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गली गली चोर है ‍: फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : वन अप एंटरटेनमेंट
निर्माता : नितिन मनमोहन, संगीता अहिर, प्रकाश चांदनी, संजय पूनामिया, जीतेन्द्र जैन, विनय जैन
निर्देशक : रूमी जाफरी
संगीत : अनु मलिक
कलाकार : अक्षय खन्ना, श्रिया सरन, मुग्धा गोडसे, सतीश कौशिक, विजय राज, अन्नू कपूर, ‍अमित मिस्त्री
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 5 मिनट
रेटिंग : 2/5

कहा जाता है कि किसी से बदला लेना हो तो उसे कोर्ट-कचहरी के चक्कर में उलझा दो। धन और समय की जमकर बर्बादी होती है। उस इंसान को मानसिक तनाव झेलना पड़ता है, सो अलग। हमारे देश की न्याय प्रक्रिया बेहद जटिल और धीमी है। नेता, पुलिस, वकील और जज का फर्ज है कि वे आम इंसान की मदद करें, लेकिन उनके लिए ये आम आदमी एक बकरा है, जिसका जी भर कर वे शोषण करते हैं।

एक आदमी का चैन भ्रष्ट लोग सिस्टम के जरिये कैसे छीन सकते हैं इसको आधार बनाकर लेखक-निर्देशक रूमी जाफरी ने ‘गली गली चोर है’ का निर्माण किया है। इस विषय पर पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन रूमी ने बजाय एक्शन के हास्य का सहारा लिया है।

भोपाल में रहने वाला एक आम आदमी भारत (अक्षय खन्ना) जो बैंक में केशियर है, एक नेता को चुनाव कार्यालय खोलने के लिए अपने घर का एक कमरा नहीं देता। बदले में वो नेता उसे कानून के चक्कर में ऐसा उलझाता है कि वह अदालत और थाने के चक्कर लगा-लगा कर परेशान हो जाता है।

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रूमी जाफरी ने कई हिट फिल्में लिखी हैं और हास्य लिखने में उनकी पकड़ भी है, लेकिन ‘गली गली चोर है’ की स्क्रिप्ट को वे असरदार नहीं बना सके हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें फिल्म बनाने की बहुत जल्दी थी, लिहाजा उन्होंने ताबड़तोड़ फिल्म लिखी और शूट कर डाली।

भ्रष्टाचार से त्रस्त आम आदमी की परेशानी को व्यंग्यात्मक तरीके से दिखाया गया है, लेकिन व्यंग्य न तो ज्यादा हंसाता है न सोचने पर मजबूर करता है। अच्छी शुरुआत के बाद फिल्म दोहराव का शिकार हो जाती है और कहानी खिंची हुई लगती है। फिल्म का अंत भी कमजोर है जिसमें आम आदमी भ्रष्ट पुलिस ऑफिसर और नेता को थप्पड़ जमाते हुए कहता है कि उसका ये तमाचा सिस्टम पर है।

फिल्म में कुछ घटनाक्रम दिलचस्प हैं, जैसे चोर-हवलदार और गवाह वाले सीन, पंखे को ठिकाने वाले सीन, लेकिन इनके बीच कई बोरियत भरे लम्हे भी झेलने पड़़ते हैं। भारत, उसकी बीवी और पेइंग गेस्ट वाला ट्रेक ठीक से डेवलप नहीं किया गया है। रामलीला वाले दृश्य भी उबाऊ हैं। गाने फिल्म में रूकावट डालते हैं और पता नहीं आइटम सांग डालने की फिल्मकार को क्या जरूरत पड़ गई।

रूमी जाफरी का निर्देशन भी औसत है। ऐसा महसूस होता है कि फिल्म नहीं बल्कि कोई टीवी सीरियल हम देख रहे हैं। कलाकारों का चयन समझदारी से किया गया है। मंजे हुए अभिनेताओं के कारण थोड़ी दिलचस्पी फिल्म में बनी रहती है।

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आम आदमी के रोल में अक्षय खन्ना जंचे हैं। श्रिया सरन और मुग्धा गोडसे के लिए ज्यादा स्कोप नहीं था। भारत के पिता का रोल सतीश कौशिक ने बखूबी निभाया है। भ्रष्ट हवलदार के रूप में अन्नू कपूर सबसे बेहतरीन रहे हैं। विजय राज, रजत रवैल, अखिलेन्द्र मिश्रा, अमित मिस्त्री भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं। फिल्म कम बजट में बनाई गई है और इसका असर नजर आता है।

गली गली चोर है एक अच्छे उद्देश्य से बनाई गई है, लेकिन दमदार स्क्रिप्ट के अभाव में तीर निशाने पर नहीं लगा है।

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