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डेविड : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : रील लाइफ एंटरटेनमेंट प्रा.लि., गेटअवे फिल्म्
निर्माता : बिजॉय नाम्बियार, शारदा त्रिलो
निर्देशक : बिजॉय नाम्बिया
कलाकार : नील नितिन मुकेश, विक्रम, विनय वीरमानी, तब्बू, ईशा श्रावणी, मोनिका डोगरा, लारा दत्ता, सौरभ शुक्ला
सेंसर ‍सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 35 मिनट 26 सेकं

एक ही फिल्म में अनेक कहानियों को समानांतर दिखाने का जो चलन चल रहा है उसी को ‘डेविड’ ने आगे बढ़ाया है। तीन डेविड की कहानियां साथ में दिखाई गई है। एक 1975 की लंदन से है, दूसरी 1999 की मुंबई से है और तीसरी 2010 की गोआ से है।

लंदन का डेविड (नील नितिन मुकेश) एक अपराधी परिवार से है। बचपन में उसके सर से पिता का साया उठने के बाद उसे एक अपराधी ने पाल-पोस कर बड़ा किया है। जवान होने पर उसे पता चलता है कि वही व्यक्ति उसके पिता का हत्यारा है। वह अजीब ‍सी स्थिति में फंस जाता है।

मुंबई के डेविड (विनय वीरमानी) की उम्र बीस के आसपास है। लोअर मिडिल क्लास का डेविड संगीतकार बनना चाहता है, लेकिन उसके पिता का एक राजनीतिक दल मुंह काला कर देता है। आरोप है कि वह लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर उन्हें ईसाई बना रहा है।

गोआ का डेविड (विक्रम) अपनी दोस्त की मंगेतर को चाहने लगता है और लाख कोशिश के बावजूद अपने दिल की बात वह बता नहीं सकता। कुछ दिनों में शादी होने वाली है। क्या होगा इस डेविड का?

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अपराध, प्रेम कहानी और सामाजिक मुद्दों को तीन डेविडों के माध्यम से दिखाया गया है, लेकिन कमजोर कहानियों के कारण बात नहीं बन पाती। 1975 वाली कहानी बढ़िया है। इसे ब्लेक एंड व्हाइट में फिल्माया गया है, लेकिन किरदारो ने इसे रंगीन बना दिया है।

गोआ और मुंबई के डेविड की कहानियां एक स्तर के बाद पकाऊ हो जाती हैं। वही के वही सीन बार-बार देखने पड़ते हैं और इनमें कोई उतार-चढ़ाव भी नहीं हैं।

तीनों डेविड का अपने पिता के साथ अलग किस्म का रिश्ता है। डेविड नंबर एक उस इंसान को अपना डैड मानता है जिसने उसे सहारा दिया। एहसान और बदले के बीच वह जूझता रहता है। डेविड नंबर दो अपने पिता से ‍नफरता करता है, लेकिन जब उसके पिता पर संकट आता है जो वह तिलमिला जाता है। डेविड नंबर तीन के पिता भूत बन कर उसके पास आते रहते हैं। भूत का यह रोल सौरभ शुक्ला ने निभाया है और उनके सीन मजेदार बन पड़े हैं।

‘शैतान’ से प्रभावित करने वाले निर्देशक विजय नाम्बियार एक निर्देशक के रूप में यहां भी प्रभावित करते हैं। तकनीक पर उनकी गजब की पकड़ है। शॉट टेकिंग में उनका जवाब नहीं है, लेकिन स्क्रिप्ट में वे मार खा गए। दो कहानियां बेहद लंबी खींची गई जिससे फिल्म का समग्र प्रभाव घट गया।

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नील नितिन मुकेश स्टाइलिश लगे और उन्होंने अपना काम उम्दा किया। विनय वीरमानी और विक्रम का काम भी अच्छा है, लेकिन उनके किरदार ठीक से नहीं लिखे गए हैं। छोटे-से रोल में तब्बू अपना असर छोड़ती हैं। मोनिका डोगरा, लारा दत्ता, नासेर, ईशा श्रावणी और सौरभ शुक्ला ने भी अपने किरदारों से न्याय किया है। फिल्म की एडिटिंग, बैकग्राउंड म्युजिक, लोकेशन्स और प्रोडक्शन वैल्यू प्रभावी है।

डेविड कुछ-कुछ जगह बांध कर रखती है। तकनीकी रूप से यह फिल्म सशक्त है, लेकिन इसकी लंबाई और स्क्रिप्ट बड़ी कमजोरियां हैं।

रेटिंग : 2.5/5
1-बेकार, 2-औसत, 3-अच्छी, 4-बहुत अच्छी, 5-अद्भुत

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