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गो गोआ गॉन : मूवी रिव्यू

भारत की पहली जॉम्बी फिल्म

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हमें फॉलो करें गो गोआ गॉन

समय ताम्रकर

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गो गोआ गॉन का सबसे बड़ा आकर्षण है इसका जॉम्बिज वाला ट्रेक क्योंकि यह हिंदी फिल्मों के लिए एकदम नया है। हालांकि कुछ दिनों पहले ‘राइज, ऑफ जॉम्बी’ रिलीज हुई थी, लेकिन यह कब आई और कब गई, इसका पता नहीं चला।

खैर, बात की जाए गो गोआ गॉन की, जिसे इसके मेकर्स जॉमकॉम (जॉम्बी और कॉमेडी) फिल्म बता रहे हैं, तो इसमें कॉमेडी वाला ट्रेक अच्छा है, लेकिन जॉम्बी वाला ट्रेक उतना प्रभावी नहीं है। ऐसा लगता है कि जॉम्बी वाला ट्रेक निर्देशक ने सिर्फ भारतीय दर्शकों को चौंकाने के लिए डाला है, लेकिन इसके लिए सही भूमिका नहीं बनाई गई है।

जॉम्बी के बारे में बताया गया है कि बेहद धीमे चलने वाले ये ऐसे लोग हैं जिनके दिमाग का एक हिस्से को छोड़ पूरा शरीर मृत हो चुका है। इन्हें किसी किस्म का दर्द महसूस नहीं होता। ये लोग बेहद भूखे हैं इसलिए ये इंसान को मारकर खा जाते हैं।

इन जॉम्बीज से लव, हार्दिक और बनी नामक तीन दोस्त घिर जाते हैं। लव और हार्दिक चालू किस्म के हैं, जबकि बनी सीधा-सादा, जैसा कि आमतौर पर फ्रेंड्स सर्किल में होता है। हार्दिक को जॉब से निकाल दिया जाता है क्योंकि ऑफिस में वह नो स्मोकिंज ज़ोन में स्मोकिंग करता है और देर रात एक लड़की से सेक्स करने की फिराक में है। लव का दिल उसकी गर्लफ्रेंड ने तोड़ दिया है।

बनी को प्रजेंटेशन देने गोआ जाना है। उसके साथ अपने गम को भूलाने के लिए लव और हार्दिक भी उसके साथ गोआ जाते हैं। लव और हार्दिक को सिगरेट, शराब और लड़कियों के सिवाय कुछ सूझता नहीं है। स्विमिंग पुल में लव की मुलाकात लूना नामक लड़की से होती है, जो रात में एक रेव पार्टी का इन्विटेशन उसे देती है।

लव और बनी भी उसके साथ इस रेव पार्टी का हिस्सा बनने के लिए एक आयलैंड पर जाते हैं, जिसका होस्ट रहता है रशियन माफिया बोरिस (सैफ अली खान)। पार्टी में जमकर नशा किया जाता है। वहां पर एक ऐसी ड्रग पेश की जाती है जो एमडीएमए से भी खतरनाक बताई जाती है। लव, हार्दिक और बनी के पास इसे खरीदने के लिए पैसे नहीं रहते हैं, इसलिए वे इस ड्रग का मजा नहीं ले पाते हैं, लेकिन दूसरी चीजों से खूब नशा करते हैं।

सुबह जब तीनों की आंखें खुलती हैं तो वे पाते हैं कि उस ड्रग के कारण पार्टी के अन्य लोग जॉम्बीज बन चुके हैं। ये जॉम्बीज तीनों दोस्तों को खाकर अपनी भूख मिटाना चाहते हैं। तीनों पहले लूना को बचाते हैं। इसके बाद इनकी मुलाकात हथियारों से लैस बोरिस से होती है, जिसके पीछे भी जॉम्बिज पड़े हुए हैं। इस आयलैंड पर किस तरह वे जान बचाकर भाग निकलते हैं, ये फिल्म का सार है।

