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डॉन 2 : फिल्म समीक्षा

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हमें फॉलो करें डॉन 2

समय ताम्रकर

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बैनर : एक्सेल एंटरटेनमेंट, रिलायंस एंटरटेनमेंट
निर्माता : फरहान अख्तर, रितेश सिधवानी, शाहरुख खान
निर्देशक : फरहान अख्तर
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : शाहरुख खान, प्रियंका चोपड़ा, लारा दत्ता, बोमन ईरानी, ओम पुरी, कुणाल कपूर, रितिक रोशन (मेहमान कलाकार)
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 25 मिनट * 17 रील
रेटिंग : 3/5

2006 में फरहान अख्तर द्वारा निर्देशित ‘डॉन’ अमिताभ बच्चन वाली डॉन का रीमेक थी। उसमें ज्यादा करने को कुछ नहीं था क्योंकि सामने एक फिल्म मौजूद थी। पांच वर्ष बाद ‘डॉन 2’ में कहानी को आगे बढ़ाना उनके लिए चुनौती थी क्योंकि अब सब कुछ उनकी कल्पना पर निर्भर था। सामने कोई फिल्म नहीं थी।

बॉलीवुड न सही तो हॉलीवुड ही सही। इस बार फरहान और उनके साथी लेखकों (अमित मेहता - अंबरीष शाह) ने कुछ हॉलीवुड फिल्मों जैसे डाई हार्ड या मिशन इम्पॉसिबल से मसाला उधार लेकर डॉन का सीक्वल लिखा।

कहानी में जरूरी उतार-चढ़ाव, सस्पेंस और थ्रिल है, लेकिन बहुत सारी तकनीकी बातें (जैसे कम्प्यूटर हैकिंग) भी हैं, जो युवाओं को तो अच्छी लगेगी, पर सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर के दर्शकों के सिर पर से गुजरेगी। साथ ही कई जगह मुश्किल कामों को डॉन के लिए बहुत ही आसान बना दिया गया है। लेकिन फिल्म का स्टाइलिश लुक, शाहरुख खान का अभिनय, जबरदस्त एक्शन और सस्पेंस भरा क्लाइमेक्स इन कमियों को पर भारी पड़ता है और फिल्म को एक बार देखने लायक बनाता है।

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एशिया पर कब्जा जमाने के बाद डॉन (शाहरुख खान) की निगाह अब यूरोप पर है। इसके लिए उसे वर्धान (बोमन ईरानी) की सहायता चाहिए जो मलेशिया की जेल में बंद है। इंटरपोल के डिटे‍क्टिव मलिक (ओम पुरी) और रोमा (प्रियंका चोपड़ा) के सामने डॉन आत्मसर्पण कर उसी जेल में जाता है जहां वर्धान है।

वर्धान और डॉन के पास एक-एक चाबी है जिसके जरिये एक लॉकर खुलता है। उस लॉकर में एक टेप है जिसकी सहायता से डॉन, जेके दीवान और बर्लिन स्थित बैंक के प्रेसिडेंट को ब्लैकमेल करना चाहता है। डॉन और वर्धान जेल से भाग निकलते हैं।

दोनों जेके दीवान को टेप दिखाकर बैंक में रखी यूरो करंसी छापने की प्लेट्स का एक्सेस कोड चाहते हैं। डॉन उन प्लेट्स की सहायता से यूरो छापकर अमीर बनना चाहता है। दीवान, जब्बार (नवाब शाह) नामक गुंडे को डॉन को खत्म करने की जिम्मेदारी सौंपता है, लेकिन डॉन उसे अपने साथ मिला लेता है।

एक्सेस कोड पाने के बाद डॉन को ऐसे तकनिशियन की जरूरत पड़ती है जो कम्प्यूटर हैकर हो। जो भारी सुरक्षा में रखी गई प्लेट्सस को चुराने में उसकी मदद कर सके। समीर अली (कुणाल कपूर) को वह अपने साथ मिलाता है और प्लेट्स चुराने में कामयाब होता है।

प्लेट्स पाते ही जब्बार और वर्धान मिल जाते हैं और डॉन से वे प्लेट्स ले लेते हैं। समीर भी पुलिस को बुलाकर डॉन को पकड़वा देता है, लेकिन शातिर दिमाग डॉन के इरादे कुछ और ही हैं। इसके बाद शुरू होता है डॉन का जबरदस्त खेल।

