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कोच्चडयान : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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कोच्चडयान 3डी मोशन कैप्चर्स तकनीक से बनी हुई फिल्म है। इस तकनीक में फिल्म के मुख्य कलाकार विशेष ड्रेस और तकनीक से लैस एक कमरे में सारे शॉट्स देते हैं। उन्हें वहीं रोमांस करना होता है और स्टंट्स भी। अकेले लड़ते हुए उन्हें महसूस करना होता है कि उनके इर्दगिर्द ढेर सारे सैनिक युद्ध कर रहे हैं। उनके एक्सप्रेशन और बॉडी लैंग्वेज को कैद कर एनिमेशन का रूप दिया जाता है, जिससे एनिमेशन एकदम जीवंत लगते हैं।

'कोच्चडयान' हॉलीवुड फिल्म 'अवतार' की तर्ज पर बनी है, लेकिन 'अवतार' से इसकी तुलना नहीं की जा सकती है। निश्चित रूप से अवतार ज्यादा बेहतर फिल्म है क्योंकि हजार करोड़ से भी ज्यादा बजट में वह बनी है, जबकि 'कोच्चडयान' लगभग सवा सौ करोड़ रुपये की फिल्म है। 'अवतार' जितने बजट में भारतीय भी उम्दा फिल्म बना सकते हैं, लेकिन भारतीय फिल्मों का बाजार हॉलीवुड फिल्मों की तुलना में बेहद सीमित होता है।

कोच्चडयान जैसी फिल्मों के लिए आप बजट की ज्यादा चिंता किए बगैर अपनी कल्पना को ऊंची उड़ान दे सकते हैं। इसीलिए इसकी कहानी अतीत की है जब भारत में राजाओं का राज था। विशाल सेना, ऊंचे महल, गहने और शानदार ड्रेसेस को एनिमेशन के जरिये आसानी से दिखाया जा सकता है।

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'कोच्चडयान' की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी कहानी है क्योंकि यह बेहद सपाट है। जो उतार-चढ़ाव होने चाहिए वो इसमें मिसिंग है। राजा-रानी की बरसों पुरानी कहानी को दोहराया गया है। कोट्टइपटनम का सेनापति कोच्चडयान की लोकप्रियता से वहां का राजा ईर्ष्या से जल उठता है। अवसर पाते ही एक मामले में वह कोच्चडयान (रजनीकांत) को दोषी ठहरा कर मौत की सजा सुना देता है। कोच्चडयान का बेटा राणा (रजनीकांत) किस तरह से अपनी पिता की मौत बदला लेता है और उनका गौरव लौटाता है, यह फिल्म का सार है। इस दरमियान वह एक खूबसूरत राजकुमारी से इश्क भी लड़ाता है।

फिल्म में राणा (रजनीकांत) का बखान करने में लंबा वक्त लिया गया है। कोच्चडयान (रजनीकांत) के आने से फिल्म में थोड़ी दिलचस्पी जागती है और आखिरी के आधे घंटे में घटनाक्रम तेजी से घटते हैं। बीच में युद्ध और कोच्डयान के तांडव के अच्छे सीन भी हैं, लेकिन इतना काफी नहीं है। फिल्म का शुरुआती घंटा बोरियत से भरा है और ढेर सारे गाने इस बोरियत को और बढ़ाते हैं। एआर रहमान का संगीत पहले जैसा मधुर नहीं रह गया है कि दर्शकों को गाने ही सीट पर बैठा रखे। फिल्म की कहानी राणा के इर्दगिर्द घूमती है और इसलिए फिल्म का नाम 'कोच्चडयान' क्यों रखा गया है, यह समझ से परे है।

फिल्म का निर्देशन रजनीकांत की बेटी सौन्दर्या ने किया है। निश्चित रूप से सौन्दर्या के प्रयास की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने भारत में इस तकनीक के जरिये फिल्म बनाई है। अपनी कल्पना को स्क्रीन पर तकनीक के जरिये साकार करना उनके लिए आसान नहीं होगा। एनिमेशन की गुणवत्ता कई जगह स्तरीय नहीं है, लेकिन प्रयास प्रशंसनीय है। रजनीकांत की इमेज को ध्यान में रखते हुए उन्होंने राणा और कोच्चडयान के किरदार उसी तरह गढ़े हैं। फिल्म में कई जगह अच्छे संवाद सुनने को मिलते हैं। कहानी पर अगर थोड़ी और मेहनत की जाती तो बात कुछ और होती।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या रजनीकांत के फैन उन्हें एनिमेटेड रूप में देखना चाहते हैं। जब हमारे पास वास्तविक रजनीकांत मौजूद है तो काल्पनिक दुनिया में जाने की क्या जरूरत है। वास्तविक दुनिया में सुपरहीरो जैसी हरकत करने वाला रजनीकांत देखना ज्यादा रोचक है। हमें वो रजनीकांत चाहिए जो स्टाइल से सिगरेट पिए। जो ऐसी गति से दौड़े कि प्रकाश पीछे छूट जाए। जो अपनी ओर आती गोली को चाकू की मदद से दो हिस्से में बांट दे। बदलाव के रूप में तकनीक से बना रजनीकांत भी बुरा नहीं है।

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निर्माता : सुनील लुल्ला, सुनंदा मुली मनोहर, प्रशिता चौधरी
निर्देशक : सौन्दर्या रजनीकांत अश्विन
संगीत : एआर रहमान
कलाकार : रजनीकांत, दीपिका पादुकोण, जैकी श्रॉफ, नासेर
रेटिंग : 3/5

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