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यू, मी और हम : पहली नज़र का प्यार

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समय ताम्रकर

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निर्माता : देवगन फिल्म्स
निर्देशक : अजय देवगन
संगीत : विशाल भारद्वाज
कलाकार : अजय देवगन, काजोल, सुम‍ित राघवन, दिव्या दत्ता, करण खन्ना, ईशा श्रावणी
रेटिंग : 2.5/5

अजय देवगन की बचपन से निर्देशक बनने की ख्वाहिश अब जाकर ‘यू, मी और हम’ के जरिये पूरी हुई है। एक निर्माता के रूप में अजय ने असफल और खराब फिल्में ही बनाई हैं।

वर्तमान दौर में रोमांटिक कहानियाँ परदे पर से गायब हो चुकी हैं, लेकिन निर्देशक के रूप में अजय ने प्रेम कथा को चुना है। कहानी कहने की शैली अजय ने ‘नोट बुक’ से उठाई है और फ्लैश बैक का उम्दा प्रयोग किया है।

क्रूज़ पर अजय और पिया की प्रेम कहानी शुरू होती है। अजय अपने दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने आया है और पिया जहाज पर काम करती है। अजय पहली बार पिया को देखता है और उसका दीवाना हो जाता है।

वह उसका दिल जीतने की सारी कोशिशें करता है। झूठ का सहारा भी लेता है, लेकिन पिया प्रभावित नहीं होती। जब यात्रा समाप्त होती है तो वह पिया के पास अपना पता छोड़कर चला जाता है। कुछ महीनों बाद पिया उसके पास आती है और दोनों शादी कर लेते हैं।

कहानी में मोड़ उस समय आता है जब पिया को अल्ज़ीमर नामक भूलने की गंभीर बीमारी हो जाती है। उसकी याददाश्त आती-जाती रहती है। कभी वह अपने बच्चे और पति तक को भूल जाती है, तो कभी एकदम सामान्य रहती है।

उसकी हालत बिगड़ते देख अपने और बच्चे की बेहतरी के लिए अजय उसे केयर सेंटर में भर्ती कर देता है। कहीं न कहीं उसके मन में अपने लिए स्वार्थ जाग जाता है, लेकिन पिया के बिना अजय जी नहीं पाता। वह उसे फिर से घर ले आता है, क्योंकि वह उससे सच्चा प्यार करता है।

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पहली नजर का प्यार, प्यार की पवित्रता, भावनाएँ, ताकत और गहराई को इस कहानी के जरिये दिखाया गया है। अजय और पिया की इस कथा के समांतर अजय के दो दोस्तों की उपकथाएँ भी चलती हैं, जिसमें एक विवाहित जोड़ा है और तलाक की दहलीज पर खड़ा है। दूसरे जोड़े के बीच प्यार चल रहा है। इन उपकथाओं के जरिये शादी के पहले के प्यार की तुलना शादी के बाद के प्यार से की गई है।

फिल्म की कहानी उम्दा है, लेकिन निर्देशक अजय ने इस कहानी को बेहद लंबा खींचा है। शुरुआती घंटे में सरपट दौड़ती हुई कहानी में पिया की बीमारी के बाद लंबा ठहराव आ जाता है और फिल्म दर्शक के धैर्य की परीक्षा लेने लगती है। बीच-बीच में थोड़ा हँसाने की कोशिश की गई है, लेकिन इसके लिए लेखकों ने एसएमएस में प्रचलित हो चुके चुटकलों का सहारा लिया है।

फिल्म में ज्यादा पात्र नही हैं, सिर्फ छह पात्रों के इर्दगिर्द फिल्म घूमती है। इन्हें लगातार देखने से भी फिल्म में एकरसता आ जाती है। फिल्म में बड़े सितारे की कमी भी खलती है, क्योंकि अजय और काजोल को छोड़ कोई बड़ा सितारा इस फिल्म में नहीं है।

निर्देशक के रूप में अजय में संभावनाएँ नजर आती हैं। एक निर्देशक अपनी पहली फिल्म में हर तरह से दर्शकों को प्रभावित करने की कोशिश करता है, साथ ही उसे अपने काम से भी मोह हो जाता है। इस वजह से फिल्म जरूरत से ज्यादा लंबी हो जाती है, क्योंकि वह दृश्य काटने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। अजय भी थोड़ा साहस दिखाकर फिल्म छोटी करते तो फिल्म का प्रभाव बढ़ जाता। अजय ने दृश्यों को भी बेहद लंबा रखा है।

पिया की बीमारी के कुछ लक्षण उन्होंने शुरुआती घंटे में बताए थे, जब पिया वोडका की जगह टेकिला ले आती है और सालसा सीखने के लिए छह बजे की जगह सात बजे आती है। इन दृश्यों की अहमियत उस समय पता चलती है जब पिया की बीमारी का राज खुलता है।

अजय देवगन का अभिनय अच्छा है, लेकिन लुक बेहद खराब है। वे बेहद कमजोर और उम्रदराज नजर आए। अजय ने फिल्म में जो कपड़े पहने हैं वे किसी भी लिहाज से ठीक नहीं हैं।

हमेशा की तरह काजोल का अभिनय श्रेष्ठ है। अभी भी वे एकदम तरोताजा लगती हैं। अजय के दोस्त के रूप में करण खन्ना, सुमित राघवन, ईशा श्रावणी और दिव्या दत्ता ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है।

असीम बजाज ने पूरी फिल्म में क्लोजअप का हद से ज्यादा प्रयोग किया है। कम से कम अजय देवगन के क्लोजअप कम लिए जाने थे, क्योंकि वे उन दृश्यों में बेहद बुरे दिखाई देते हैं। अश्वनी धीर के संवाद अर्थपूर्ण हैं।

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विशाल भारद्वाज का संगीत इस फिल्म का निराशाजनक पहलू है। एक भी गाना राहत नहीं पहुँचाता। काजोल पर फिल्माया गया ‘सैया’ तुरंत हटाया जाना चाहिए, क्योंकि यह गीत किसी भी तरह से इस फिल्म में फिट नहीं बैठता। मोंटी शर्मा का बैकग्राउंड संगीत उम्दा है।

कुल मिलाकर ‘यू, मी और हम’ उन दर्शकों को पसंद आएगी, जो पूरे धैर्य के साथ भावनात्मक फिल्में देखना पसंद करते हैं।

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