त्योहारों के इस मौसम में उल्लास का वातावरण है। ऐसे समय में यदि आप सुपरहीरो की कोई फिल्म देखने जाते हैं तो उम्मीदों का ये बस्ता साथ लिए जाते हैं कि फिल्म में ऐसे कई रोमांचकारी स्टंट्स देखने को मिलेंगे कि आप सीट से उछल जाएंगे, ताली-पिटने और सीटी बजाने वाले ऐसे सीन से हमारा सामना होगा जिसमें हमारा देशी सुपरहीरो विलेन को मात देगा। यानी मनोरंजन सबसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य शर्त होती है।
‘कृष 3’ में बॉलीवुड का सबसे हैंडसम हीरो है, दो खूबसूरत और प्रतिभाशाली अभिनेत्रियां हैं, इसे एक ऐसे निर्देशक ने निर्देशित किया है जिसका शानदार ट्रेक रिकॉर्ड है, फिल्म में पानी की तरह पैसा बहाया गया है, कुछ हॉलीवुड फिल्मों को टक्कर देते स्पेशल इफेक्ट्स हैं, फिर भी फिल्म देखने के बाद महसूस होता है कि कुछ कसर बाकी रह गई। फिल्म में मनोरंजन की कमी है। स्क्रीन पर जो घटनाक्रम घटते हैं उनसे जुड़ाव महसूस नहीं होता है और यही फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है।
लगभग सात वर्ष राकेश रोशन फिल्म निर्देशन के मैदान में उतरे हैं और उन्होंने ‘कृष’ के बाद सीधे ‘कृष 3’ बना दी है। कई लोगों ने पूछा कि कृष 2 कहां है? जवाब मिला कि ‘कोई मिल गया’ भी इसी सीरिज की फिल्म है, इसलिए यह तीसरा भाग है। अमिताभ बच्चन के वॉइस ओवर से तीनों फिल्मों के तार आपस में जोड़े गए और वही से कहानी को शुरू किया गया जहां पिछली बार यह समाप्त हुई थी।
कृष (रितिक रोशन) अब भारत का सुपरहीरो बन गया है। उड़ते प्लेन में जाम हुए टायर्स को खोलने से लेकर तो बिल्डिंग पर लटके हुए बच्चे को बचाने का काम वह करता है। फ्री टाइम में वह गॉर्ड की या वेटर की नौकरी भी करता है, लेकिन अपना काम ठीक से नहीं करने के कारण उसे आए दिन नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। अपने पिता रोहित (रितिक रोशन) और पत्नी प्रिया (प्रियंका चोपड़ा) के साथ वह खुश है।
दुनिया के दूसरे छोर पर काल (विवेक ओबेरॉय) नामक जीनियस के इरादे दुनिया में तबाही मचाने के है। वह वक्त और जिंदगी पर विजय हासिल करना चाहता है। पहले वह खतरनाक बीमारियों के वायरस फैलाता है और फिर उनका एंटीडोट बेचकर पैसा कमाता है।
वह अपाहिज है और गर्दन के निचले हिस्से वाले शरीर में वह सिर्फ दो उंगलियां हिला सकता है। इसका इलाज भी वह ढूंढ रहा है। उसने कई मानवर (मानव और जानवर का मिलाजुला रूप) बनाए हैं जो देखने में इंसानों से हैं और उनमें जानवरों सी शक्ति हैं। मिसाल के तौर पर काया (कंगना रनोट) जो गिरगिट की तरह अपना भेष बदल लेती है।
मुंबई में काल अपना खतरनाक वायरस फैलाता है, लेकिन रोहित एंटीडोट बनाकर काल के मंसूबों पर पानी फेर देता है। इस वजह से रोहित और कृष को काल अपना दुश्मन मानता है। इनके नजदीक जाने पर उसे अपने अतीत के कुछ राज पता चलते हैं। इसके बाद सारी लड़ाई काल बनाम कृष हो जाती है।
