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दिल बोले हड़िप्पा : वीर, वीरा और क्रिकेट

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समय ताम्रकर

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बैनर : यशराज फिल्म्स
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : अनुराग सिंह
गीतकार : जयदीप साहनी
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती, जूलियस
कलाकार : शाहिद कपूर, रानी मुखर्जी, शेर्लिन चोपड़ा, पूनम ढिल्लो, अनुपम खेर, राखी सावंत, व्रजेश हीरजी
*यू/ए सर्टिफिकेट * 147 मिनट * 14 रील
रेटिंग : 2.5/5

यशराज फिल्म्स वालों की सोच सीमित हो गई है। अपनी ही पिछली कुछ फिल्मों को घुमा-फिराकर उन्होंने ‘दिल बोले हड़िप्पा’ बना दी है। वही पंजाब, भारत-पाकिस्तान (वीर जारा), खेल (चक दे इंडिया), नाच-नौटंकी (आजा नच ले), भेष बदलना (रब ने बना दी जोड़ी) जैसी चीजें इस फिल्म में नजर आती हैं। डीडीएलजे को हर फिल्म में याद किया जाता है, इसमें भी किया गया है।

पंजाब के लहलहाते खेत यशराज फिल्म्स की पहचान है और इन्हीं खेतों के दृश्यों के साथ शुरू होती है हड़िप्पा। वीरा (रानी मुखर्जी) क्रिकेट की दीवानी है। एक तेज गेंदबाज शर्त लगाता है कि उसकी 6 गेंदों पर यह लड़की 6 छक्के नहीं लगा सकती। बिना पैड और ग्लोव्ज पहने वीरा यह कारनामा कर दिखाती है।

दो दोस्त हैं अनुपम खेर और दलीप ताहिल। एक पाकिस्तानी में रहता है और दूसरा भारत में। दोनों एकदम बनावटी लगते हैं। हर साल उनकी अमृतसर और लाहौर की टीम अमन कप में एक-दूसरे के खिलाफ खेलती है। नौ साल से अनुपम की टीम हार रही है।

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अनुपम का बेटा रोहन (शाहिद कपूर) लंदन में क्रिकेट खेलता है। उसे लंदन से बुलवाया जाता है ताकि अनुपम की टीम जीते। एनआरआई लड़के की पंजाब में एंट्री होती है। विलायती मुंडा और देशी गर्ल के बीच नोक-झोंक शुरू हो जाती है।

रोहन अपनी टीम के लिए खिलाडि़यों का सिलेक्शन करता है। वीरा भी सिलेक्शन के लिए जाती है, लेकिन लड़की होकर वह लड़कों के बीच कैसे क्रिकेट खेल सकती है, उसे सिक्युरिटी गॉर्ड भगा देता है। ‘औरत को माता के रूप में पूजते हैं और इंसान के रूप में कुचल देते हैं’ संवाद बोलकर वीरा वापस नौटंकी में लौट जाती है।

नौटंकी में वह लड़के पात्र अदा करती है और उसे आइडिया आता है कि क्यों न वह वीरा से वीर सिंह बनकर टीम में शामिल हो जाए। यहाँ याद आता है ‘रब ने बना दी जोड़ी’ का सुरिंदर साहनी जो मूँछ कटाकर राज बन जाता है। वीरा दाढ़ी-मूँछ लगाकर वीरसिंह बन जाती है और क्रिकेट टीम में उसका सिलेक्शन हो जाता है।

क्रिकेट मैच तो 6 महीने बाद होगा, जो अंतिम रीलों में दिखाया जाएगा। तब तक रोमांस दिखाया जाए। तो विलायती मुंडे को हमारी बफेलो गर्ल (वीरा को रोहन इसी नाम से पुकारता है) पसंद आ जाती है और यही ‍पर फिल्म मार खा जाती है। पढ़ा-लिखा रोहन अचानक जाहिल वीरा को क्यों चाहने लगता है यह फिल्म में स्पष्ट नहीं है। न ही उनके रोमांस में गर्मी नजर आती है।

वीरा और रोहन के रोमांस के बीच में सोनिया (शेर्लिन चोपड़ा) नामक कबाब में हड्डी घुसाने की कोशिश की गई, लेकिन बाद में निर्देशक सोनिया को भी भूल गए। कम कपड़े पहनने वाली सोनिया की अक्ल भी कम थी। मैदान में चमकते सूरज के नीचे बैठकर वह धूप से बचने वाली क्रीम लगाती है।

आखिरकार मैच वाला दिन आ जाता है। अमृतसर के लड़के अच्छा प्रदर्शन करते रहते हैं, लेकिन बीच मैदान में रोहन को पता चल जाता है कि जो वीरसिंह बनकर खेल रहा है वो असल में वीरा है। उसे गुस्सा आ जाता है और उसकी गेंदों की पिटाई होती है। लेकिन दूसरे गेंदबाज क्यों पिटने लगते हैं ये समझ से परे है।

रोहन फैसला करता है वीरसिंह बैटिंग नहीं करेगा। तो जनाब फिल्डिंग क्यों करवाई थी? उसी समय मैदान से बाहर कर देना था। अमृतसर के लड़के बैटिंग के समय लड़खड़ा जाते हैं। 10 ओवर में सवा सौ से ज्यादा रन बनाने हैं और नौ विकेट गिर चुके हैं। ड्रिंक्स ब्रेक में रोहन और उसके पिता की खुसर-पुसर होती है और वीरसिंह को बैटिंग देने के लिए रोहन राजी हो जाता है। रोहन और वीर लाहौर की गेंदबाजों की खूब खबर लेते हैं। ये तो पहले से पता ही था कि अमृतसर की टीम जीतेगी, लेकिन रोमांच अच्छा पैदा किया गया।

पुरस्कार समारोह के दौरान रोहन सभी के सामने बताता है कि वीर असल में लड़की है। पाकिस्तानी चिटिंग-चिटिंग चिल्लाने लगते हैं। वीरा माइक पकड़कर भाषण देती है कि लड़कियाँ, लड़कों के साथ क्रिकेट क्यों नहीं खेल सकती। खेल देखना चयन किया जाना चाहिए न कि लिंग देखकर। आईसीसी नोट करें। भाषण सुनकर पाकिस्तानी ताली बजाते हैं और अचानक रोहन का भी हृदय परिवर्तन हो जाता है।

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पूरी फिल्म में रानी छाई रहीं। स्क्रिप्ट का सपोर्ट नहीं मिलने के बावजूद उन्होंने बेहतरीन अभिनय किया। शाहिद कपूर ठीक-ठाक रहे। शेर्लिन चोपड़ा और राखी सावंत का निर्देशक अनुराग सिंह ठीक से उपयोग नहीं कर पाए। फिल्म में बनावटीपन ज्यादा है, इसलिए ज्यादा असर नहीं छोड़ पाती। गीत-संगीत औसत दर्जे का है।

‘दिल बोले हड़िप्पा’ बुरी फिल्म नहीं है, लेकिन यशराज फिल्म्स अपनी उन्हीं बातों को अब रबर की तरह खींचने लगा है, जिससे ो अब अपना प्रभाव खोती जा रही हैं। जनाब आदित्य, अब कुछ नया करिए।

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