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कॉकटेल : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : इरोज इंटरनेशनल, इल्यूमिनाती फिल्म्स
निर्माता : दिनेश विजान, सैफ अली खान, सुनील ए. लुल्ला, एंड्रयू हेफेरनन
निर्देशक : होमी अदजानिया
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : सैफ अली खान, दीपिका पादुकोण, डायना पेंटी, डिम्पल कपाड़िया, बोमन ईरानी, रणदीप हुडा
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 26 मिनट 3 सेकंड
रेटिंग : 2/5

ज्यादातर पुरुष मौज-मस्ती के लिए बिंदास और मॉडर्न लड़कियों का साथ पसंद करते हैं, लेकिन जब बात शादी की आती है तो उन्हें परंपरागत और शर्मीली लड़कियां पसंद आती है। कुछ ऐसा हाल लड़कियों का भी होता है। बहुत पहले एक सर्वे हुआ था तो लड़कियों ने डेटिंग के लिए क्रिकेटर युवराज सिंह को चुना था और शादी के लिए राहुल द्रविड़ उनकी पहली पसंद थे। ऐसा ही मिलता-जुलता किरदार कॉकटेल के हीरो गौतम कपूर (सैफ अली खान) का भी है।

वह हथेली पर दिल लिए घूमता है। एक लड़की से बहुत जल्दी वह ऊब जाता है। शादी, बच्चे, परिवार उसे नापसंद है। वेरोनिका (दीपिका पादुकोण) और गौतम टूथ ब्रथ के साथ-साथ रूम भी शेयर करते हैं। उसी घर में वेरोनिका की दोस्त मीरा (डायना पेंटी) भी रहती है, जिसे उसके पति ने धोखा दिया है।

जहां वेरोनिका घर में बिना पेंट के घूमती है वही गौतम का मानना है कि मीरा कुछ ज्यादा ही कपड़े पहनती है। भगवान की पूजा भी करती है। गौतम को लगता है कि मीरा उसके टाइप लड़की नहीं है। ‘बहनजी’ टाइप है, लेकिन जब दिल्ली से उसकी मां लंदन पहुंचती है तो वह मां से झूठ बोलते हुए मीरा को ही आगे कर देता है और कहता है कि वह मीरा से शादी करना चाहता है।

ट्विस्ट तब आता है जब वेरोनिका के साथ रातें गुजारने वाला गौतम प्यार मीरा को करने लगता है। मीरा भी उसकी सारी असलियत जानने के बावजूद उसे दिल दे बैठती है। इधर वेरोनिका को भी गौतम से प्यार हो जाता है और वह मीरा बनने की कोशिश करती है। फिल्म के अंत में इस गुत्थी को साधारण ढंग से सुलझा गया है।

जैसा कि ज्यादातर लव स्टोरी के साथ होता है कि पहला हिस्सा बेहद मजबूत होता है, जिसमें हल्के-फुल्के क्षण होते हैं, रोमांस होता है, कुछ अच्छे गाने होते हैं, लेकिन दूसरे हिस्से में जब ड्रामा फ्रंट सीट पर आता है, तब कहानी बिखर जाती है। ऐसा ही कॉकटेल के साथ भी होता है।

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फिल्म के पहले हिस्से में मीरा-वेरोनिका और गौतम के जरिये प्यार और दोस्ती के कुछ बेहतरीन लम्हें देखने को मिलते हैं, उम्दा संवाद सुनने को मिलते हैं। तीनों कैरेक्टर के मिजाज और उनके अंतर को बेहतरीन तरीके से पेश किया है। गौतम का शीला की जवानी पर डांस करना और उसकी मम्मी का वहां पहुंच जाना इस हिस्से का बेहतरीन सीन बन पड़ा है। इंटरवल भी एक खास मोड़ पर होता है जब मीरा से अपने दिल की बात गौतम बताता है।

इंटरवल के बाद यह उम्मीद पूरी तरह धराशायी हो जाती है कि एक अच्छी फिल्म देखने को मिलेगी। कहानी को ठीक से समेटा नहीं गया है। क्लाइमेक्स तक पहुंचने में बहुत लंबा समय लेकर बोर किया गया है।

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वेरोनिका का एक्सीडेंट, मीरा का वापस पति के पास जाना, वेरोनिका का बार-बार बदलना जैसी बातों को अपनी सहूलियत के हिसाब से लिखा गया है। ऐसा लगता है कि कहानी का अंत कैसे किया जाए ये लेखकों को सूझ नहीं रहा था और किसी तरह उन्होंने इसका अंत किया है।

वेरोनिका का सड़क पर खड़ी मीरा को अचानक घर ले आना, मीरा का गौतम जैसे प्लेबॉय से प्यार कर बैठना, जैसे प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते। मीरा के पति का कैरेक्टर भी समझ से परे है।

लव आजकल और रॉकस्टार जैसी फिल्म बनाने वाले इम्तियाज अली ने साजिद अली के साथ मिलकर ‘कॉकटेल’ लिखी है। शायद इम्तियाज जानते होंगे की कहानी थोड़ी कच्ची है इसलिए बजाय खुद इस पर फिल्म बनाने के उन्होंने इसे होमी अदजानिया को दे दी।

होमी ने अपने निर्देशन के जरिये रिश्ते की जटिलता को पेश करने की उम्दा कोशिश की है, लेकिन उन्हें लेखकों का साथ नहीं मिल पाया। इसके बावजूद उनके प्रस्तुतिकरण में ताजगी है और कलाकारों से बेहतरीन काम उन्होंने लिया है।

फिल्म का आर्ट डायरेक्टशन और स्टाइलिंग कूल और मॉडर्न है। अनिल मेहता की सिनेमाटोग्राफी फिल्म को रिच लुक देती है। प्रीतम का म्युजिक फिल्म का प्लस पाइंट है। दारू देसी, तुम्ही हो बंधु, यारियां हिट हो चुके हैं। इनको ‍स्क्रीन पर देखना एक शानदार अनुभव है।

सैफ अली खान ने इस तरह के रोल पहले भी निभाए हैं और यह उनके लिए बेहद आसान है। फर्क इतना है कि अब उम्र के निशान नजर आने लगे हैं। बिंदास गर्ल के रूप में दीपिका भी कई फिल्मों में नजर आई हैं। ‘कॉकटेल’ में उन्होंने इमोशनल सीन में भी अपनी छाप छोड़ी है।

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मीरा के कैरेक्टर को जो मासूमियत चाहिए थी वो डायना पेंटी के चेहरे पर है और मीरा के किरदार को उन्होंने विश्वसनीयता के साथ पेश किया है। रणदीप हुडा को करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। बोमन ईरानी और डिम्पल कापड़िया थोड़ा हंसाते हैं। डिम्पल की मेनोपॉज वाली लाइन गजब की है।

कॉकटेल में कुछ अच्छे सीन, डायलॉग और गाने हैं, लेकिन साथ में बोरियत से भरा दूसरा हाफ भी है जो सुरूर नहीं चढ़ने देता ै।

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