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लक : खेल मूसा का

हमें फॉलो करें लक : खेल मूसा का

समय ताम्रकर

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निर्माता : ढिलिन मेहता
निर्देशक : सोहम शाह
संगीत : सलीम-सुलैमान
कलाकार : संजय दत्त, इमरान खान, श्रुति हासन, मिथुन चक्रवर्ती, डैनी, रवि किशन, रति अग्निहोत्री, चित्रांशी
रेटिंग : 2/5


जिस तरह टीवी पर ‘बिग बॉस’ नुमा कुछ रियलिटी शो दिखाए जाते हैं, जिनमें लोगों को टॉस्क दिए जाते हैं और कौन शो में रहेगा कौन नहीं, इसका फैसला दर्शक करते हैं, उसी तरह का शो ‘लक’ फिल्म का मूसा भी आयोजित करता है। फर्क इतना है कि उसके खेल में भाग लेने वाले एक-एक कर मारे जाते हैं और जो भाग्यशाली होते हैं वो बच जाते हैं।

मूसा ‘लक’ का व्यापार करता है और भाग्यशाली लोगों को वो उठाकर अपने खेल का हिस्सा बना लेता है। लोग इस बात पर पैसा लगाते हैं कि कौन जिंदा बचेगा। मूसा लोगों की किस्मत से तरह-तरह से खेलता है।

हेलिकॉप्टर में वह सभी को बैठाकर हजारों फीट ऊपर ले जाता है और कूदने को कहता है। तीन पैराशूट ऐसे हैं, जो खुलेंगे नहीं। बदकिस्मत मारे जाते हैं और किस्मत वाले बच जाते हैं। जो बचे वे अगले राउंड में फिर जिंदगी और मौत के खेल में अपना लक आजमाते हैं।

निर्देशक और लेखक सोहम की कहानी का मूल विचार अच्छा है। उसमें नयापन है। वे टीवी पर दिखाने वाले शो को फिल्म में ले आए और उसे लार्जर देन लाइफ का रूप दे दिया, लेकिन कहानी का वे ठीक से विस्तार नहीं कर पाए वरना एक अच्छी फिल्म बनासकतथी

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मूसा (संजय दत्त) गैंबलिंग की दुनिया में बड़ा नाम है। लाखन (डैनी) उसके लिए दुनियाभर से भाग्यशाली लोगों को चुनने का काम करता है, जो उसके खेल का हिस्सा बनते हैं। सवाल यह है कि इसमें भाग्यशाली लोगों को चुनने की क्या जरूरत। किसी को भी चुना जा सकता है।

राम (इमरान खान), शॉर्टकट (चित्रांशी), मेजर (मिथुन चक्रवर्ती), एक कैदी (रवि किशन) और नताशा (श्रुति हासन) अलग-अलग कारणों से मूसा के खेल का हिस्सा हैं। ये कुछ लोगों के साथ अपना ‘लक’ आजमाते हैं।

ट्रेन सीक्वेंस के साथ फिल्म की बेहतरीन शुरुआत होती है। नए-नए किरदार कहानी में जुड़ते जाते हैं और कहानी आगे बढ़ती है। उम्मीद बँधती है कि एक अच्छी फिल्म देखने को मिलेगी, लेकिन जल्दी ही फिल्म अपनी दिशा खो बैठती है। मूसा इन लोगों के साथ जिंदगी और मौत के जो खेल खेलता है, वो इतने दिलचस्प नहीं हैं कि दर्शकों को बाँधकर रखें। एकरसता होने की वजह से फिल्म ठहरी हुई लगती है। रोमांस और इमोशन पैदा करने की कोशिश की गई है, लेकिन वो जबरदस्ती ठूँसे हुए और बनावटी लगते हैं।

फिल्म का अंत भी हास्यास्पद है। मूसा की अंतिम चुनौती में विजयी होकर राम 20 करोड़ रुपए जीत जाता है। इसके बावजूद वो मूसा के साथ एक और खेल खेलता है। क्यों? इसका कोई जवाब नहीं है। दोनों एक-दूसरे को गोली मार देते हैं। इसके बाद अस्पताल वाले दृश्य देखकर लेखकों की अक्ल पर हँसी आती है। श्रुति हासन के डबल रोल वाली बात का भी कोई मतलब नहीं है।

निर्देशक सोहम का सारा ध्यान फिल्म को स्टाइलिश लुक देने में रहा और इसमें कुछ हद तक वे कामयाब रहे। आँख पर पट्टी बाँधे 6 ट्रेनों के बीच पटरी पार करना, पानी के अंदर शार्क वाले दृश्य और अंत में ट्रेन वाला दृश्य अच्छे बन पड़े हैं।

मूसा जैसा रोल निभाने में संजय दत्त माहिर हैं। एक बार फिर कामयाब रहे हैं। इमरान खान के चेहरे पर पूरी फिल्म में एक जैसे भाव रहे हैं। चाहे वो माँ से बात कर रहे हों या प्रेमिका से या अपने दुश्मन से। मिथुन चक्रवर्ती ठीक-ठाक रहे।

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कलाकारों की भीड़ में रवि किशन और चित्रांशी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहे। श्रुति हासन ने अपना करियर शुरू करने के लिए गलत फिल्म का चयन किया है। उन्हें ज्यादा अवसर नहीं मिले। अभिनय भी उनका औसत दर्जे का रहा। डैनी प्रभावी रहे।

तकनीकी रूप से फिल्म सशक्त है और स्टंट सीन उल्लेखनीय हैं। संगीतकार के रूप में सलीम-सुलैमान निराश करते हैं। कुल मिलाकर ‘लक’ में कुछ रोमांचक दृश्य हैं, थोड़ा नयापन है, लेकिन पूरी फिल्म के रूप में ये निराश करती है।

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