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चालीस चौरासी : फिल्म समीक्षा

बढ़िया कलाकारों की फिल्म

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दीपक असीम

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बैनर : मास्क एंटरटेनमेंट प्रा.लि., फ्लेमेंट ग्लो इंडिया प्रा.लि.
निर्माता : अनुया महिस्कर, सचिन अवस्थी, उदय शेट्टी
निर्देशक : हृदय शेट्टी
संगीत : ललित पंडित, विशाल रंजन
कलाकार : नसीरुद्दीन शाह, केके मेनन, रवि किशन, अतुल कुलकर्णी

"चालीस चौरासी" अच्छी फिल्म है। अच्छी माने पूरे समय बाँधे रखने वाली। फिल्मों का पहला काम है दो-ढाई घंटे मन लगाए रखना और ये फिल्म ऐसा करती है। सबसे पहले बात कास्टिंग की। कास्टिंग से ही समझ में आ जाता है कि ये फिल्म कलाकारों की फिल्म है - नसीरुद्दीन शाह, केके मेनन, अतुल कुलकर्णी और भोजपुरी फिल्मों के रवि किशन।

रवि किशन चूँकि भोजपुरी फिल्मों से आए हैं, सो उन्हें अंडर इस्टिमेट किया जाता है। अगर वे अंग्रेजी फिल्मों से आए होते तो उनकी जय-जयकार की जाती। रवि किशन बढ़िया एक्टर हैं और जो रोल करते हैं मजा ही ला देते हैं। उनकी फिल्म अच्छी या खराब निकल सकती है, मगर उनका काम हमेशा ही बहुत बढ़िया होता है। याद रहे कि वे श्याम बेनेगल की टीम का हिस्सा ऐसे ही नहीं हैं। इस फिल्म में वे दलाल हैं।

केके मेनन और अतुल कुलकर्णी का काम भी बढ़िया है। ये चार मुख्य लोग तो पाए के कलाकार हैं ही, छोटे रोल भी बढ़िया कलाकारों से कराए गए हैं। सो एक्टिंग परफारमेंस के लिहाज से फिल्म लबालब है। हम भारतीयों का मन नायक या नायक की टोली को तभी अपराधी के रूप में कबूल करता है, जब वे गरीब हों, मजबूरी के मारे हों।

पुरानी कई फिल्मों से लेकर "इश्किया" तक गरीब नायक का अपराध करना हमारे मनों को जँचता है। मजबूरी में जुर्म करना और बात है, मगर जरायमपेशा होना और। "डॉन टू" का नायक जरायमपेशा है। जुर्म उसकी मजबूरी नहीं आंतरिक प्रवृत्ति है। ऐसा नायक हजम होना मुश्किल है। इसे प्रचार से तो धकाया जा सकता है पर लोगों के दिल में नहीं उतारा जा सकता।

"चालीस चौरासी" की अपराधी टोली दिलों में उतर जाती है। फिल्म की बुनावट में नयापन है। फ्लैश बैक साहसिक ढंग से लिया गया और और सलीके से खत्म किया गया है। फिल्म में नायिकाएँ नहीं हैं, मुहब्बतें नहीं हैं। मगर आइटम सांग दो-तीन हैं। जहाँ कहीं भी फिल्म इकरंगी होने लगी है, निर्देशक ने ग्लैमर वाला आइटम परोस दिया है। तमाम आइटम बालाएँ नई हैं और इन आइटम बालाओं को देखकर लगता है कि राखी सावंत तो ताजा खुदे कुएँ का गंदला पानी थीं। साफ और ठंडा पानी अब आ रहा है।

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बहुत दिनों बाद ऐसी फिल्म देखी कि जिसमें आधा पौना घंटे का एक्शन पैक्ड क्लाइमेक्स है। दिक्कत बस यही है कि इन फिल्मों का वैसा प्रचार नहीं हो पाता। लिहाजा शो कैंसल हो जाते हैं। मगर शो कैंसल होने से यह तो साबित नहीं होता कि फिल्म बकवास है। ऐसी फिल्म देखने का सही तरीका यह हो सकता है कि चार-छः लोग मिलकर देखने जाएँ।

निर्देशक हृदय शेट्टी ने अब तक जितनी फिल्में बनाईं उनमें ये बेहतर है। ठीक है कि इसकी नोक-पलक जरा और दुरुस्त की जा सकती थी। मगर इसमें शक नहीं कि ये पैसावसूल फिल्म है।

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