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डेथ रेस : खतरों भरी 'आखिरी रेस'

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हमें फॉलो करें डेथ रेस

संदीपसिंह सिसोदिया

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1975 में बनी क्लासिक फिल्म 'डेथ रेस 2000'के नए संस्करण में 2012 के अमेरिका की अँधेरी सीलन भरी जेलों में कैद खूँखार अपराधियों के बीच आजादी के लिए जबर्दस्त कार रेस और मारधाड़ के सिवा एक और बात दिखाई गई है, जो आज के परिदृश्य में प्रासंगिक बैठती है।

अमेरिका में छाई आर्थिक मंदी कई ऐसे क्षेत्रों पर भी असर डाल सकती है जिनके बारे में सोचना थोड़ा मुश्किल है, बहरहाल इस फिल्म की कहानी चलती है अमेरिका की एक सबसे बड़ी जेल टर्मिनल ऑयलैंड में होने वाली रोमांचक मगर खूनी कार रेस से जिसमें जीतने वाले को इनाम में मिलेगी 'आजादी' और हारने वाले को सिर्फ 'मौत। फिल्म में 2012 का समय दिखाया गया है जहाँ आर्थिक मंदी ने अमेरिका को हर तरह से प्रभावित कर दिया है। जेलों का प्रबंधन एक निजी कंपनी शेडी कॉर्पोरेशन को सौंप दिया गया है।

चालाक और क्रूर जेल वार्डन हैनेसी (जोऑन एलन) अपने चैम्पियन फ्रेंकस्टाइन के मारे जाने से परेशान है क्योंकि खूँखार और पागल हत्यारे फ्रेंकस्टाइन को अब तक डेथ रेस में कभी हराया नहीं जा सका है। साथ ही इस रेस का सीधा प्रसारण किया जाता है जिसे काफी लोकप्रियता हासिल है। ग्लेडिएटर जैसी इस रेस को देखने के लिए टीवी चैनल्स और इंटरनेट कंपनियाँ शेडी कॉर्पोरेशन को मुँहमाँगा पैसा देने तैयार हैं।

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इस रेस की सबसे खास बात है कि रेस में भाग लेने वाले सभी प्रतियो‍गियों की कारों में आधुनिक हथियार लगे होते हैं जिसे वे अपने प्रतिद्वंद्वी पर इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा रास्ते में भी इन कार चालकों को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है जिन्हें पार करना नामुमकिन है।

अपने स्टार ड्रायवर की जगह भरने के लिए हैनेसी एक भयानक षड्‍यंत्र के तहत एक मशहूर रेस ड्रायवर जेंसन एम्स (जेसन सटाहम) को उसकी पत्नी के कत्ल के जुर्म में फँसवा टर्मिनल ऑयलैंड ले आती है और उसके सामने प्रस्ताव रखती है कि अगर वह डेथ रेस जीत लेता है तो उसे आजाद कर दिया जाएगा।

जेंसन इस प्रस्ताव को मान लेता है, उसका मुकाबला होता है 'मशीनगन जो'से और इस रेस में एक रोमांचक मोड़ तब आता है जब जेंसन को इस बात का पता चलता है कि इस रेस में उसकी मौत निश्चित है और उसकी पत्नी का कत्ल किसने करवाया। जेंसन इस रेस से कैसे बच निकलता है और डेथ रेस का विजेता कौन बनता है, इस रहस्य को सिर्फ सिनेमा हॉल में ही देखकर इस फिल्म का मजा लिया जा सकता है।

ट्रांसपोर्टर फेम रफ-टफ लुक वाले जेसन सटाहम इस रोल के लिए फिट बैठते हैं, ट्रांसपोर्टर के कुशल कार चालक जेंसन इस फिल्म में भी फर्राटे भरते,अद्भुत स्टंट और एक्शन दृश्यों में सहज लगे हैं।

1 घंटे 29 मिनट की इस फिल्म में कुछ सीन जैसे कि जेल के मेस में होने वाली लड़ाई और मशीनगन जो और जेंसन के बीच आखिरी रेस देखने लायक हैं।

इस फिल्म को निर्देशित किया है 2007 की चर्चित फिल्म एलियन वर्सेस प्रीडेटर के निर्देशक पॉल एंडर्सन ने। इस फिल्म में उन्होंने तेज रफ्तार से दौड़ती कारों को हर एंगल से खूब फिल्माया है। अपेक्षाकृत नए निर्देशक के तौर पर पिछली फिल्म के मुकाबले इस फिल्म में पॉल में कई सुधार देखने को मिलते हैं या उनके पास इस बार अच्छी कैमरा टीम है।

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वित्तीय संकट का असर और निजी कंपनियों द्वारा मुनाफा कमाने के अमानवीय तरीकों का एक नया ही रूप दिखाने में निर्देशक कामयाब रहे हैं।

इस फिल्म में सिर्फ एक बात अखरती है जो है फिल्म की जरूरत से ज्यादा तेज गति, कई बार निर्देशक ने अपनी और कलाकारों की कमियाँ छुपाने के लिए फिल्म को जंप दे दिया है। तेज गति से चलने पर मज़ा आता है पर हर रेस में थोड़े स्पीड ब्रेकर जरूरी होते हैं।

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