फिल्म के पहले हॉफ में बहुत ज्यादा प्लानिंग है, इसलिए कही-कहीं फिल्म खींची हुई और बोर लगती है। इस हॉफ में डॉन और वर्धान का जेल से भागना, जब्बार द्वारा पीछा करने पर डॉन का बिल्डिंग से कूद जाना तथा डॉन और रोमा का कार चेजिंग सीन उम्दा बन पड़े हैं।

फिल्म स्पीड पकड़ती है सेकंड हाफ में जब बनाए गए प्लान पर एक्शन लिया जाता है। इंटरवल के थोड़ी देर बाद ही क्लाइमेक्स शुरू हो जाता है जो फिल्म के खत्म होने तक चलता है। इसमें डॉन और उसके साथी प्लेट्स चुराने के लिए बैंक में जाते हैं। यहां पर वर्धान और जब्बार का डॉन के खिलाफ हो जाना चौंकाता है। कई रहस्य उजागर होते हैं जो फिल्म को दिलचस्प बनाते हैं।

फरहान अख्तर ने स्टाइलिश तरीके से कहानी को परदे पर पेश किया है। मलेशिया, स्विट्जरलैंड और जर्मनी की लोकेशन का उन्होंने बखूबी उपयोग किया है। डॉन का किरदार उन्होंने कुछ इस तरह प्रस्तुत किया है कि नकारात्मक होने के बावजूद दर्शकों का समर्थन मिलता है। डॉन जब पुलिस की पकड़ से निकलता है तो उन्हें खुशी मिलती है। फिल्म सिंगल ट्रेक पर चलती है और रोमांस या कॉमेडी की ज्यादा गुंजाइश भी नहीं थी। अंतिम रीलों में रोमा और डॉन की नोक-झोक अच्छी लगती है। फिल्म की लंबाई पर फरहान नियंत्रण रखते और फर्स्ट हाफ बेहतर बनाते तो बात ही कुछ और होती।

शाहरुख खान फिल्म की जान है। डॉन के एटीट्यूड को उन्होंने बेहतरीन तरीके से पेश किया है। उनके चलने और बोलने का स्टाइल उनके फैंस को बहुत अच्छा लगेगा। ‘मलिक साहब, आप मेरी मां को नहीं जानते’ यह संवाद बोलते समय उनके चेहरे के एक्सप्रेशन देखने लायक है।

फिल्म में उन्हें कई अच्छी लाइनें मिली हैं, जैसे - ‘दुश्मन अपनी चाल चले उसके पहले डॉन अपनी चाल चल देता है’, ‘दोस्तों का हाल भले ही डॉन ना पूछे लेकिन दुश्मनों की हर खबर वह जरूर रखता है’ और बार-बार सुनने लायक लाइन ‘डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।‘

प्रियंका चोपड़ा के कैरेक्टर को ठीक से पेश नहीं किया गया है। डॉन को पकड़ने के लिए दिन-रात एक करने वाली रोमा, डॉन को मारने का मौका आसानी से छोड़ देती है। हालांकि इसकी वजह डॉन के करिश्मे को बताया गया है, लेकिन यह बात हजम नहीं होती है। रोमा खुद कन्फ्यूज है और नहीं जानती कि वह डॉन से प्यार करती है नफरत। लेकिन प्रियंका ने अभिनय अच्छा किया है।

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लारा दत्ता के ग्लैमर का ठीक से उपयोग नहीं हुआ है। बोमन ईरानी, अली खान, नवाब शाह और कुणाल कपूर का अभिनय उल्लेखनीय है। रितिक रोशन वाला प्रसंग जबरदस्ती ठूंसा गया है। फिल्म का संगीत सबसे बड़ा माइनस पाइंट है। एक भी ढंग का गाना नहीं है। जेसन वेस्ट की सिनेमाटोग्राफी शानदार है। फिल्म के अंतिम दृश्य में डॉन एक मोटरबाइक चलाता है जिसका नंबर DON 3 दिखाया गया है। यह नंबर बताता है कि इसका तीसरा भाग भी बनाया जा सकता है।

कुल मिलाकर डॉन 2 शाहरुख के फैंस के साथ स्टाइलिश और एक्शन मूवी पसंद करने वालों को अच्छी लगेगी, लेकिन फिल्म देखते समय जो सिर खपाना नहीं चाहते, उनके लिए इसमें कुछ नहीं है।

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