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राउडी राठौर : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें राउडी राठौर : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

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बैनर : एसएलबी फिल्म्स, हरि ॐ एंटरटेनमेंट कंपनी, यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : संजय लीला भंसाली, शबीना खान, रॉनी स्क्रूवाला
निर्देशक : प्रभुदेवा
संगीत : साजिद-वाजिद
कलाकार : अक्षय कुमार, सोनाक्षी सिन्हा
रेटिंग : 3/5

सांवरिया और गुजारिश जैसी फिल्मों को दर्शकों द्वारा नकारने के बाद संजय लीला भंसाली ने ऐसी फिल्म बनाने का नि‍श्चय किया जो दर्शकों की पसंद पर खरी उतरे। मसाला फिल्म बनाना उनके मिजाज में नहीं है इसलिए निर्देशक के रूप में प्रभुदेवा को चुना।

प्रभुदेवा ‘वांटेड’ के रूप में दक्षिण भारतीय फिल्म का सफल हिंदी संस्करण बना चुके हैं। कहानी ऐसी चुनी गई जिस पर तेलुगु, तमिल और कन्नड़ में फिल्में बनीं और सुपरहिट भी रहीं। इस तरह ‘राउडी राठौर’ का जन्म हुआ।

वैसे भी इस समय हिंदी भाषी दर्शकों को साउथ की फिल्मों के रीमेक बड़े पसंद आ रहे हैं। दक्षिण की फिल्मों का ड्रामेटिक अंदाज और लाउडनेस खासकर आम दर्शकों को अच्छे लगने लगे हैं। इसलिए राउडी राठौर में भले ही मुंबई और बिहार के गांव की कहानी बताई गई है, लेकिन ऐसा लगता है कि हम दक्षिण भारत का ही कोई शहर या गांव देख रहे हैं।

कलाकारों की एक्टिंग, ड्रेस से लेकर तो गानों, बैकग्राउंड म्यूजिक, एक्शन और डांस तक लाउड हैं। परपल और पिंक कलर की पेंट में अक्षय कुमार को आपने शायद ही पहले कभी देखा हो। लेकिन ये सब बातें इसलिए नहीं अखरती क्योंकि फिल्म में मनोरंजन के सारे मसाले मौजूद हैं।

कुछ जगह जरूर फिल्म खींची हुई लगती है, झोल खाती है, लेकिन ऐसे पल कम आते हैं। दरअसल फिल्म के निर्देशक प्रभुदेवा ने फिल्म की गति इतनी तेज रखी है और हर फ्रेम में एंटरटेनमेंट को इतना ज्यादा महत्व दिया है कि दर्शकों को सोचने के लिए ज्यादा समय नहीं मिलता है।

राउडी राठौर की कहानी में कोई नयापन नहीं है, लेकिन वे सारे मसाले हैं जो दर्शकों को पसंद हैं। शिव (अक्षय कुमार) एक चोर है। रेलवे की घड़ी, एसटीडी बूथ और यहां तक कि एटीएम भी वह चुराकर घर ले आया है।

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प्रिया (सोनाक्षी सिन्हा) का दिल वह जीत लेता है, लेकिन सच-सच बता देता है कि चोरी मेरा काम। छ: वर्ष की एक लड़की उसे पापा बोलने लगती है तो वह आश्चर्य में पड़ जाता है। बाद में उसे मालूम पड़ता है कि इंसपेक्टर विक्रम राठौर (अक्षय कुमार) उसका हमशक्ल है जो देवगढ़ गांव में बापजी नामक गुंडे के आतंक को खत्म करने में जुटा है।

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इस साधारण कहानी को मनोरंजक तरीके से परदे पर उतारा गया है। फिल्म का पहला हिस्सा हल्का-फुल्का है। शिव और प्रिया की प्रेम कहानी को महत्व दिया गया है। गाने, रोमांस और कॉमेडी के जरिये दिल बहलाया गया है। इंटरवल के ठीक पहले एक जबरदस्त फाइट सीन से इंसपेक्टर राठौर की एंट्री होती है। इंटरवल के बाद फिल्म में एक्शन ड्राइविंग सीट पर आ जाता है। लाठी, चाकू, छुरे, हथौड़े, सरिये के जरिये खूब मारकाट मचाई गई है।

सेकंड हाफ में फिल्म को लंबा खींचा गया है और लॉजिक को साइड में रख दिया गया है। पुलिस फोर्स में शिवा कैसे भर्ती हो जाता है, उसमें विक्रम राठौर जैसी ताकत कहां से आ जाती है, जैसे कुछ प्रश्न उठते हैं, लेकिन एंटरटेनमेंट के नाम पर इन्हें इग्नोर किया जा सकता है।

प्रभुदेवा ने एक आम आदमी को ध्यान में रखकर फिल्म का निर्देशन किया है। कॉमेडी, एक्शन और इमोशन का संतुलन बनाए रखा है ताकि दर्शक बोर नहीं हो और फिल्म में कसावट बनी रहे। कलाकारों से उन्होंने ओवरएक्टिंग करवाई है और ज्यादातर ने अपने संवाद चीख-चीखकर बोले हैं। कुछ दृश्यों में उन्होंने फिल्म के नाम पर जरूरत से ज्यादा छूट भी ली है।

शिव और विक्रम राठौर दोनों रोल में अक्षय कुमार ने अच्छा काम किया है। शिव को उन्होंने कॉमिक टच दिया है तो विक्रम राठौर के रूप में उन्होंने एक निडर और कर्तव्य निभाने वाले पुलिस ऑफिसर को रौबदार तरीके से पेश किया है, जिसे अपनी मूंछ पर गर्व है और वह मरना भी चाहता है तो मूंछ पर ताव देकर। अक्षय के तीन-चार एक्शन सीन जबरदस्त हैं।

पटना की फुलझड़ी सोनाक्षी सिन्हा के हिस्से में गाने और रोमांटिक सीन आए जो उन्होंने बखूबी निभाए। नसीर ने ओवरएक्टिंग की जो उनके कैरेक्टर की डिमांड थी। ऐसी फिल्मों में संवाद जोरदार होने चाहिए, लेकिन शिराज अहमद का काम औसत दर्जे का है। संदीप चौटा का बैकग्राउंड म्युजिक फिल्म की थीम के अनुरूप है।

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साजिद-वाजिद ने ऐसा संगीत तो नहीं दिया है, जो लंबे समय तक याद किया जाए, लेकिन जब तक फिल्म चलेगी उनके द्वारा बनाए गानों की धूम रहेगी। चिंटा टा टा और आ रे प्रीतम प्यारे तो पहले से ही हिट हो गए हैं।

राउडी राठौर एक आदमी को टारगेट रख कर बनाई गई फिल्म है, जिसमें सारे मसाले मौजूद हैं। यह फिल्म उन लोगों के लिए है जो एक ही टिकट में एक्शन, इमोशन, रोमांस और हिट गाने देखना चाहते हैं।

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