Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

झूम बराबर झूम : ऊँची दुकान, फीका पकवान

Advertiesment
हमें फॉलो करें झूम बराबर झूम

समय ताम्रकर

निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : शाद अली
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
गीत : गुलजार
कलाकार : अभिषेक बच्चन, प्रीति जिंटा, बॉबी देओल, लारा दत्ता

IFM
दो अजनबी रेलवे स्टेशन पर बैठकर अपने-अपने मंगेतर का इंतजार कर रहे हैं। रेल दो घंटे लेट है और टाइम पास करने के लिए दोनों अपनी-अपनी प्रेम कथा एक-दूसरे को सुनाते हैं। इस दौरान वे एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। जितनी यह कहानी पढ़ने में रोचक लगती है उतना ही उसका फिल्मी रूपांतरण खराब है।

निर्देशक शाद अली के पास एक अच्छा विचार था लेकिन उसको वे अच्छी तरह से डेवलप नहीं कर सकें। कहानी के पहले हिस्से में ही वे इतनी देर अटके रहें कि इंटरवल तक कहानी आगे ही नहीं बढ़ पाती।

दोनों अजनबियों की प्रेम कहानियाँ इतनी बोरिंग है कि दर्शकों की फिल्म में रूचि खत्म होने लगती है। अभिषेक और लारा की कहानी में ढेर सारे अंग्रेजी और फ्रेंच शब्द हैं और उनके उच्चारण इतने अस्पष्ट है कि कई संवाद समझ में ही नहीं आते। बॉबी और प्रीति की प्रेम कहानी अभिषेक और लारा की कहानी से भी ज्यादा बोर है। इन कहानियों में निर्देशक ने हँसाने की कोशिश की है। लेकिन हँसने के बजाय रोना आता है।

इंटरवल के बाद जब यह पता चलता है कि वे दोनों एक-दूसरे को बेवकूफ बना रहे हैं तब लगता है कि फिल्म में कुछ जान आएगी। लेकिन शाद अली यहाँ एक बार फिर चूक गए। जबकि इस मोड़ पर फिल्म को बेहतर बनाने की ढेर सारी संभावनाएँ थीं। फिल्म का अंत भी बड़े ही हल्के ढंग से किया गया शायद निर्देशक के पास समय समाप्त हो गया था और किसी तरह उसे फिल्म खत्म करनी थी।


शाद अली एक अच्छे निर्देशक हैं, लेकिन ज्यादा अच्छा करने के चक्कर में वे गड़बड़ कर देते हैं। वे कलाकारों से अच्छा अभिनय करवाते हैं, उनमें कल्पनाशीलता है, लेकिन कहानी कहने में वे चूक गए है। उन पर ‘बंटी और बबली’ का भी हैंगओवर है। बैकग्राउंड म्यूजिक में उन्होंने पुराने फिल्मी गानों का अच्छा इस्तेमाल किया है। उत्तर भारत से उन्हें लगाव है और ‘बंटी और बबली’ की तरह उन्होंने इस फिल्म में भी देश के इस हिस्से को दिखाया है।

अभिषेक बच्चन का अभिनय अच्छा है। एक पंजाबी लड़के के किरदार को उन्होंने बखूबी परदे पर उतारा है। वे आत्मविश्वास से भरे नजर आए। प्रिटी जिंटा ने भी अभिषेक का साथ अच्छी तरह निभाया है लेकिन बाजी मार ले जाती है लारा दत्ता। लारा को भी अभिनय करना आता है वो उसने इस फिल्म के जरिए दिखा दिया है। ये उसकी अब तक की निभाई भूमिकाओं में श्रेष्ठ है। उसने अपने किरदार के हर रंग को बखूबी जिया है। स्टीव सिंह के रूप में बॉबी बुरे लगे, लेकिन सत्तू के रूप में वे अच्छे लगे। अमिताभ बच्चन बीच-बीच में आकर गाना गाते हैं। इससे ज्यादा उन्होंने कुछ नहीं किया है। शायद अभिषेक के कारण ही उन्होंने यह महत्वहीन भूमिका निभाई हैं।

शंकर-अहसान-लॉय का संगीत धूम-धड़ाका से भरा हुआ है। ‘झूम बराबर झूम’ और ‘टिकिट टू हॉलीवुड’ इस समय बेहद लोकप्रिय है। हबीब फैजल के संवाद बेहद चुटीले हैं। खासकर अभिषेक और प्रिती के बीच हुई बातचीत में उनके संवाद गुदगुदाते हैं।

‘झूम बराबर झूम’ में दर्शक झूमने की अपेक्षा लेकर जाता हैं लेकिन थका-मांदा बाहर आता है। ढाई घंटे की यह फिल्म उसे पाँच घंटे की लगती है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi