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रिवॉल्वर रानी : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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चम्बल के बीहड़ या उत्तर प्रदेश में रहने वाले बाहुबलियों की कहानी को सिल्वर स्क्रीन पर कई बार पेश किया गया है। कुछ महीने पहले ही तिग्मांशु धुलिया ने सैफ अली खान को लेकर 'बुलेट राजा' नामक फिल्म बनाई थी, जो कि टिकट खिड़की पर असफल रही थी। 'रिवॉल्वर रानी' 'बुलेट राजा' का फीमेल वर्जन है। जो गलतियां 'बुलेट राजा' में थी, वो 'रिवॉल्वर रानी' में भी बरकरार हैं। अलका सिंह (कंगना रनोट) उर्फ 'रिवॉल्वर रानी' ठांय-ठांय गोलियां चलाती हैं और ग्वालियर में आतंक मचाती हैं। वह राजनीति से जुड़ी हुई हैं और उनके विरोधी उनके दबदबे को कम करने में लगे हुए हैं। धोखा, षड्यंत्र, हत्या का चिर-परिचित खेल 'रिवॉल्वर रानी' में भी चलता है, लेकिन यह ड्रामा इतना दिलचस्प नहीं है कि दर्शकों को बांध कर रख सके।

अलका बंदूक की भाषा जानती है। तोमर ने उसे चुनाव में हराया है क्योंकि चुनाव जीतने पर अलका के पर निकल आए थे। अपने चालाक मामा (पीयूष मिश्रा) की मदद से तोमर को स्टिंग ऑपरेशन में फंसाकर उसका इस्तीफा करवा दिया जाता है। फिर चुनाव घोषित होते हैं, लेकिन अलका का गर्भवती होना इसमें रूकावट बन जाता है।

रोहन (वीर दास) अलका का खिलौना है, जिससे अलका अपना मन बहलाती है। उसी के बच्चे की वह मां बनने वाली है। अलका का मामा ड्रामा रचते हुए मीडिया को बताता है कि रोहन तो अलका का भाई है जबकि विरोधी लोग यह साबित करने में जुट जाते हैं कि अलका और रोहन के बीच भैया वाला नहीं बल्कि सैंया वाला रिश्ता है। यह खेल क्लाइमेक्स तक जाते-जाते किस तरह से खूनी रूप ले लेता है यह फिल्म का सार है।

फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है साई कबीर ने। फिल्म दो ट्रेक पर चलती है। एक अलका का राजनीतिक संघर्ष और दूसरा उसकी प्रेम कहानी। अलका की राजनीति और दबंगई वाला ट्रेक‍ फिल्म की शुरुआत में अच्छा लगता है। किस तरह बाहुबलियों का राज चलता है, ये अच्छी तरह से पेश किया गया है। गोलियां तो वहां-वहां बात-बात पर चलाई जाती हैं। ताला खोलना हो तो चाबी ढूंढने की जहमत नहीं उठाई जाती बल्कि गो‍ली से ताला ही उड़ा दिया जाता है। अफसर और पुलिस तो इन बाहुबलियों की जेब में होती है। इन लोगों का कितना दबदबा होता है वो फिल्म के एक सीन ‍से पता चलता है जब एक गुंडा पुलिस वाले के पीछे बंदूक तानते हुए कहता है कि पुलिस को चारों ओर से घेर लिया गया है। पुलिस ऑफिसर इनके पैर छूते हैं।

इंटरवल तक चुटीले संवाद, बी-ग्रेड शायरी और क्षेत्रीय माहौल से दर्शकों को बांध कर रखा है। साथ ही अलका और रोहन की प्रेम कहानी को भी मूल कहानी के साथ गूंथा गया है। निर्देशक ने यहां तक व्यंग्यात्म शैली अपनाते हुए कहानी को बी-ग्रेड फिल्मों की तरह फिल्माया है, लेकिन इंटरवल के बाद जब माहौल सेट होने के बाद कहानी को आगे बढ़ाया जाता है तो मामला गड़बड़ हो जाता है। प्रस्तुतिकरण में इतनी ज्यादा छूट ले ली गई है कि परदे पर चल रहे घटनाक्रम अविश्वसनीय लगते हैं। स्क्रिप्ट की खामियां उजागर होने लगती हैं। रोहन और अलका के संबंधों को लेकर मीडिया तमाम तरह के सवाल पूछता है, लेकिन कोई यह बात नहीं पूछता है यदि अलका और रोहन के बीच कोई रिश्ता नहीं है तो उसके होने वाले बच्चे का पिता कौन है? साथ ही अलका और रोहन के रिश्ते को स्वीकारने में क्या नुकसान था, ये भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। जबकि लगभग आधी फिल्म इसी बात पर खर्च की गई है।

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रोहन की शादी आनन-फानन में एक मुस्लिम लड़की से करवाई जाती है। उसका धर्म परिवर्तन कर दिया जाता है। यह सब बातें व्यवस्था का मखौल उड़ाने के लिए रखी गई है कि किस तरह जनता को मूर्ख बनाने के लिए नेता हथकंडे अपनाते हैं, लेकिन इन घटनाक्रमों को ठीक से न लिखा गया है और न ही पेश किया गया है। एक समाचार वाचिका सूत्रधार बन घटनाओं के तार आपस में जोड़ती हैं, लेकिन वह इतनी बार दिखाई देती है कि कि कोफ्त होने लगती है।

प्रेम कहानी वाला ट्रेक भी दमदार नहीं है और इसकी वजह ये है कि रोहन का किरदार ठीक से नहीं लिखा गया है। वह क्या चाहता है, ये पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। इसे वीर दास ने निभाया है और उनकी कमजोर एक्टिंग इस ट्रेक को ले डूबी है। उन्होंने कई दृश्यों में बेहद लचर एक्टिंग की है।

इस कहानी पर एक अच्छी फिल्म बनने की संभावनाएं थी, जिनका पूरी तरह से साई कबीर दोहन नहीं कर पाए। उन्होंने शॉट फिल्माते समय-समय छोटे डिटेल्स पर ध्यान दिया, लेकिन स्क्रिप्ट की बड़ी खामियों को नजरअंदाज कर बैठे। फिल्म के दूसरे हिस्से में फिल्म को खत्म करने की हड़बड़ी दिखाई देती है।

'क्वीन' ने एक अभिनेत्री के रूप में कंगना का कद बहुत ऊंचा कर दिया है और 'रिवॉल्वर रानी' में भी उनका अभिनय अच्छा है। उनके दोषपूर्ण उच्चारण का निर्देशक ने अच्छा उपयोग किया है। अलका उर्फ रानी रिवॉल्वर के चरित्र की बारीकियों को उन्होंने उम्दा तरीके से पकड़ा है, लेकिन उनसे ये पकड़ कई दृश्यों में ढीली भी हुई है। पीयूष मिश्रा और जाकिर हुसैन मंझे हुए कलाकार हैं और उन्होंने अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है।

कुल मिलाकर रिवॉल्वर रानी का निशाना लक्ष्य से चूक गया है।

बैनर : क्राउचिंग टाइगर मोशन पिक्चर्स, वेव सिनेमाज़ पोंटी चड्ढा प्रजेंट्स, मूविंग पिक्चर्स
निर्माता : राजू चड्ढा, राजीव मल्होत्रा, नितिन तेज आहूजा, तिग्मांशु धूलिया
निर्देशक : साई कबीर
संगीत : संजीव श्रीवास्तव
कलाकार : कंगना रनोट, वीर दास, पियूष मिश्रा, जाकिर हुसैन
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 12 मिनट 12 सेकंड
रेटिंग : 2/5

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