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चांस पे डांस : मौका चूका

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हमें फॉलो करें चांस पे डांस : मौका चूका

समय ताम्रकर

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बैनर : यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला
निर्देशक : केन घोष
संगीत : अदनाम सामी
कलाकार : शाहिद कपूर, जेनेलिया डिसूजा, मोहनीबहल, परीक्षिसाहन
यू सर्टिफिकेट * 7 रील * दो घंटे एक मिनट
रेटिंग : 2.5/5

‘चांस पे डांस’ के रूप में एक और स्ट्रगलर की कहानी पर फिल्म आ गई जो चकाचौंध से भरी दुनिया में आकर छा जाना चाहता है। उसे एक चांस का इंतजार है जिसके सहारे वह लंबी छलाँग लगा सके।

समीर (शाहिद कपूर) के पिता (परीक्षित साहनी) की दिल्ली में साड़ी की दुकान है। बेटे को फिल्म लाइन में जाना है क्योंकि बचपन से ही उसकी माँ को लगता था कि वह बहुत बड़ा स्टार बनेगा। हर माँ ऐसा ही सोचती है, इसमें नया क्या है।

मायानगरी मुंबई में समीर का संघर्ष शुरू होता है। एक चांस का सवाल है बाबा-बाबा। संघर्षशील इंसान और मकान मालिक का संघर्ष सदियों से चला आ रहा है, इसलिए हजारों बार दिखाया जा चुका सीन एक बार फिर देखना पड़ता है।

मकान मालिक को किराया चाहिए, परंतु ब्रांडेड कपड़े पहनने वाले हमारे हीरो के पास पैसे नहीं है। नतीजन उसे घर से निकाल दिया जाता है। फिल्म के निर्देशक हैं केन घोष, जो शाहिद के अच्छे दोस्त भी हैं। शाहिद के संघर्ष की कहानी उन्हें पता है कि किस तरह वे पुरानी कार में बैठकर स्टुडियो के चक्कर लगाते रहते थे। पहले चप्पलें घिसकर संघर्ष होता था, अब कार में बैठकर चांस माँगने को भी संघर्ष कहा जाता है। इसलिए वो प्रसंग उन्होंने फिल्म में डाल दिया है।

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बेचारा समीर कहाँ जाए, इसलिए वह रात कार में गुजारने का फैसला करता है। एक-दो रात तो ठीक है, लेकिन यह क्या समीर तो हर रात कार में गुजारता है। बेचारा कूरियर बाँटने की नौकरी भी करता था, स्टुडियो के चक्कर भी लगा रहा है, उसके पास नया ठिकाना ढूँढने का वक्त कहाँ है।

एक स्कूल के पास वह अपनी कार खड़ी रखता है और उसी स्कूल में वह डांस टीचर बन जाता है। बच्चों से उसे नफरत है, लेकिन पेट की खातिर उनको डांस सिखाना पड़ता है। तड़के स्कूल के बॉथरूम के सहारे वह अपने सारे काम निपटा लेता है और दिन में उन्हें डांस सिखाता है। बच्चे कहते हैं कि डांस तो ‘लल्लू’ करते हैं तो वह पूछता है कि क्या माइकल जैकसन, रितिक रोशन, गोविंदा जैसे लोग लल्लू हैं?

समीर कअचानक एक निर्माता अपनी फिल्म में हीरो बना देता है क्योंकि उसने क्लब में समीर का डांस देख लिया था। यही निर्माता अचानक बाद में उसे फिल्म से बाहर कर देता है और घोषणा करता है कि टेलेंट हंट के जरिये वह अपना हीरो चुनेगा।

समीर टेलेंट हंट में हिस्सा लेता है और वही निर्माता जज की कुर्सी पर बैठकर अचानक उसे अपनी फिल्म ‘चांस पे डांस’ का हीरो बना देता है। निर्माता के साथ अचानक शब्द का बार-बार इसलिए उपयोग किया गया है कि उसके महत्वपूर्ण निर्णयों के पीछे कोई ठोस वजह नहीं दी गई है।

फिल्म में टीना (जेनेलिया) भी है, जो ट्रेफिक नियमों का पालन करती है, लेकिन उसके इस काम की हँसी उड़ाई गई है। टीना एक कोरियोग्राफर है, जिसकी पहले समीर से दोस्ती होती है जो बाद में प्यार में परिवर्तित हो जाती है।

फिल्म के लेखन में कुछ नयापन नहीं है। शुरू से लेकर आखिर तक आप बता सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है। समीर के पिता की दुकान तोड़ने और उनके हृदय परिवर्तन वाले प्रसंग सिर्फ लंबाई बढ़ाने का काम करते हैं।

वो तो भला हो निर्देशक केन घोष का, जिन्होंने स्क्रिप्ट का साथ नहीं मिलने के बावजूद फिल्म को मनोरंजक तरीके से पेश किया, जिससे बोरियत नहीं होती और फिल्म में मन लगा रहता है। उन्होंने साफ-सुथरी फिल्म का मूड हल्का-फुल्का रखा है। खासतौर पर इंटरवल के बाद उन्होंने अपनी पकड़ मजबूत की है।

शाहिद और जेनेलिया के रोमांस को उन्होंने अच्छी तरह पेश किया है, लेकिन शाहिद के संघर्ष वाले ट्रेक में वे कमजोर पड़ गए। शाहिद का संघर्ष दर्शकों के मन में उनके प्रति हमदर्दी नहीं पैदा कर पाता। टेलेंट हंट के फाइनल में दर्शकों की धड़कनें तेज नहीं होती कि शाहिद नहीं जीत पाए तो क्या होगा।

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शाहिद कपूर ने गंभीरता के साथ समीर का किरदार निभाया है। उन्होंने कठिन डांस स्टेप्स कुशलता से किए हैं। बबली गर्ल का किरदार निभाना खूबसूरत जेनेलिया के लिए बाएँ हाथ का खेल है। मोहनीश बहल ने ओवर एक्टिंग की है।

फिल्म के नाम में ही डांस है, इसलिए बेहतर संगीत की आशा की जा सकती है, लेकिन अदनान सामी निराश करते हैं। एकाध गाने को छोड़ दिया जाए तो उनकी धुनें औसत हैं। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है।

कुल मिलाकर चांस पे डांस, मिले अवसर का पूरलाभ नहीं उठा पाई।

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