फिल्म की कहानी में कोई नयापन नहीं है, आगे क्या होने वाला है ये सभी को मालूम रहता है। जरूरत थी दमदार पटकथा की, परंतु वो भी कमजोर है। ‘क्रेजी’ लोगों के नाम हास्य की अपार संभावनाएँ थीं, फिल्म के कलाकार उम्दा थे, लेकिन इनका पूरी तरह दोहन नहीं किया गया। फिल्म हँसाती है, लेकिन टुकड़ों में।मध्यांतर के पूर्व वाला हिस्सा बाद वाले हिस्से से बेहतर है। मध्यांतर के बाद फिल्म बिखर जाती है। गंगाधर के बहाने देशभक्ति की भावनाएँ भी पैदा की गई हैं और शॉपिंग मॉल में ‘जन-गण-मन’ गाती बालिका का दृश्य उम्दा है। फिल्म का आकर्षण बढ़ाने के लिए तीन-तीन आयटम सांग भी हैं। राखी सावंत ने तमाम लटके-झटके दिखाए हैं, लेकिन वे कहीं से भी खूबसूरत दिखाई नहीं देती हैं। उन पर फिल्माया गया गाना भी शोरगुल से भरा हुआ है। किंग खान शाहरुख पर फिल्माया गया गीत तब तक अच्छा लगता है जब तक आप रितिक वाला गाना नहीं देख लेते हैं। रितिक के डांस के सामने शाहरुख का डांस एकदम फीका लगता है। ये रितिक के नृत्य का ही कमाल है कि उन पर फिल्माया गया गीत फिल्म के अंत में है जब दर्शक घर भागने की जल्दी में रहता है, लेकिन रितिक के डांस की वजह से सभी उस गाने को देखने के बाद ही सिनेमाघर से बाहर निकलते हैं। निर्देशक जयदीप सेन अपने संसाधनों का पूरा उपयोग नहीं कर पाए। उन्हें कहानी भी दमदार नहीं मिली। अश्वनी धीर के संवाद उनकी पटकथा जैसे ही हैं। अरशद वारसी जरूरत से ज्यादा गुस्सा करते हुए नजर आए। इरफान को उनकी योग्यता के अनुरूप भूमिका नहीं मिली। राजपाल यादव ने दर्शकों को हँसाया। सुरेश मेनन ने पूरी फिल्म में एक-दो शब्द बोले। जूही चावला की भूमिका छोटी थी, जिसे उन्होंने अच्छी तरह निभाया। दीया मिर्जा भी कुछ दृश्यों में नजर आईं।
राजेश रोशन ने जिन गानों की धुन बनाई है वे सुनने लायक नहीं हैं और जो गीत सुनने लायक है वो किसने बनाया है ये सभी को पता चल गया है। खबर है कि राकेश रोशन को एक करोड़ का फटका लगा है।
‘क्रेजी 4’ की सबसे खास बात यह है कि यह मात्र दो घंटे और चंद मिनट की फिल्म है। हँसना और भूल जाना हो तो यह फिल्म देखने का जोखिम उठाया जा सकता है।