निर्माता : विनय पाठक, आज़म खान निर्देशक : शशांत शाह संगीत : कैलाश खेर, परेश, नरेश कलाकार : विनय पाठक, नेहा धूपिया, रणवीर शौरी, रजत कपूर, सौरभ शुक्ला, सरिता जोशी, गौरव गेरावर्षों पहले हृषिकेश मुखर्जी ने ‘आनंद’ नामक फिल्म बनाई थी, जिसमें राजेश खन्ना को पता चल जाता है कि कुछ दिनों बाद उनकी मौत होने वाली है। मरने के पहले वे अपनी जिंदगी का पूरा आनंद उठाते हैं। शशांत शाह की ‘दसविदानिया’ की कहानी भी इससे मिलती-जुलती है। फिल्म के मुख्य किरदार को पता है कि उसके पास ज्यादा समय नहीं है और मरने के पहले वह दस ख्वाहिशों को पूरा करना चाहता है। यह फिल्म देखने लायक इसलिए है क्योंकि इसमें आम आदमी की भावनाओं को अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है। वह हमारे जैसा ही लगता है और उसके दर्द को दर्शक अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं। दूसरी ओर फिल्म की धीमी गति अखरने वाली है। कुछ प्रसंग रोचक नहीं हैं, जिसकी वजह से फिल्म का असर कम हो जाता है। शर्मिला और चुप रहने वाले अमर (विनय पाठक) के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते। रोज सुबह उठकर वह अपने काम करने की सूची बनाता है और उन्हें पूरा कर अगले दिन के लिए तैयार हो जाता है। एक दिन अमर को पता चलता है कि उसे कैंसर है और तीन दिन बाद वह मरने वाला है। अमर दस ऐसी ख्वाहिशों को सूची बनाता है, जिसे मरने के पहले वह पूरा करना चाहता है। निर्देशक शशांत शाह ने साधारण कहानी को उम्दा तरीके से पेश किया है। फिल्म के कुछ दृश्य शानदार हैं। साहस के साथ विनय जब अपने बॉस (सौरभ शुक्ला) से बात करता है तो सभी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। बरसात की रात विनय और नेहा वाला दृश्य शानदार बन पड़ा है। इस सीन में खामोशी बहुत कुछ कह देती है। अर्शद सईद की पटकथा थोड़ी और चुस्त हो सकती थी। रशियन लड़की और गिटार टीचर वाला प्रसंग विश्वसनीय नहीं है। फिल्म के संवाद बेहतरीन हैं।
विनय पाठक ने पूरी फिल्म का भार अपने कंधों पर उठाया है और उनका अभिनय शानदार है। सभी कलाकारों (रजत कपूर, सौरभ शुक्ला, रणवीर शौरी, नेहा धूपिया, सरिता जोशी और गौरव गेरा) ने अपने-अपने किरदारों में जान डाल दी है।
‘दसविदानिया’ फिल्म का पहला घंटा शानदार है, इसके बाद फिल्म की रफ्तार बेहद धीमी हो जाती है। कुछ कमियों के बावजूद यह फिल्म देखने लायक है।