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राज 3 : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : विशेष फिल्म्स, फॉक्स स्टार स्टुडियो
निर्माता : मुकेश भट्ट
निर्देशक : विक्रम भट्ट
संगीत : जीत गांगुली, रशीद खान
कलाकार : इमरान हाशमी, बिपाशा बसु, ईशा गुप्ता, मनीष चौधरी, मोहन कपूर
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 15 मिनट 51 सेकंड
रेटिंग : 1.5/5

अपने करियर के आरंभ में विक्रम भट्ट ने रोमांटिक (आप मुझे अच्छे लगने लगे, मदहोश), एक्शन (गुलाम, फरेब) और कॉमेडी (आवारा पागल दीवाना) मूवीज़ बनाईं, लेकिन बाद में उन्हें दर्शकों को डराने में मजा आने लगा। अब उन्हें हॉरर फिल्मों के सिवाय कुछ नहीं सूझता।

निर्माता बनकर विक्रम ने नए कलाकारों को लेकर कई हॉरर फिल्में बनाईं। कम बजट की फिल्मों की वजह से विक्रम को फायदा ही पहुंचा, लेकिन वे एक फॉर्मूले में वे कैद हो कर रह गए। चूंकि ‘राज 3’ के निर्माता मुकेश भट्ट हैं, इसलिए विक्रम ने इमरान हाशमी और बिपाशा बसु जैसे स्टार्स के साथ काम किया, लेकिन सितारों का साथ मिलने के बावजूद विक्रम ने कुछ नया करने की कोशिश नहीं की।

जैसा कि उनकी ज्यादातर फिल्मों में होता है, हीरोइन पर बुरी आत्मा की नजर पड़ जाती है और उसे हीरो मुक्ति दिलाता है, यही राज 3 में भी देखने को मिलता है।

राज 3 में भी वही कमजोरियां हैं जो आमतौर पर विक्रम भट्ट की हॉरर फिल्मों में होती हैं। इनके किरदार हमेशा बड़े घर में रहते हैं, लेकिन अकेले होते हैं। रात को अजीब-सी आवाज आती है तो बजाय घर से भागने के वे उस दिशा में आगे बढ़ते हैं जहां से आवाज आती है। पूरे घर के दरवाजे-खिड़कियां रात में खुले होते हैं। दरवाजे खोलते-बंद करते समय हमेशा आवाज होती है।

बात करते हैं कहानी की। इस बार काले जादू से दर्शकों को डराने की कोशिश की गई है। शनाया शेखर (बिपाशा बसु) नामक एक्ट्रेस नई एक्ट्रेस संजना (ईशा गुप्ता) से पिछड़ती जा रही है। ईशा को पछाड़ने के लिए शनाया एक शैतानी आत्मा की मदद से ब्लैक मैजिक का सहारा लेती है। इस काम में शनाया का मददगार होता है उसका निर्देशक बॉयफ्रेंड आदित्य (इमरान हाशमी)।

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संजना को आदित्य अपनी फिल्म के लिए साइन कर लेता है और जादू किया गया पानी उसे पिलाता रहता है। संजना बीमार रहने लगती है और उसके साथ डरावनी घटनाएं घटने लगती हैं। उसकी हालत देख आदित्य का दिल पिघलता है। वह शनाया को कह देता है कि आगे से वह ऐसा नहीं करेगा, लेकिन शनाया उसे ब्लैकमेल के जरिये यह काम करने के लिए मजबूर करती है।

इसके बाद किस तरह से आत्माओं की दुनिया में जाकर संजना को आदित्य काले जादू से बचाता है यह फिल्म का सार है। शनाया और संजना को सौतेली बहन भी बताया गया है और यह भी संजना से शनाया की ईर्ष्या करने की एक वजह है।

कहानी में कई खामियां हैं, जैसे, जब शनाया शैतानी आत्मा को कहती है कि संजना को मार डालो तो वह शैतानी आत्मा कहती है कि मौत भगवान के हाथ में है। लेकिन यही शैतानी आत्मा संजना की नौकरानी, तांत्रिक और डॉक्टर को बड़ी आसानी से मार डालती है। वह आदित्य को क्यों नहीं मारती जब संजना को बचाने के लिए आदित्य आगे आता है।

शनाया द्वारा आदित्य को ब्लैकमेल का जो कारण बताया गया है वो बेहद कमजोर है और सहूलियत के मुताबिक लिखा गया है। पुलिस सिर्फ एक सीन में नजर आती है और संजना की नौकरानी की मौत को आत्महत्या मान लेती है। एक तांत्रिक कब्रिस्तान में मारा जाता है, लेकिन उसकी कोई जांच-पड़ताल नहीं होती है।

फिल्म का पहला हाफ ठीक-ठाक है और कुछ जगह डर के मारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। थ्री-डी में वर्जन में यह डर कई गुना बढ़ जाता है। दूसरे हाफ में फिल्म कमजोर पड़ जाती है क्योंकि जिस तरह से कहानी का अंत किया गया है वो संतुष्ट नहीं करता। क्लाइमेक्स में तो तब हद हो जाती है जब एक डॉक्टर संजना का इलाज करने के बजाय मुर्दाघर में उसे तांत्रिक क्रियाओं के लिए ले जाता है।

निर्देशक विक्रम भट्ट ने स्क्रिप्ट की इन खामियों पर ध्यान देने की बजाय दर्शकों को डराने वाले सीन क्रिएट करने पर ज्यादा फोकस किया है क्योंकि उन्हें पता है कि दर्शक जब डरने के लिए सिनेमाघर में आया है तो वह इन बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देता है। लेकिन अब उन्हें डराने के कुछ नए फॉर्मूले खोजने चाहिए क्योंकि अब वे अपने को दोहराने लगे हैं।

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एक्टिंग की बात की जाए तो बिपाशा बसु सब पर भारी हैं। वे न केवल ग्लैमरस लगी हैं बल्कि उन्होंने नफरत और ईर्ष्या की आग में जलती एक्ट्रेस को उम्दा तरीके से स्क्रीन पर पेश किया है। वफादारी और प्यार के बीच उलझे आदित्य के रूप में इमरान हाशमी निराश करते हैं। पूरी फिल्म में उनके चेहरे पर एक जैसे एक्सप्रेशन हैं और वे उनींदे लगते हैं। ईशा गुप्ता का चेहरा भावहीन है।

राज 3 में निश्चित रूप से कुछ डरावने दृश्य हैं, लेकिन इन दृश्यों को देखने के लिए एक बोर कहानी झेलने की भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है।

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