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टशन : सिर्फ फार्मूला

हमें फॉलो करें टशन : सिर्फ फार्मूला

समय ताम्रकर

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निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : विजय कृष्ण आचार्य
संगीत : विशाल शेखर
कलाकार : अक्षय कुमार, करीना कपूर, सैफ अली खान, अनिल कपूर
यू/ए* 17 रील
रेटिंग : 1.5/5

1970 और 80 के दशक में बॉलीवुड की मसाला फिल्मों में फार्मूला का जोर था। एक फार्मूला था बदले का। बचपन में मासूम बच्चे के पिता की हत्या कर दी जाती है। हत्यारे को सिर्फ बच्चा पहचानता है और वह बड़ा होकर बदला लेता है।

एक फार्मूला होता था प्रेम का। बचपन में लड़का-लड़की में प्रेम हो जाता है और उसके बाद दोनों जुदा हो जाते हैं। वे जवान हो जाते हैं पर बचपन का प्यार भूला नहीं पाते। बड़े होने के बाद जिंदगी उन्हें फिर साथ कर देती है, लेकिन वे एक-दूसरे को पहचानते नहीं। फिल्म समाप्त होने के पूर्व घटनाक्रम ऐसा घटता है कि उन्हें सब कुछ याद आ जाता है।

उन दिनों फिल्म का क्लायमैक्स अक्सर विलेन के अड्‍डे पर फिल्माया जाता था। जहाँ बड़े-बड़े खाली डब्बे और पीपे पड़े रहते थे। नायक और खलनायक वहाँ मारामारी करते थे और वे खाली डब्बे धड़ाधड़ गिरते थे।

लड़ते-लड़ते अचानक आग भी लग जाती थी। खलनायक हजारों गोलियाँ चलाता था, लेकिन उसका निशाना हमेशा कमजोर रहता था। हीरो को एक भी गोली नहीं लगती थी। हीरो को बेवकूफ पुलिस ऑफिसर ढूँढते हुए आता था, तो वह भेष बदलकर गाना गाने लगता था।

यहाँ इन फार्मूलों को याद करने का मकसद फिल्म ‘टशन’ है। इन चुके हुए फार्मूलों का उपयोग निर्देशक विजय कृष्ण आचार्य ने ‘टशन’ में किया है, जिनका उपयोग अब फार्मूला फिल्मकार भी नहीं करते हैं।

विजय, जिन्होंने कि फिल्म की कहानी और पटकथा भी लिखी है, का सारा ध्यान चरित्रों को स्टाइलिश लुक देने में रहा है। उन्होंने दोयम दर्जे की कहानी लिखी है, जिसमें ढेर सारे अगर-मगर हैं। फिल्म इतनी स्टाइलिश भी नहीं है कि दर्शक सारी कमियाँ भूल जाए।

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कहानी है पूजा सिंह (करीना कपूर) की जो अपने पिता की हत्या का बदला भैयाजी (अनिल कपूर) से लेना चाहती है। भैय्याजी के पच्चीस करोड़ रुपए चुराने के लिए वह जिमी (सैफ अली खान) का सहारा लेती है। जिमी से प्यार का नाटक रचाकर वह पच्चीस करोड़ रुपए लेकर फुर्र हो जाती है।

भैयाजी रुपए वसूलने का जिम्मा कानपुर में रहने वाले बच्चन पांडे (अक्षय कुमार) को सौंपते हैं। बच्चन को पूजा अपने प्यार के जाल फंसाकर बेवकूफ बनाना चाहती है, लेकिन वो उसके बचपन का प्यार है। अंत में जिमी, पूजा और बच्चन मिलकर भैयाजी और उनकी गैंग का सफाया कर देते हैं।

पूजा पच्चीस करोड़ रुपए चुराने के बाद उन्हें पूरे भारत में अलग-अलग जगहों पर रख देती है। झोपडि़यों में ग्रामीण उसके करोड़ों रुपए संभालते हैं। इस बहाने ढेर सारी जगहों पर घूमाया गया है।

फिल्म की शूटिंग लद्दाख, केरल, हरिद्वार और ग्रीस में की गई है। लोकेशन अद्‍भुत हैं, लेकिन हरिद्वार और राजस्थान जाते समय बीच में ग्रीस के लोकेशन आ जाते हैं।

फिल्म के क्लायमैक्स में कई दृश्य हास्यास्पद हैं। जमीन पर चीनी लोगों से अक्षय की लड़ाई होती रहती है। अगले दृश्य में वे बिजली के खंबे पर लड़ने लगते हैं। सैफ अली खान बोट पर आकर अनिल की पिटाई करता है तो अगले दृश्य में अनिल साइकिल रिक्शा पर आ जाता है।

फिल्म में भैयाजी की पेंट बार-बार खिसकती रहती है और भैया जी उसे ऊपर खींचते रहते हैं। यही हाल कहानी का भी है। बार-बार यह पटरी से उतर जाती है और इसे बार-बार पटरी पर खींचकर लाया जाता है। मध्यांतर के बाद फिल्म की गति बेहद धीमी हो जाती है।

फिल्म का सकारात्मक पहलू है अक्षय कुमार और करीना कपूर का अभिनय। करीना इस फिल्म की हीरो हैं और पटकथा उनको केन्द्र में रखकर ही लिखी गई है। करीना ने इस फिल्म के लिए विशेष रूप से ज़ीरो फिगर बनाया और उसे खूब दिखाया। उनका चरि‍त्र कई शेड्स लिए हुए हैं जिन्हें करीना ने बखूबी जिया।

अक्षय कुमार खिलंदड़ व्यक्ति की भूमिका हमेशा शानदार तरीके से निभाते हैं। इस फिल्म में भी उनका अभिनय प्रशंसनीय है। करीना से प्यार होने के बाद उनके शरमाने वाला दृश्य देखने लायक है। उन्होंने अपने चरित्र की बॉडी लैग्वेंज को बारीकी से पकड़ा है।

सैफ का चरित्र थोड़ा दबा हुआ है, लेकिन उनका अभिनय और संवाद अदायगी उम्दा है। अनिल कपूर ने हिंग्लिश में ऐसे संवाद बोले कि आधे से ज्यादा समझ में ही नहीं आते। अनिल का अभिनय अच्छा है, लेकिन उनका चरित्र बोर करता है।

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विशाल शेखर का संगीत फिल्म देखते समय ज्यादा अच्छा लगता है। ‘छलिया’, दिल डांस मारे’ और ‘फलक तक’ का फिल्मांकन भव्य है।

‘टशन’ की टैग लाइन है, द स्टाइल, द गुडलक, द फार्मूला, लेकिन फिल्म में सिर्फ बेअसर हो चुका फार्मूला ही नजर आता है।

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