विशेष है। फिल्म का खलनायक दहशत फैलाने वालों की मदद करता है, लेकिन इसके लिए उसके पास कमजोर कारण है। इससे उसके प्रति नफरत नहीं पैदा होती। फिल्म की कहानी ठीक-ठाक है, लेकिन जो बात फिल्म को देखने लायक बनाती है वो है इसका प्रस्तुतिकरण। निर्देशक विवेक शर्मा ने फिल्म को हलके-फुलके अंदाज में ताजगी के साथ प्रस्तुत किया है, जिससे फिल्म देखने में बोरियत नहीं होती और मनोरंजन होता रहता है। संगीतकार साजिद-वाजिद का भी इसमें अहम हाथ है। उनके द्वारा बनाए गए तकरीबन सारे गाने अच्छे बन पड़े हैं। इन गीतों का फिल्मांकन खूबसूरत लोकेशन पर किया गया है। जैकी भगनानी की शक्ल एक आम लड़के की तरह है। अभिनय के अलावा उनसे मार-धाड़, डांस और स्टंट भी करवाए गए हैं ताकि वे ‘कम्प्लीट एक्टर’ लगें। जैकी का अभिनय ठीक है क्योंकि यह उनके घर की फिल्म है और सर्वश्रेष्ठ शॉट देने के लिए कई बार उन पर शॉट फिल्माए गए होंगे। अन्य फिल्मों में उनका अभिनय कैसा रहता है, ये देखने वाली बात होगी। डांस और एक्शन दोनों में वे कमजोर लगे।वैशाली देसाई खूबसूरती और अभिनय दोनों मामलों में औसत हैं। ऋषि कपूर, अर्चना पूरनसिंह, रितेश देशमुख ने अपने-अपने किरदार बखूबी निभाए हैं। छोटे से रोल में भी राजपाल यादव दर्शकों को हँसाने में कामयाब होते हैं।
तकनीकी रूप से फिल्म सशक्त है और फोटोग्राफी उल्लेखनीय है। फिल्म निर्माण में किसी किस्म की कंजूसी नहीं बरती गई है।
नई फिल्म देखे अरसा हो गया हो और हलकी-फुलकी टाइमपास फिल्म देखना चाहते हैं तो ‘कल किसने देखा’ के लिए महीनों बाद सिनेमाघर जाया जा सकता है।