रामा-रामा पति-पत्नी का ड्रामा
निर्माता : रंजन प्रकाश - सुरेन्द्र भाटिया निर्देशक : एस. चंद्रकांत संगीत : सिद्धार्थ सुहास कलाकार : नेहा धूपिया, राजपाल यादव, अमृता अरोरा, आशीष चौधरी, अनुपम खेर, रति अग्निहोत्रीरेटिंग : 1.5/5पति-पत्नी का रिश्ता खट्टा-मीठा रहता है और उनमें अकसर नोकझोंक होती रहती है। इस रिश्ते को आधार बनाकर हास्य फिल्म ‘रामा रामा क्या है ड्रामा’ बनाई गई है। यह विषय ऐसा है, जिसमें हास्य की भरपूर गुंजाइश है, लेकिन इस फिल्म में इसका लाभ नहीं लिया गया है।फिल्म में कहानी नाममात्र की है। कहानी के अभाव में फिल्म का हास्य प्रभावशाली नहीं है। छोटे-छोटे चुटकुले गढ़े गए हैं जिनके सहारे फिल्म आगे बढ़ती है। जरूरी नहीं है कि हर दृश्य पर हँसी आए, लेकिन कुछ दृश्यों पर हँसा जा सकता है। निर्देशक ने फिल्म को बेहतर बनाने की पूरी कोशिश की है, लेकिन सशक्त पटकथा के अभाव में यह प्रयास बेकार गया है। कई दृश्यों में संवाद इतने कम हैं कि एक छोटे संवाद को खींचकर कलाकार को दृश्य लंबा करना पड़ता है। कलाकार भी इतने दमदार नहीं हैं कि वे अपने अभिनय के बल पर इस कमजोरी को छिपा लें। राजपाल यादव चरित्र कलाकार के रूप में तो ठीक लगते हैं, लेकिन नायक बनकर फिल्म का भार ढोने की क्षमता उनमें नहीं है।
संतोष (राजपाल यादव) अपने पड़ोसी खुराना (अनुपम खेर) के कहने पर शांति (नेहा धूपिया) से शादी कर लेता है। शादी के बाद शांति को वह वैसा नहीं पाता जैसे कि उसने सपने देखे थे और इस वजह से उनमें झगड़ा शुरू हो जाता है। संतोष का बॉस प्रेम (आशीष चौधरी) भी अपनी पत्नी खुशी (अमृता अरोरा) से खुश नहीं है। इसके बावजूद वह अपनी पत्नी को बेहद चाहता है और दुनिया के सामने ऐसे पेश आता है जैसे वह बेहद खुश है। उधर संतोष को दूसरों की बीवी ज्यादा अच्छी लगती है। कुछ गलतफहमियाँ दूर होती हैं और सुखद अंत के साथ फिल्म समाप्त होती है। संतोष और शांति की लड़ाई सतही लगती है क्योंकि बिना ठोस कारण के वे लड़ते रहते हैं। ऐसा लगता है कि दर्शकों को हँसाने के लिए उनके बीच लड़ाई करवाई जा रही है। संतोष को शांति के मुकाबले ज्यादा संवाद और फुटेज ज्यादा दिए गए हैं, जिससे उनके बीच का संतुलन बिगड़ गया है। राजपाल यादव ने अपने अभिनय में कुछ नया करने की कोशिश नहीं की है। जैसा अभिनय वे हर फिल्म में करते हैं, उसी अंदाज में वे यहाँ भी हैं। आँखें बंद कर चेहरे को हथेली से ढँकने वाली अदा इस फिल्म में उन्होंने जरूरत से ज्यादा दोहराई है। वे संतोष की भूमिका के लायक भी नहीं हैं क्योंकि जो भूमिका उन्होंने निभाई है उसके लिए कम उम्र का अभिनेता चाहिए था।
नेहा धूपिया इस फिल्म की सबसे बड़ी स्टार हैं, लेकिन उन्हें काफी कम फुटेज दिया गया है। उनके ग्लैमर का भी कोई उपयोग नहीं किया गया। अभिनय अभी भी नेहा की कमजोरी है। यही हाल अमृता अरोरा और आशीष चौधरी का भी है। आश्चर्य तो तब होता है जब अनुपम खेर जैसा अभिनेता भी घटिया अभिनय करता है।
शीर्षक गीत के अलावा नेहा पर फिल्माया गया एक गीत अच्छा है। नेहा पर फिल्माए गए गीत की कोरियोग्राफी में उम्दा है। संपादन बेहद ढीला है, लेकिन रिक्शे के मीटर डाउन करने वाले दृश्य में संपादक ने कल्पनाशीलता दिखाई है।