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चेन कुली की मेन कुली

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समय ताम्रकर

निर्देशक : किट्टू सलूजा
संगीत : सलीम-सुलेमान
कलाकार : राहुल बोस, ज़ैन खान, राजेश खेरा, कपिल दे

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बच्चों की फिल्म बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं है। यूं भी भारत में बच्चों को ध्यान में रखकर बहुत कम फिल्में बनाई जाती है, जबकि फिल्म देखने वाले दर्शकों में एक अच्छा-खासा वर्ग बच्चों का हैं। सारेगामा-एचएमवी बैनर की तारीफ करनी होंगी कि उन्होंने बच्चों के लिए फिल्म बनाने का साहसिक कार्य किया।

‘चेन कुली की मेन कुली’ एक अनाथ बच्चें करण की कहानी है। 13 वर्षीय इस बालक की दो इच्छाएँ हैं। भारतीय ‍टीम में क्रिकेट खेलना और उसे कोई माता-पिता मिलें।

अनाथालय में उसे एक दिन एक बैट मिलता है। करण इसे मैजिक बैट मानता है। इस बैट से वह एक दिन खेलता रहता है तो उस पर वहाँ से गुजर रहें भारतीय क्रिकेट टीम के प्रशिक्षक की नजर पड़ती हैं। वे करण के खेल से बेहद प्रभावित होते हैं। करण को भारतीय टीम में शामिल कर लिया जाता है।

पाकिस्तान से दो मैच हार चुकी भारतीय टीम की तरफ से करण तीसरे मैच में खेलता है। अपने शानदार प्रदर्शन के बल पर वह भारत को तीसरे और चौथे मैच में विजयी बना देता है। अनाथलाय में करण का राघव नामक दुश्मन रहता है। वह पाँचवे मैच के दौरान करण का बैट तोड़ देता है।

करण को लगता है कि अब वह वैसा कमाल नहीं दिखा पाएगा। तब टीम का कप्तान वरूण उसे समझाता है कि जादू उस बैट में नहीं वरन् तुम्हारे अंदर है। करण अपना आत्मविश्वास हासिल कर लेता है और भारतीय टीम पाँचवे मैच में जीत जाती है।

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फिल्म की कहानी बेहद सरल है। क्रिकेट को शामिल करने की वजह से फिल्म की कहानी का वजन बढ़ जाता हैं क्योंकि क्रिकेट बच्चों में बेहद लोकप्रिय है। एक अनाथ बच्चे के लिए माता-पिता का क्या महत्व होता है ये कप्तान वरूण के माध्यम से कहानीकार ने बताया है। हालांकि वरूण और उसके पिता के बीच के तनाव को समझने में छोटे बच्चों को तकलीफ हो सकती है।

फिल्म की पटकथा थोड़ी कमजोर हैं। बच्चों के मनोरंजन के लिए दृश्य के बजाय संवादों का ज्यादा सहारा लिया गया। जबकि बच्चों को दृश्य देखने में ज्यादा मजा आता है। अनाथालय और क्रिकेट के जरिए कई मजेदार दृश्यों की संभावना हो सकती थीं।

निर्देशक किट्टू सलूजा ने पूरी कोशिश की है कि बच्चों के साथ इस फिल्म में बड़ों को भी मजा आए। उन्होंने अनाथालय के दृश्य अच्छे फिल्माए हैं। बच्चों से भी उन्होंने अच्छा अभिनय करवाया है।

फिल्म के गाने बेहद कमजोर हैं। सलीम-सुलैमान की धुन में न वो जोश है और न वो ऊर्जा जो बच्चों के गाने में होना चाहिए।

राहुल बोस तो मंजे हुए अभिनेता है। उन्होंने क्रिकेट मैच वाले दृश्यों में जिस हिसाब से बल्लेबाजी की है उससे लगता है कि वे क्रिकेट के भी मंजे हुए खिलाड़ी है। करण के रूप में ज़ैन खान ने आत्मविश्वास के साथ अभिनय किया। हिटलर के रूप में राजेश खेरा हँसाते हैं। डब्बू बने दीप्तिमान चौधरी भी बड़े प्यारे लगे हैं। कपिल देव छोटी-सी भूमिका में हैं। उनका ज्यादा उपयोग किया जा सकता था।

आजकल के बच्चें ढेर सारी विदेशी फिल्में और कार्टून देखते हैं। सीधी-सादी भारतीय फिल्म उन्हें पसंद आएगी या नहीं, यह कहना बहुत ही मुश्किल है।

‘चेन कुली की मेन कुली’ में सबका ध्यान रखने की कोशिश की गई है। फिल्म में वो बात नहीं है कि वह बड़ों या बच्चों के मन को छू सकें और न ही इतनी बुरी है कि देखी भी नहीं जा सकें। बच्चों की खातिर बच्चों के साथ यह फिल्म एक बार जरूर देखी जा सकती हैं।

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