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फिल्म की कहानी में जॉम्बीज वाला ट्रेक कमजोर है और इसके इर्दगिर्द जो कहानी बुनी गई है, वो भी दमदार नहीं है। निर्जन द्वीप पर दोस्तों के बुरी शक्तियों से घिर जाने की कहानी हम कई बार स्क्रीन पर देख चुके हैं। फर्क इतना रहता है कि यहां जॉम्बीज हैं, जबकि दूसरी फिल्मों में वो भूत, चुड़ैल या अन्य डरावनी चीज होती हैं। साथ ही जॉम्बीज को लेकर जो रोमांच, जो डर पैदा होना था, वो भी फिल्म में बेहद कम है।

जॉम्बीज को लेकर भी इतने सारे सवाल फिल्म देखते समय पैदा होते हैं, जिनका जवाब कही नहीं मिलता। फिल्म के किरदार कभी मोबाइल के जरिये कोई कोशिश नहीं करते, जबकि फिल्म के अंत में दिखाया गया है कि एक किरदार को नेटवर्क मिल जाता है। घंटों तक भटकने के बावजूद उन्हें किसी किस्म की थकान नहीं होती।

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इन कमियों के बावजूद फिल्म देखने में समय अच्छे से कट जाता है तो इसका श्रेय कॉमेडी ट्रेक, तीनों दोस्तों के संबंध, बोरिस का कैरेक्टर, चुटीले संवाद और सभी कलाकारों के अच्छे अभिनय को जाता है।

कृष्णा डीके और राज नीदिमोरू ने अपने कुशल निर्देशन से दर्शकों को बांध रखने में सफलता पाई है और कहानी को कुछ इस तरह से प्रस्तु‍त किया है कि कमियों पर दर्शकों का ध्यान नहीं जाए। उन्होंने अपने प्रस्तुतिकरण में युवा दर्शकों का खासा ध्यान रखा है और उनको ही ध्यान में रखकर सीन रचे हैं। हालांकि शुरुआती बीस मिनट और बीच में फिल्म कही-कही कमजोर पड़ती है। साथ ही फिल्म का क्लाइमैक्स भी प्रभावी नहीं है। अंत सीक्वल की उम्मीद को जिंदा रखते हुए किया गया है।

कुणाल खेमू का ये अब तक का सबसे उम्दा परफॉर्मेंस है। उनका अभिनय भी इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि उन्हें उम्दा कैरेक्टर के साथ कई बेहतरीन संवादों का भी साथ मिला है। बनी के रूप में आनंद तिवारी की कॉमिक टाइमिंग सराहनीय है। वीर दास इनका साथ अच्छे से निभाते हैं। पूजा गुप्ता के लिए ज्यादा करने को कुछ नहीं था। सैफ अली खान ने भी अपना किरदार बेहतरीन तरीके से निभाया है। तकनीकी रूप से फिल्म मजबूत है और निर्देशक ने भी कहानी को ज्यादा खींचा नहीं है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि गो गोआ गॉन की कहानी में एक बेहतरीन फिल्म बनने के गुण थे, लेकिन इसका पूरा फायदा नहीं उठाया जा सका।

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बैनर : इल्यूमिनाती फिल्म्स, इरोज इंटरनेशनल
निर्माता : सैफ अली खान, दिनेश विजान, सुनील ए. लुल्ला
निर्देशक : कृष्णा डीके, राज नीदिमोरू
संगीत : सचिन-जिगर
कलाकार : सैफ अली खान, कुणाल खेमू, पूजा गुप्ता, वीर दास, आनंद तिवारी
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 1 घंटा 50 मिनट 49 सेकंड
रेटिंग : 2.5/5
1-बेकार, 2-औसत, 2.5-टाइमपास, 3-अच्छी, 4-बहुत अच्छी, 5-अद्भुत

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