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दम मारो दम :‍ फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : रमेश सिप्पी एंटरटेनमेंट, फॉक्स स्टार स्टुडियोज
निर्माता : रमेश सिप्पी
निर्देशक : रोहन सिप्पी
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : अभिषेक बच्चन, बिपाशा बसु, राणा दगुबती दागुबती, प्रतीक, आदित्य पंचोली, दीपिका पादुकोण औविद्यबालन (मेहमाकलाकर)
केवल वयस्कों के लिए * 2 घंटे 10 मिनट * 16 रील
रेटिंग : 2.5/5

रोहन सिप्पी ने उस दौर की कहानी को चुना है जब उनके पिता रमेश सिप्पी फिल्में बनाया करते थे। उस जमाने में हर दूसरी-तीसरी फिल्म में चोर-पुलिस की लुकाछिपी चला करती थी।

दम मारो दम में भी चोर-पुलिस हैं और पृष्ठभूमि में गोआ, जहाँ इन दिनों ड्रग्स माफियाओं ने अपने पैर पसार लिए हैं। गोआ को इसलिए चुना गया है ताकि रियलिटी का आभास हो।

माइकल बारबोसा नामक एक ऐसा विलेन है जिसके बारे में कोई नहीं जानता। किसी ने उसे नहीं देखा है। पुलिस वाले उसे साया मानते हैं और उसे पकड़ने की जिम्मेदारी एसीपी विष्णु कामथ को सौंपी जाती है।

विष्णु कभी गाँधीजी को बेहद पसंद करता था, लेकिन केवल नोट में उनकी छपी फोटो के कारण। फैमिली का ध्यान रखना है इसलिए अपनी जेब भरने के लिए वह रिश्वत लेता था।

एक्सीडेंट में उसकी पत्नी और बेटे की मौत के बाद उसे समझ में आ जाता है कि जमीर को जब बेच दिया जाए तो जिंदगी सूद के साथ वसूलती है। अब वह पैसे के लिए नहीं बल्कि कर्तव्य मानकर ड्यूटी बजाता है। काम के दौरान दो पेग लगाकर कर गोआ में फैले ड्रग माफियाओं को जिसे वह गटर की गंदगी मानता है साफ करने में जुट जाता है।

इस गटर में उसे कई लोग मिलते हैं जो मासूम होते हुए भी ड्रग्स के जाल में फँस जाते हैं क्योंकि मुख्य अपराधी उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। कैसे विष्णु अपने काम को अंजाम देता है यह एक थ्रिलर की तरह पेश किया गया है।

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पहले हाफ में कहानी बिलकुल बहती हुई चलती है। यहाँ तक फिल्म पर निर्देशक रोहन सिप्पी की जबरदस्त पकड़ है। हर कैरेक्टर के तार कही ना कही ड्रग माफियाओं से जुड़े हुए हैं।

हर कैरेक्टर का परिचय कहानी को आगे बढ़ाते हुए दिया जाता है और उन सबके संबंधों को आपस में बड़ी ही खूबसूरती के साथ जोड़ा गया है। फिल्म इतनी तेज गति से भागती है कि जब स्क्रीन पर इंटरवल लिखा आता है तो यह ब्रेक अच्‍छा नहीं लगता।

इंटरवल के तुरंत बाद एक गाना आता है, जो अखरता है, लेकिन मान लेते हैं दर्शकों को वापस आकर सीट पर बैठने के लिए थोड़ा वक्त दिया गया है। इसके बाद की फिल्म रोहन सिप्पी के हाथों से वैसे ही निकल जाती है जैसे मुठ्ठी में से रेत।

दरअसल दोष रोहन का नहीं बल्कि फिल्म लेखक (श्रीधर राघवन) का है क्योंकि यहाँ से वे कहानी को ठीक से आगे नहीं ले जा सके। अपराधी तक पहुँचने का उतना मजा या रोमांच नहीं है जो होना चाहिए था। कुछ कमी सी लगती है।

इसकी वजह यह है कि क्लाइमैक्स तक पहुँचने के लिए लेखक ने अपनी सहूलियत के लिए कुछ ज्यादा ही छूट ले ली है। कुछ गानों और दृश्य बेवजह रखे गए हैं और कुछ कैरेक्टर्स को मार दिया गया है। क्लाइमैक्स के पहले हीरो को साइड लाइन कर दिया है जो दर्शकों को अच्छा नहीं लगे।

बतौर निर्देशक रोहन का काम बेहतरीन है। पूरी फिल्म में उनका दबदबा नजर आता है। दर्शकों को सोचने के लिए ज्यादा वक्त न देते हुए उन्होंने घटनाक्रम को बेहद तेज रखा है।

दृश्यों को छोटा रखते हुए उन्होंने बहुत ज्यादा कट्‌स रखे हैं। फिल्म को उन्होंने स्टाइलिश लुक दिया है और तकनीशियनों तथा अभिनेताओं से अच्छा काम लिया है। तकनीकी रूप से फिल्म प्रशंसनीय है।

रामगोपाल वर्मा की ज्यादातर फिल्मों को फिल्माने वाले अमित रॉय ने यहाँ भी अपना काम बखूबी किया है। फिल्टर्स का उपयोग कर उन्होंने फिल्म को एक अलग ही लुक दिया है और गोआ की गलियों को खूब फिल्माया है। आरिफ शेख का संपादन बेहद चुस्त है।

प्रीतम का संगीत मधुर है और कुछ गाने सुनने लायक है। हालाँकि फिल्म देखते समय गाने व्यवधान पैदा करते हैं। आरडी बर्मन द्वारा संगीत बद्ध 'दम मारो दम' का बैकग्राउंड म्यूजिक में जमकर उपयोग किया गया है, जो फिल्म देखते समय रोमांच पैदा करता है।

बहुत दिनों के बाद अभिषेक बच्चन का बेहतरीन परफॉर्मेंस देखने को मिला। एक रफ-टफ पुलिस ऑफिसर की भूमिका उन्होंने बेहतरीन तरीके से निभाई है।

बिपाशा बसु के किरदार में कई तरह के शेड्‌स है जिसे उन्होंने बखूबी जिया है। उनकी सेक्स अपील का भी अच्छा उपयोग किया गया है। राणा दगुबती की हिंदी फिल्मों में अच्छी शुरुआत है और उन्हें अभिषेक के बराबर फुटेज दिया गया है। प्रतीक का अभिनय भी उल्लेखनीय है।

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दीपिका ने अपने सेक्सी मूवमेंट्‌स से उन पर फिल्माए गए गीत को नशीला बना दिया है। शायद विद्या बालन की प्रतिभा के साथ न्याय करने वाले रोल लिखे नहीं जा रहे हैं, इसलिए वे चंद मिनटों के रोल स्वीकार कर रही हैं ताकि दर्शकों की यादों में बनी रहे। आदित्य पंचोली बहुत दिनों बाद दिखाई दिए और ऐसी भूमिकाएँ वे पहले भी निभा चुके हैं।

'दम मारो दम' तकनीकी रूप से बेहद सशक्त फिल्म है। हालाँकि यह बुरी फिल्म नहीं है, लेकिन इंटरवल के बाद यह ज्यादा दम नहीं भर सकी।

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