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बैंड बाजा बारात : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : यशराज फिलम्स
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : मनीष शर्मा
संगीत : सलीम-सुलैमान
कलाकार : अनुष्का शर्मा, रणवीर सिंह, नीरज सूद, मनीष चौधरी
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 14 रील * 2 घंटे 20 मिनट
रेटिंग : 3/5

दिल्ली में होने वाले शादियों पर कई फिल्में बनी हैं और ‘बैंड बाजा बारात’ के रूप में एक और फिल्म हाजिर है। कहानी में कोई नयापन नहीं है, लेकिन फिल्म के हीरो-हीरोइन की कैमेस्ट्री, उम्दा अभिनय, चुटीले संवाद और कुछ हिट गानों के कारण लगातार मनोरंजन होता रहता है।

श्रुति (अनुष्का शर्मा) दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय परिवार से है। जिंदगी के प्रति उसका नजरिया स्पष्ट है। पाँच साल बाद वह शादी करना चाहती है और उसके पहले ‘वेडिंग प्लानिंग’ का बिज़नेस शुरू करती है।

बिट्टो (रणवीर सिंह) को श्रुति पसंद आ जाती है और उसको पटाने के लिए वह उसका बिज़नेस पार्टनर बन जाता है। श्रुति उसे इसी शर्त पर पार्टनर बनाती है कि ‘जिससे व्यापार करो, उससे कभी ना प्यार करो’। यानी बात दोस्ती से आगे नहीं बढ़ेगी।

दोनों मिलकर कई शादियाँ करवाते हैं और तरक्की करते हैं। एक रात श्रुति अपना बनाया हुआ नियम खुद तोड़ती है और दोनों सारी हदें लाँघ जाते हैं। इसके बाद बिट्टो के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ जाता है। दोनों में अनबन होती है और व्यावसायिक रूप से भी दोनों अलग हो जाते हैं। अलग-अलग व्यवसाय करते हैं, लेकिन उन्हें घाटा होता है। किस तरह से दोनों फिर से बिज़नेस पार्टनर के अलावा लाइफ पार्टनर बनते हैं, यह फिल्म का सार है।

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फिल्म सैटल होने में शुरू के पन्द्रह मिनट लेती है और उसके बाद इंटरवल तक भरपूर मनोरंजन करती है। किस तरह ‘शादी मुबारक’ कंपनी के जरिये दोनों अपना व्यवसाय जमाते हैं, ये बहुत दिलचस्प तरीके से दिखाया गया है।

फिल्म के मुख्य किरदार वेडिंग प्लानर हैं इसलिए पृष्ठभूमि में कई शादियाँ होती रहती हैं और कहानी आगे बढ़ती रहती है। शादियों का चटक रंग और धूम-धड़ाका फिल्म में नजर आता है।

दिक्कत शुरू होती है इंटरवल के बाद। बिट्टो और श्रुति के अलग होने के कारणों को लेखक ठीक से पेश नहीं कर पाए। श्रुति अपने ही नियम को तोड़ बिट्टो से प्यार करने लगती है, लेकिन बिट्टो क्यों उससे दूर भागता है? उसके दिमाग में क्या चल रहा है, इसे स्पष्ट नहीं किया गया है। जबकि श्रु‍ति का बिज़नेस पार्टनर बिट्टो इसीलिए बनता है क्योंकि वह उससे प्यार करता था। इससे दोनों के अलग होने का दर्द दर्शक महसूस नहीं करता। अंतिम 15 मिनटों में फिल्म फिर एक बार ट्रेक पर आ जाती है।

इन कमियों के बावजूद फिल्म मनोरंजन करती है और इसका सबसे बड़ा कारण है रणवीर और अनुष्का की कैमेस्ट्री। दोनों ने अपने किरदारों को बारीकी से पकड़कर बखूबी पेश किया है। शुरुआती दो फिल्मों में अनुष्का को कम अवसर मिले थे, लेकिन यहाँ उनका रोल हीरो जैसा है और उन्होंने इसका पूरा फायदा उठाया है।

रणवीर सिंह के आत्मविश्वास को देख लगता ही नहीं कि यह उनकी पहली फिल्म है। एक मँजे हुए अभिनेता की तरह छोटे शहर से दिल्ली आए लड़के का रोल उन्होंने बखूबी निभाया है। कैरेक्टर रोल के लिए अनजाने से चेहरे हैं, लेकिन सभी ने अपना काम खूब किया।

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निर्देशक के रूप में मनीष शर्मा प्रभावित करते हैं। मनोरंजक सिनेमा गढ़ने में वे कामयाब रहे हैं। दिल्ली शहर का फ्लेवर और किरदारों का उत्साह स्क्रीन पर नजर आता है। यदि वे इमोशनल सीन को भी अच्छे से पेश करते तो फिल्म का प्रभाव और बढ़ जाता।

सलीम-सुलैमान ने फिल्म के मूड को ध्यान में रखकर धुनें तैयार की हैं और इनमें से ‘तरकीबें, ‘एंवई एंवई’ और ‘दम दम’ सुनने लायक है। वैभव मर्चेण्ट की कोरियोग्राफी भी देखने लायक है।

कुल मिलाकर इस बैंड बाजे वाली बारात में शामिल हुआ जा सकता है।

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