Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

गुलाब गैंग की फिल्म समीक्षा

Advertiesment
हमें फॉलो करें गुलाब गैंग

समय ताम्रकर

PR
गुलाब गैंग के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि फिल्म के लेखक और निर्देशक सौमिक सेन यह तय नहीं कर पाए कि वे फिल्म का प्रस्तुतिकरण वास्तविकता के नजदीक रखें या कमर्शियल फॉर्मेट को ध्यान में रख बात को पेश किया जाए। पूरी फिल्म में उनकी यह दुविधा नजर आती है। कुछ सीन एकदम सलमान खान की फिल्मों जैसे हैं। माधुरी दीक्षित बिलकुल सलमान अंदाज में कूदते-फांदते और हवा में उड़ते हुए फाइटिंग करती नजर आती हैं तो दूसरी ओर कुछ दृश्यों में वो गंभीरता नजर आती है जो इस तरह की फिल्म मांगती है। लेकिन मामला खिचड़ी हो जाने से स्वाद बिगड़ गया है और एक अच्छे विषय पर कमजोर फिल्म का नतीजा सामने आता है।

फिल्म के निर्माता ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी फिल्म पूरी तरह से काल्पनिक है। सम्पत पाल और गुलाब गैंग पर आधारित नहीं है, लेकिन सभी जानते हैं कि प्रेरणा उसी से ली गई है। सिर्फ गुलाब गैंग का विचार उधार लेकर सौमिक सेन ने कुछ वास्तविक घटनाओं को जोड़ कर फिल्म लिखी है।

रज्जो (माधुरी दीक्षित) माधवपुर में गुलाब गैंग की लीडर है। असहाय महिलाओं की वह रक्षा करती है। छोटी बच्चियों को पढ़ाती है। इस गैंग की महिलाएं किसी भी मामले में अपने को पुरुषों से कम नहीं समझतीं और अक्सर हिंसा का सहारा लेती है। रज्जो का कहना है 'रॉड इज़ गॉड'।

उसकी लोकप्रियता को बढ़ता देख भ्रष्ट राजनेता सुमित्रा देवी (जूही चावला) रज्जो की ओर हाथ बढ़ाती है, लेकिन रज्जो इसे ठुकरा कर सुमित्रा देवी के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला करती है। अपनी कुर्सी बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने वाली सुमित्रा चुनाव जीतने के लिए सारे हथकंडे अपनाती है। चुनाव परिणाम क्या निकलता है? क्या रज्जो का स्कूल खोलने का सपना पूरा होगा? क्या सुमित्रा देवी को रज्जो हरा पाएगी? इन प्रश्नों के जवाब फिल्म का सार है।

सौमिक सेन की कहानी में केवल यही विशेषता है कि इसमें हीरो भी महिला है और विलेन भी। इस अनूठी बात को छोड़ दिया जाए तो यह फिल्म केवल अच्छाई बनाम बुराई की कहानी है। 'गुलाब गैंग' को बीच में ही भूला दिया जाता है और यह फिल्म हीरो बनाम विलेन की कहानी बन जाती है जो हजारों बार सिल्वर स्क्रीन पर दोहराई जा चुकी है।

webdunia
PR
सौमिक सेन ने केवल सीन गढ़े हैं और कहानी में प्रवाह नजर नहीं आता। कई दृश्यों का एक-दूसरे से संबंध नहीं है। कई बातें अस्पष्ट रह जाती हैं। जैसे सुमित्रा के नाम पर स्कूल खोलने के लिए रज्जो क्यों आपत्ति लेती है? रज्जो अचानक चुनाव लड़ने का फैसला कैसे कर लेती है? कई बार कानून हाथ में लेने के बावजूद पुलिस गुलाब गैंग के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं करती है? कहानी के साथ-साथ स्क्रीनप्ले में भी खामियां हैं? जिस तरीके से कहानी को परदे पर पेश किया गया है वो बेहद उबाऊ है। थोड़ी देर में ही दर्शक फिल्म में अपनी रूचि खो बैठते हैं और स्क्रीन पर चल रहे ड्रामे से जुड़ नहीं पाते।

कुछ दृश्य तारीफ योग्य भी हैं। जैसे एक नेता के बलात्कारी बेटे को गुलाब गैंग की महिलाओं द्वारा तालाब से पकड़ना। रज्जो और सुमित्रा देवी के आमने-सामने वाले दृश्य। रज्जो का अपनी गैंग के सदस्यों के साथ हंसी-मजाक करना। लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है।

माधुरी दीक्षित का किरदार गंभीरता मांगता था, लेकिन निर्देशक ने उनसे डांस भी करा दिया और हास्यास्पद तरीके से फाइटिंग भी कराई है, इस वजह से माधुरी के किरदार का फिल्म में प्रभावहीन नजर आता है। माधुरी के अभिनय में वो 'स्पार्क' नदारद रहा जो किरदार की डिमांड थी। अभिनय के मामले में जूही चावला बाजी मार ले जाती है और इसकी वजह है कि उनके किरदार में कई रंग हैं। कुटील मुस्कान और लौंग चबाती जूही ने अपनी इमेज के विपरीत खलनायिका के तेवर दिखाए हैं। कैसी भी परिस्थिति हो वे एकदम 'कूल' नजर आती हैं। गुलाब गैंग में से प्रियंका बोस और विद्या जगदाले का अभिनय उल्लेखनीय है। अतुल श्रीवास्तव, राजीव सक्सेना, भी प्रभावित करते हैं। सौमिक सेन का संगीत फिल्म के मूड के अनुरूप है, लेकिन जरूरत से ज्यादा गानों का प्रयोग अखरता है।

गुलाब गैंग रंगहीन है। न सोचने पर मजबूर करती है और न ही मनोरंजन।

webdunia
PR
बैनर : बनारस मीडिया वर्क्स, सहारा मूवी स्टुडियोज़
निर्माता : अनुभव सिन्हा
निर्देशक-संगीत : सौमिक सेन
कलाकार : माधुरी दीक्षित नेने, जूही चावला, दिव्या जगदाले, प्रियंका बोस, अतुल श्रीवास्तव, राजीव सक्सेना
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 19 मिनट 13 सेकंड
रेटिंग : 1.5/5


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi