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कार्तिक कॉलिंग कार्तिक

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निर्माता : रितेश सिधवानी, फरहान अख्तर
निर्देशक : विवेक ललवानी
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : फरहान अख्तर, दीपिका पादुकोण, राम कपूर, विवान, विपिन शर्मा, शैफाली शाह
यू/ए * 16 रील * दो घंटे 15 मिनट
रेटिंग : 3/5

कल्पना कीजिए कि यदि आपको आपका ही फोन आए तो क्या हो? आइडिया मजेदार है। इसी आइडिया को लेकर विजय ललवानी ने ‘कार्तिक कॉलिंग कार्तिक’ बनाई है।

कार्तिक नारायण (फरहान अख्तर) एक लूज़र है। ऑफिस में सबसे ज्यादा काम करने के बावजूद उसे बॉस की बातें सुननी पड़ती है। कोई उसका दोस्त नहीं है। साथ में काम करने वाली शोनाली मुखर्जी (दीपिका पादुकोण) को वो चाहता है। हजार से भी ज्यादा मेल उसने शोनाली के लिए टाइप किए हैं, लेकिन आत्मविश्वास नहीं है इसलिए सेव करके रखे हैं। पुरानी क्लासिकल हिन्दी फिल्म ‘छोटी सी बात’ यदि आपको याद है तो उसमें अमोल पालेकर ने जो किरदार निभाया था, कार्तिक भी उसी तरह का है।

कार्तिक के पास एक दिन घर पर उसके बॉस का फोन आता है। जोरदार डाँट खाने के बाद वह फोन फेंक कर तोड़ देता है। फिर नया इंस्ट्रुमेंट लाता है और उसके बाद रोजाना सुबह पाँच बजे कार्तिक के फोन आने शुरू हो जाते हैं। घबराकर कार्तिक टेलीफोन एक्सचेंज से पता लगवाता है, लेकिन वहाँ से उसे बताया जाता है कि उसे उसके द्वारा बताए गए वक्त पर कोई कॉल्स नहीं आ रहे हैं।

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फोन वाला कार्तिक कुछ ऐसी बातें बताता हैं कि कार्तिक की जिंदगी बदल जाती है। उसमें गजब का आत्मविश्वास आ जाता है। जिस ऑफिस से उसे निकाला गया था उसी ऑफिस में उसे चार गुना सैलेरी पर रखा जाता है। जो शोनाली उसकी तरफ देखती भी नहीं थी, वो उसकी गर्लफ्रेंड बन जाती है।

फोन वाला कार्तिक चेतावनी देता है कि यह बात किसी को बताना नहीं है, इसके बावजूद कार्तिक अपनी गर्लफ्रेंड को यह बात बता देता है। गर्लफ्रेंड उसे डॉक्टर के पास ले जाती है। कार्तिक की इस हरकत से फोन वाला कार्तिक उसकी जिंदगी बरबाद कर देता है। जॉब और गर्लफ्रेंड दोनों उससे संबंध तोड़ लेते हैं। फोन वाला कार्तिक कौन है? वह ऐसा क्यों कर रहा है? यह सस्पेंस है।

जब यह राज खुलता है तो कुछ दर्शक इसे डाइजेस्ट कर सकते हैं लेकिन कुछ के लिए इसे एक्सेप्ट करना आसान नहीं होगा।
विजय ललवानी फिल्म के राइटर भी हैं और डायरेक्टर भी। बतौर डायरेक्टर उन्होंने कहानी को स्क्रीन पर अच्छे से पेश किया है। फिल्म बाँधकर रखती है और दर्शक का फिल्म में इंट्रेस्ट बना रहता है। फिल्म का लुक यूथफुल है और मेट्रो कल्चर को कैरेक्टर अच्छी तरह से पेश करते हैं।

फरहान और दीपिका के रोमांस को बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है। दोनों की कैमेस्ट्री अच्छी लगती है। एक हॉट तो दूजा कूल। दोनों के कैरेक्टर को उम्दा तरीके से स्टेबलिश किया है। डॉयलॉग्स बेहतरीन हैं।

राइटर के रूप में विजय को थोड़ा हार्ड वर्क करना था, खासतौर पर सेकंड हाफ में लिखे गए कुछ दृश्य कमजोर हैं। इस हिस्से में फिल्म ‍सीरियस हो गई है। दो गाने बेवजह ठूँसे गए हैं। सस्पेंस को लेकर दर्शकों में वो थ्रिल पैदा नहीं कर पाए। कार्तिक को कौन कॉल कर रहा है इस नतीजे पर भी फिल्म अचानक पहुँच जाती हैं। फिल्म को समेटने में जल्दबाजी की गई है।

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फरहान अख्तर ने उम्दा अभिनय किया है। कार्तिक के किरदार को उन्होंने बारीकी से पकड़ा है। उनका साथ दीपिका पादुकोण ने बेहतरीन तरीके से निभाया है। सेकंड हाफ में दीपिका को कम अवसर मिले हैं और उनकी कमी खलती है। राम कपूर और शैफाली ने भी अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। फिल्म का संगीत मधुर है और तीन गाने सुनने लायक हैं।

कार्तिक कॉलिंग कार्तिक के अंत से आप भले ही सहमत ना हो, लेकिन उम्दा प्रस्तुतिकरण और बेहतरीन अभिनय के कारण यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है।

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