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फिल्म की कहानी राकेश रोशन ने लिखी है, जबकि स्क्रीनप्ले लिखने में उनकी मदद हनी ईरानी, रॉबिन भट्ट, आकाश खुराना और इरफान कमल ने की है। स्क्रीनप्ले में लॉजिक का ध्यान रखने की कोशिश की गई है। साथ ही इमोशन और स्टंट्स के लिए गुंजाइश भी रखी गई है, लेकिन मनोरंजन के अभाव में ये सारे प्रभाव अधूरे से लगते हैं। इमोशन दिल को छूते नहीं हैं। कॉमेडी और रोमांस फिल्म से गायब हैं। काल बनाम कृष की लड़ाई से दर्शक अपने आपको जोड़ नहीं पाता है। कई दृश्य इतने लंबे लिखे गए हैं कि बोरियत होने लगती है।
सुपरहीरो तभी शक्तिशाली नजर आता है जब विलेन को बेहद क्रूर और विध्वंसकारी बताया जाए, लेकिन ‘कृष 3’ का विलेन काल ऐसा नहीं है जिसको देख खौफ पैदा हो। काल के किरदार पर उतनी मेहनत नहीं की गई जितनी जरूरत थी।
‘कृष 3’ का बच्चों में खासा क्रेज है, लेकिन ‘विज्ञान’ का दखल बहुत ज्यादा होने के कारण उनका मजा कम हो सकता है। वयस्क, रोमांस और कॉमेडी की कमी महसूस करते हैं। कहानी में भी उतनी अपील नहीं है जो उन्हें बांध कर रख सके।
राकेश रोशन का फिल्ममेकिंग ‘ओल्ड स्टाइल’ का है। उन्होंने कई दृश्यों को बेवजह लंबा खींचा है जिसमें क्लाइमेक्स भी शामिल है। अब दर्शकों में लंबे डॉयलागबाजी वाले दृश्यों को झेलने का धैर्य नहीं रह गया है।
कृष3 की एसएफएक्स टीम ने अपना काम बखूबी किया है। बिल्डिंग गिरने वाले, कृष के हवा में उड़ने वाले सहित कई दृश्य तारीफ के काबिल हैं। इन दृश्यों को देखते समय उत्साह पैदा होता है, लेकिन जैसे ही ये थमते हैं फिल्म धड़ाम से नीचे आ जाती है। कंगना के रितिक के प्रति लगाव वाला ट्रेक भी अधूरे मन से रखा गया है।
सुपरहीरो की भूमिका के लिए रितिक रोशन से बेहतरीन विकल्प उपलब्ध नहीं है। सुपरहीरो के लिए जो लुक और बॉडी चाहिए उस शर्त पर रितिक एकदम खरे उतरते हैं। वे न केवल हैंडसम लगे हैं बल्कि उनकी एक-एक मांसपेशी बोलती है। उन्होंने रोहित और कृष के डबल रोल किए हैं और बूढ़े रोहित के किरदार में उनका अभिनय प्रभावी है।
प्रियंका चोपड़ा के पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। उनसे बेहतर रोल कंगना के पास था और उन्होंने अपना काम बखूबी निभाया। एक विशेष कास्ट्यूम के लिए उन्होंने अपने फिगर पर खासी मेहनत की जो नजर आती है।
विवेक ओबेरॉय नकारात्मक किरदार निभाने में माहिर माने जाते हैं, लेकिन काल के रूप में वे ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाए। इसमें निर्देशक का दोष ज्यादा नजर आता है। उनका मेकअप भी खराब है।
राजेश रोशन का संगीत निराश करता है। ‘दिल तू ही बता’ ही सुनने लायक है। रघुपति राघव राजा राम और दिल तू ही बता का फिल्मांकन शानदार है। रेड चिलीज के विज्युअल इफेक्ट्स तथा टोनी चिंग सिऊ तुंग और शाम कौशल के एक्शन और स्टंट्स फिल्म का प्रमुख आकर्षण है।
कृष 3 के अंत में कृष 4 के संकेत दिए गए हैं, लेकिन जरूरत अब इस सीरिज को विराम देने की है।