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मूवी रिव्यू : रांझणा

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समय ताम्रकर

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दस-पन्द्रह वर्ष पूर्व पहले सोचा भी नहीं जा सकता था कि धनुष जैसा एक सामान्य लुक वाला आदमी भी फिल्म में हीरो बन सकता है। उस वक्त सामान्य इंसान के रोल में भी हैंडसम नौजवान को चुना जाता था। ‘रांझणा’ में धनुष ने कुंदन नामक किरदार निभाया है और इस कैरेक्टर की डिमांड धनुष जैसे लुक वाले एक्टर की ही थी।

‘रांझणा’ एक छोटे शहर की कहानी है। फिल्म में यह बनारस दिखाया गया है। अक्सर इन शहरों में ऐसे नौजवान मिलते हैं जो मोहल्ले की लड़कियों को देख आहें भरते रहते हैं और इंजीनियर/डॉक्टर ये लड़कियां ले उड़ते हैं। भावनाओं में बहकर ये ब्लेड से नस काट लेते हैं। ‘रांझना’ का हीरो दो बार और हीरोइन एक बार यह काम करते हैं।

दसवीं कक्षा का छात्र कुंदन (धनुष) बचपन से ही एक मुस्लिम लड़की पर मर मिटता है, जो अब नवीं कक्षा में है। एक दर्जन थप्पड़ खाने के बाद उसे पता चलता है कि उस लड़की का नाम जोया है। वह जोया (सोनम कपूर) को इतना चाहता है कि उसके थप्पड़ खाकर की भी गर्व महसूस करता है।

फिल्म के पहले गाने से ही निर्देशक आनंद एल. राय ने माहौल बना दिया और बनारस की तंग गलियों में कुंदन के एकतरफा प्यार को हल्की-फुल्की कॉमेडी के साथ फिल्माया है। कुंदन की तरफ जोया आकर्षित होती है, लेकिन जब उसे पता चलता है कि लड़का हिंदू है तो वह अपने कदम वापस खींच लेती है।

कुंदन हार नहीं मानता और अपने प्रयास जारी रखता है। प्यार नहीं करने के बावजूद जोया उससे गले मिलती है, गाल पर चुंबन देती है। जब मुसीबत में फंसती है तो कुंदन को ही याद करती है। बेचारा कुंदन इसे प्यार समझ बैठता है, जबकि जोया उसे कई बार कहती है कि वह उसे नहीं चाहती।

जोया के घर पर जब यह बात पता चलती है तो उसे पढ़ने के लिए शहर से बाहर भेज दिया जाता है। जोया अब दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की छात्रा है और एक युवा छात्र अकरम (अभय देओल) को दिल दे बैठती है।

बनारस लौटकर जब जोया यह बात कुंदन को बताती है तो वह स्कूटर सहित नदी में कूद जाता है। वह ठहरा सच्चा प्रेमी। जोया की खुशी को ही अपनी खुशी समझता है और जोया-अकरम की शादी की सारी अड़चनें वह दूर करता है। इसके बाद फिर फिल्म में एक ट्विस्ट आता है और इंटरवल हो जाता है। यहां तक कहानी में नए-नए मोड़ आते हैं और कई मजेदार दृश्य इस प्रेम कहानी में देखने को मिलते हैं।

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इंटरवल के बाद फिल्म अचानक दिशा बदल लेती है। प्रेम कहानी पिछली सीट पर चली जाती है और ड्राइविंग सीट पर महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, एंटी करप्शन जैसे मुद्दे हावी हो जाते हैं। अचानक एक अच्छे ट्रेक पर चल रही कहानी बिखर जाती है।

प्रेम कहानी में राजनीतिक मुद्दे के घुसते ही फिल्म अपनी चमक खो देती है। यह ट्रेक जोया के किरदार की महत्वाकांक्षा और स्वार्थ को रेखांकित करता है, लेकिन ये बहुत ही सतही है। कई बार समझना मुश्किल हो जाता है कि निर्देशक/लेखक क्या कहना चाहते हैं जबकि उन्होंने इसके लिए पूरा-पूरा फिल्म का दूसरा हाफ लिया है। स्क्रिप्ट कमजोर पड़ने के बावजूद धनुष अपने अभिनय के बल पर फिल्म को थामे रखते हैं।

इस बात में दो राय नहीं है कि आनंद एल. राय एक काबिल निर्देशक हैं। उन्होंने बनारस शहर को एक कैरेक्टर की तरह पेश किया है। कुंदन के एकतरफा प्यार को त्रीवता के साथ दिखाया है। कई छोटे-छोटे सीन, जैसे चोर वाला, सिलेंडर वाला, बढ़िया तरीके से फिल्माए हैं, लेकिन फिल्म के सेकंड हाफ को वे ठीक से संभाल नहीं पाए।

धनुष अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं। उनकी ऊर्जा परदे पर दिखती है। उनका हिंदी उच्चारण दोषपूर्ण है, लेकिन अखरता नहीं है। सोनम कपूर खूबसूरत और मासूम लगी हैं। रोमांटिक दृश्यों को उन्होंने अच्छे से निभाया है, लेकिन कई ड्रामेटिक सींस में उनका अभिनय कमजोर नजर आया।

अभय देओल ने एक तेज-तर्रार युवा नेता की संक्षिप्त भूमिका दमदार तरीके से निभाई। फिल्म में हीरो का एक दोस्त भी है जिसे मोहम्मद जीशान अय्यूब ने निभाया है। मोहम्मद को बेहतरीन डायलॉग मिले हैं और उन्होंने यूपी लहजे में इन्हें बखूबी बोला है। फिल्म के दूसरे हाफ में उनकी कमी खलती है। स्वरा भास्कर ने बिंदिया नामक लड़की का रोल निभाया है जो कुंदन पर लट्टू है और उनका अभिनय भी बेहतरीन है।

‘रांझणा’ के प्लस पाइंट्स हैं, पहला हाफ, एआर रहमान का संगीत, धनुष का कैरेक्टर और फिल्म के संवाद। माइनस पाइंट है फिल्म का दूसरा हाफ।

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बैनर : इरोज इंटरनेशनल
निर्माता : कृषिका लुल्ला
निर्देशक : आनंद एल. राय
संगीत : एआर रहमान
कलाकार : धनुष, सोनम कपूर, अभय देओल, मोहम्मद जीशान अय्यूब, स्वरा भास्कर
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 20 मिनट
रेटिंग : 2.5/5

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