कहानी है पूजा सिंह (करीना कपूर) की जो अपने पिता की हत्या का बदला भैयाजी (अनिल कपूर) से लेना चाहती है। भैय्याजी के पच्चीस करोड़ रुपए चुराने के लिए वह जिमी (सैफ अली खान) का सहारा लेती है। जिमी से प्यार का नाटक रचाकर वह पच्चीस करोड़ रुपए लेकर फुर्र हो जाती है। भैयाजी रुपए वसूलने का जिम्मा कानपुर में रहने वाले बच्चन पांडे (अक्षय कुमार) को सौंपते हैं। बच्चन को पूजा अपने प्यार के जाल फंसाकर बेवकूफ बनाना चाहती है, लेकिन वो उसके बचपन का प्यार है। अंत में जिमी, पूजा और बच्चन मिलकर भैयाजी और उनकी गैंग का सफाया कर देते हैं। पूजा पच्चीस करोड़ रुपए चुराने के बाद उन्हें पूरे भारत में अलग-अलग जगहों पर रख देती है। झोपडि़यों में ग्रामीण उसके करोड़ों रुपए संभालते हैं। इस बहाने ढेर सारी जगहों पर घूमाया गया है। फिल्म की शूटिंग लद्दाख, केरल, हरिद्वार और ग्रीस में की गई है। लोकेशन अद्भुत हैं, लेकिन हरिद्वार और राजस्थान जाते समय बीच में ग्रीस के लोकेशन आ जाते हैं। फिल्म के क्लायमैक्स में कई दृश्य हास्यास्पद हैं। जमीन पर चीनी लोगों से अक्षय की लड़ाई होती रहती है। अगले दृश्य में वे बिजली के खंबे पर लड़ने लगते हैं। सैफ अली खान बोट पर आकर अनिल की पिटाई करता है तो अगले दृश्य में अनिल साइकिल रिक्शा पर आ जाता है। फिल्म में भैयाजी की पेंट बार-बार खिसकती रहती है और भैया जी उसे ऊपर खींचते रहते हैं। यही हाल कहानी का भी है। बार-बार यह पटरी से उतर जाती है और इसे बार-बार पटरी पर खींचकर लाया जाता है। मध्यांतर के बाद फिल्म की गति बेहद धीमी हो जाती है। फिल्म का सकारात्मक पहलू है अक्षय कुमार और करीना कपूर का अभिनय। करीना इस फिल्म की हीरो हैं और पटकथा उनको केन्द्र में रखकर ही लिखी गई है। करीना ने इस फिल्म के लिए विशेष रूप से ज़ीरो फिगर बनाया और उसे खूब दिखाया। उनका चरित्र कई शेड्स लिए हुए हैं जिन्हें करीना ने बखूबी जिया। अक्षय कुमार खिलंदड़ व्यक्ति की भूमिका हमेशा शानदार तरीके से निभाते हैं। इस फिल्म में भी उनका अभिनय प्रशंसनीय है। करीना से प्यार होने के बाद उनके शरमाने वाला दृश्य देखने लायक है। उन्होंने अपने चरित्र की बॉडी लैग्वेंज को बारीकी से पकड़ा है। सैफ का चरित्र थोड़ा दबा हुआ है, लेकिन उनका अभिनय और संवाद अदायगी उम्दा है। अनिल कपूर ने हिंग्लिश में ऐसे संवाद बोले कि आधे से ज्यादा समझ में ही नहीं आते। अनिल का अभिनय अच्छा है, लेकिन उनका चरित्र बोर करता है।
विशाल शेखर का संगीत फिल्म देखते समय ज्यादा अच्छा लगता है। ‘छलिया’, दिल डांस मारे’ और ‘फलक तक’ का फिल्मांकन भव्य है।
‘टशन’ की टैग लाइन है, द स्टाइल, द गुडलक, द फार्मूला, लेकिन फिल्म में सिर्फ बेअसर हो चुका फार्मूला ही नजर आता है।