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बैड लक गोविंद : दर्शकों का बैडलक

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हमें फॉलो करें बैड लक गोविंद

समय ताम्रकर

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निर्माता : हिमांशु एच. शाह, चिराग शाह, वरुण खन्ना, तरुण अरोरा
कहानी, संवाद, पटकथा और निर्देशन : वरुण खन्ना
संगीत : अबू मलिक
कलाकार : वीजे गौरव कपूर, हृषिता भट्ट, व्रजेश हीरजी, जाकिर हुसैन, परमीत सेठी, ललित मोहन तिवारी, गोविंद नामदेव, अर्चना पूरनसिंह
रेटिंग : 0.5/5

‘बैड लक गोविंद’ में दिखाया गया है कि नायक गोविंद किस्मत का मारा है। वह भैंस के पास खड़ा होता है तो वह दूध देना बंद कर देती है। लेकिन फिल्म इतनी खराब है कि गोविंद से ज्यादा खराब किस्मत सिनेमाघर में उपस्थित गिने-चुने दर्शकों को अपनी लगती है कि क्यों वे ये फिल्म देखने के लिए आ गए।

हीरो गोविंद की परछाई जिस पर पड़ती है उसके साथ कुछ न कुछ बुरा होता है। वह हारकर दिल्ली से मुंबई जा पहुँचता है। मुंबई में उसकी एक व्यक्ति से पहचान हो जाती है जो उसे अपने घर ले आता है। यहाँ पर उसके साथ कुछ अपराधी भी रहते हैं, जिनकी कुछ लोगों से दुश्मनी है। जब उन्हें गोविंद के बैड लक के बारे में पता चलता है तो वे फायदा उठाने का सोचते हैं। वे उसे जब-तब दुश्मनों के घर भेजते रहते हैं, ताकि उनका नुकसान हो। इसी बीच गोविंद को प्यार हो जाता है और उसका बैडलक गुडलक में बदल जाता है।

फिल्म की कहानी इतनी घटिया है कि उन लोगों की अक्ल पर तरस आता है कि जो इस कहानी पर फिल्म बनाने के लिए तैयार हो गए। कहानी में न लॉजिक है और न मनोरंजन। स्क्रीनप्ले भी बेहद उबाऊ है। दृश्य इतने लंबे हैं कि संवाद लेखक को संवाद लिखना मुश्किल हो गया। फिल्म के एडिटर ने दृश्यों को जोड़-तोड़ कर खाली जगहों को भरा।

फिल्म के अधिकांश दृश्यों में बहुत ज्यादा अँधेरा है। मल्टीप्लैक्स में ही बमुश्किल फिल्म दिखाई देती है। ठाठिया सिनेमाघरों में तो केवल आवाज सुनाई देगी। वैसे भी इस फिल्म को छोटे शहर के टॉकीज वाले शायद ही लगाएँगे क्योंकि बड़े शहरों में ही इस फिल्म की पहले शो से ही हालत पतली है।

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गोविंद के रूप में वीजे गौरव कपूर का अभिनय ठीक कहा जा सकता है। हृषिता भट्ट निराश करती हैं। गोविंद नामदेव, जाकिर हुसैन, परमीत सेठी और व्रजेश हीरजी ने अपने चरित्रों को असरदायक बनाने की पूरी कोशिश की है। एक-दो गाने भी हैं, जिनकी धुनें अबू मलिक ने बनाई हैं।

कुल मिलाकर ‘बैड लक गोविंद’ पैसे और समय की बर्बादी है।

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