Shree Sundarkand

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

नो प्रॉब्लम : प्रॉब्लम ही प्रॉब्लम

Advertiesment
हमें फॉलो करें नो प्रॉब्लम

समय ताम्रकर

PR
बैनर : इरोज इंटरनेशनल, अनिल कपूर फिल्म्स कंपनी, स्पाइस इंफोटेनमेंट
निर्माता : रजत रवैल, अनिल कपूर, डॉ. बी.के. मोदी
निर्देशक : अनीस बज्मी
संगीत : प्रीतम
कलाकार : संजय दत्त, अनिल कपूर, सुष्मिता सेन, कंगना, अक्षय खन्ना, सुनील शेट्टी, परेश रावल, नीतू चन्द्रा, शक्ति कपूर, रंजीत
सेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए * 16 रील * 2 घंटे 22 मिनट
रेटिंग : 1.5/5

पता नहीं किन दर्शकों को ध्यान में रखकर अनीस बज्मी ने ‘नो प्रॉब्लम’ बनाई है। हर बात में लॉजिक ढूँढने वाले दर्शक तो इसे बिलकुल भी पसंद नहीं करेंगे। जो दर्शक दिमाग नहीं लगाना चाहते हैं,‍ फिल्म सिर्फ मनोरंजन के लिए देखते हैं, उन्हें भी इस कॉमेडी फिल्म में ठहाका लगाना तो छोड़िए मुस्कुराने के भी बहुत कम अवसर मिलेंगे। इस फिल्म में सिर्फ प्रॉब्लम ही प्रॉब्लम नजर आती हैं।

दो चोर और एक बैंक मैनेजर एक मंत्री की हत्या के अपराध में फँस जाते हैं, जो उन्होंने की ही नहीं है। उनके हाथ करोड़ों के हीरे लगते हैं, जिसके पीछे बहुत बड़ा डॉन पड़ा हुआ है। इन सभी के पीछे एक मूर्ख पुलिस ऑफिसर लगा हुआ है। चोर-पु‍लिस के इस खेल में ढेर सारे किरदार आते-जाते रहते हैं और इस लुकाछिपी के जरिये दर्शकों को हँसाने की कोशिश की गई है।

प्रॉब्लम नं.1 : इस सीधी-सादी कहानी कहने के लिए लेखक ने ढेर सारे हास्य दृश्यों का सहारा लिया है। गोरिल्ला बंदूक चलाते हैं, थैंक्यू कहने पर नो प्रॉब्लम कहते हैं। एक इंसपेक्टर के पेट से दो गोलियाँ निकाली नहीं जा सकी, जो उसे गुदगुदी करती रहती है। इस तरह की छूट लेने के बावजूद यदि लेखक दर्शकों को हँसा नहीं पाता है तो उसे सोच लेना चाहिए कि कितना घटिया काम उन्होंने किया है।

webdunia
PR
प्रॉब्लम नं. 2 : फिल्म के ज्यादातर कैरेक्टर्स फनी बताए गए हैं और हर सीन में हास्य डालने की कोशिश की गई है। सब्जी में यदि नमक या मिर्च या तेल ज्यादा हो जाए तो स्वाद बिगड़ जाता है। यहाँ हास्य के अतिरेक ने फिल्म का मजा खराब कर दिया है।

प्रॉब्लम नं. 3 : निर्देशक अनीस बज्मी ने अपना काम चलताऊ तरीके से किया है। कई शॉट्स जल्दबाजी में शूट किए गए हैं। फिल्म की गति को उन्होंने तेज रखा है ताकि खामियों पर परदा डाला जा सके, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए हैं। सिंह इज किंग की खुमारी अभी भी उन पर चढ़ी नजर आती है क्योंकि क्लाइमैक्स में उन्होंने सभी को सरदार बना डाला है। फिल्म का क्लाइमेक्स प्रियदर्शन की फिल्मों जैसा लगता है। अनीस ‍ने फिल्म को जरूरत से ज्यादा लंबा बनाया है, जिस वजह से यह उबाऊ हो गई है।

प्रॉब्लम नं. 4 : संजय दत्त, अनिल कपूर, अक्षय खन्ना, सुष्मिता सेन, सुनील शेट्टी जैसे फ्लॉप स्टार इस फिल्म में हैं। भले ही इनकी स्टार वैल्यू नहीं रही है, लेकिन ये कलाकार तो अच्छे हैं। खराब स्क्रिप्ट और निर्देशन का असर इनके अभिनय पर भी पड़ा है। अनिल कपूर ने तो स्क्रिप्ट से उठकर कोशिश की है, लेकिन अधिकांश कलाकार असहज नजर आए। शायद उन्हें भी समझ में नहीं आ रहा होगा कि वे क्या कर रहे हैं। कंगना का मैकअप ऐसा किया गया है कि वे खूबसूरत नजर आने के बजाय बदसूरत दिखाई देती हैं। परेश रावल भी टाइप्ड हो गए हैं। सुनील शेट्टी से एक्टिंग की उम्मीद करना बेकार है। 70 और 80 के दशक में खलनायकी के तेवर दिखाने वाले रंजीत ने सुनील शेट्टी के गुर्गे का रोल क्यों मंजूर किया, समझ से परे है।

webdunia
PR
प्रॉब्लम नं. 5 : संवाद के जरिये हास्य फिल्मों को धार मिलती है। हालाँकि निर्देशक ने हँसाने के लिए डॉयलॉग्स के बजाय दृश्यों का सहारा लिया है, फिर भी संवाद बेहद सपाट हैं।

प्रॉब्लम नं. 6 : संगीतकार प्रीतम से सौदा सस्ता हुआ होगा, इसलिए उन्होंने अपनी सारी रिजेक्ट हुई धुनों को थमा दिया है। सभी गानों में सिवाय शोर के कुछ सुनाई नहीं देता है।

इसके अलावा भी कई प्रॉब्लम्स इस फिल्म में हैं, जिनकी चर्चा करना बेकार है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi