Festival Posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

धन धनाधन गोल : गोलरहित मैच

Advertiesment
हमें फॉलो करें धन धना धन गोल जॉन अब्राहम

समय ताम्रकर

PR
निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला
निर्देशक : विवेक अग्निहोत्री
गीत : जावेद अख्तर
संगीत : प्रीतम
कलाकार : जॉन अब्राहम, बिपाशा बसु, अरशद वारसी, बोमन ईरानी, दलीप ताहिल
रेटिंग : 2/5

बॉलीवुड में शायद ही एक वर्ष में खेलों पर आधारित इतनी फिल्में प्रदर्शित हुई हो, जितनी कि 2007 में हुई हैं। ‘हैट्रिक’, ‘चेन कुली की मेन कुली’, ‘चक दे इंडिया’ के बाद अब ‘धन धना धन गोल’ की बारी है। ‘गोल’ की कहानी बहुत कुछ ‘चक दे इंडिया’ से मिलती-जुलती है, इसीलिए अगस्त में प्रदर्शित होने वाली इस फिल्म को आगे बढ़ाकर नवंबर में प्रदर्शित किया गया है।

‘चक दे’ की तरह यहाँ भी एक कोच टोनी सिंह (बोमन ईरानी) है, जो अपने खिलाड़ी जीवन में एक महत्वपूर्ण फाइनल मैच के पूर्व डर कर भाग गया था। गुमनामी भरा जीवन बिताने वाले इस शख्स से इंग्लैण्ड स्थित साउथ हॉल यूनाइटेड फुटबॉल क्लब प्रशिक्षण देने के लिए संपर्क करता है।

इस क्लब में सभी खिलाड़ी दक्षिण एशियाई देशों के हैं। ये सारे खिलाड़ी फिसड्डी हैं, जो शौकिया फुटबॉल खेलते हैं। क्लब के पास अपना मैदान बचाने के लिए पैसा नहीं है। वह कंबाइड कंट्रीज फुटबॉल लीगेज जीतकर ही मैदान बचाने लायक पैसा जुटा सकता है। टोनी खिलाडि़यों को प्रशिक्षण देता हैं और वे चैम्पियनशिप जीत जाते हैं।

पूरी फिल्म ब्रिटेन में फिल्माई गई है, इसलिए वहाँ की परिस्थितियाँ, माहौल और समस्याओं का भी थोड़ा-सा टच फिल्म में दिया गया है। भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश के खिलाडि़यों को रंगभेद का शिकार बनना पड़ता है। वे अच्छे खिलाड़ी होने के बावजूद अंग्रेजों की टीम में स्थान बनाने में नाकामयाब होते हैं।

webdunia
PR
‘गोल’ बनाते समय भारतीयों के साथ पाकिस्तानियों और बंगलादेशियों का भी ध्यान रखा गया है। शायद निर्माता की निगाह भारत की बजाय ब्रिटेन में रहने वाले दक्षिण एशियाई लोगों पर ज्यादा है और यह फिल्म उनको ही ध्यान में रखकर बनाई गई है।

साउथ हॉल की टीम चूके हुए लोगों से बनी है। इस टीम के अधिकांश खिलाड़ी थुलथुले और उम्रदराज दिखाई देते हैं। उनको देखकर लगता है ‍कि चैम्पियनशिप जीतना तो दूर वे मैदान के दो चक्कर नहीं लगा सकते। यह एक क्लब की कहानी है, जो‍ कि इंग्लैण्ड में स्थित है। ऐसे में दर्शक इस क्लब से जुड़ाव महसूस नहीं कर पाता।

फिल्म का नायक सनी भसीन (जॉन अब्राहम) गिरगिट की तरह रंग बदलता रहता है। पहले वह साउथ हॉल के खिलाडि़यों को जोकरों का समूह कहता है। फिर वह उनके क्लब में शामिल हो जाता है। नाम और दाम की लालच में वह क्लब को बीच में छोड़कर दूसरे क्लब में शामिल हो जाता है। फाइनल के पूर्व अंतिम क्षणों में वह फिर टीम के साथ जुड़ जाता है। इन सबके पीछे कोई ठोस कारण नहीं दिया गया है। जॉन अब्राहम और उनके पिता के बीच तनाव थोपा हुआ लगता है। जॉन और अरशद के बीच कुछ दृश्य अच्छे हैं।

विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म को स्टाइलिश लुक दिया है, लेकिन पटकथा की खामियों की तरफ उन्होंने ध्यान नहीं दिया। मध्यांतर के पूर्व वाला हिस्सा कमजोर है। फाइनल मैच में ही थोड़ा रोमांच पैदा होता है। रोहित मल्होत्रा की कहानी और पटकथा में गहराई नहीं है। संवाद भी कोई खास नहीं है।

जॉन अब्राहम एक खिलाड़ी लगते हैं, अभिनय में उन्हें ज्यादा कुछ करने को नहीं था। बिपाशा बसु को भी ज्यादा मौका नहीं मिला। बोमन ईरानी भले ही अच्छे अभिनेता हैं, लेकिन प्रशिक्षक की भूमिका में मिसफिट दिखाई देते हैं। अरशद वारसी का अभिनय अच्छा है। राज जुत्शी कहीं से भी खिलाड़ी नजर नहीं आते। दलीप ताहिल के काले बाल अगले ही दृश्य में सफेद हो जाते हैं।

webdunia
PR
फिल्म में दो गाने हैं। ‘धन धनाधन गोल’ तो बैकग्राउण्ड में चलता रहता है, लेकिन ‘बिल्लो रानी’ गाने को तुरंत हटाया जाना चाहिए। इंग्लैण्ड में मुजरा बड़ा अटपटा लगता है।

अट्टार सिंह सैनी का कैमरावर्क अच्छा है। फुटबॉल मैचों को उन्होंने बड़ी सफाई से फिल्माया है। कुल मिलाकर ‘धन धनाधन गोल’ में उस उत्साह और जोश की कमी है, जो एक खेल पर आधारित फिल्म में होना चाहिए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi