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लम्हा : कश्मीर समस्या सी उलझी हुई

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समय ताम्रकर

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बैनर : जीएस एंटरटेनमेंट प्रा.लि.
निर्माता : बंटी वालिया, जसप्रीत सिंह वालिया
निर्देशक : राहुल ढोलकिया
संगीत : मिथुन
कलाकार : संजय दत्त, बिपाशा बसु, कुणाल कपूर, शेरनाज पटेल, अनुपम खेर, यशपाल शर्मा
* ए- सर्टिफिकेट * 1 घंटा 55 मिनट
रेटिंग : 1.5/5

वर्षों से चली आ रही कश्मीर समस्या अब तक हल नहीं हो पाई है। यह आग पता नहीं कब बुझेगी। निर्देशक राहुल ढोलकिया ने ‘लम्हा’ के जरिये बताया है कोई भी नहीं चाहता कि यह आग बुझे।

नेता, पुलिस, सेना, आतंकवादियों के अपने-अपने मतलब हैं इसलिए वे इस समस्या को जस का तस बनाए रखते हैं। सरकार इस समस्या से निपटने के लिए भारी भरकम राशि देती है, जिससे भ्रष्ट अफसरों को पैसा खाने का मौका मिलता है। नेता अपनी दुकान चलाते हैं। आतंकवादी और कश्मीर की आजादी का सपना दिखाने वाले लोग विदेशी मदद से अपनी जेबें भरते हैं।

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इन बातों को दिखाने के लिए जो ड्रामा लिखा (राघव धर, राहुल ढोलकिया) गया है वो बहुत बिखरा हुआ और बोरिंग है। बहुत सारी बातें स्पष्ट नहीं हो पाईं। नि:संदेह लेखक और निर्देशक ने एक अच्छी थीम का चुनाव किया, लेकिन वे अपनी बात को ठीक से नहीं रख पाए।

जब यह खबर आती है कि ऑर्मी, पुलिस, नेता बजाय शांति स्थापित करने के अशांति फैला रहे हैं तो विक्रम (संजय दत्त) नामक ऑफिसर को सीक्रेट मिशन पर भेजा जाता है ताकि वह उन लोगों को बेनकाब कर सके।

घाटी में विक्रम कदम रखता है और उसी दिन अलगाववादी नेता हाजी (अनुपम खेर) पर जानलेवा हमला होता है, लेकिन वह बच जाता है। कौन है इस विस्फोट के पीछे, यह जानने में विक्रम जुट जाता है। इस काम में उसकी मदद करती है अज़ीजा (बिपाशा बसु) जो हाजी की बेटी जैसी है। इस यात्रा में वे कई चेहरों को बेनकाब करते हैं।

स्क्रीनप्ले कुछ इस तरह लिखा गया है कि कई दृश्यों का मुख्‍य कहानी से कोई लेना-देना नहीं है। उदाहरण के लिए सीमा पर तैनात एक सैनिक इस बात से खफा है कि उसे मात्र सात हजार रुपए मिलते हैं। लंबे समय से वह घर नहीं जा पाया है। उसे खाना खुद बनाना पड़ता है। इस दृश्य को यदि कहानी से जोड़कर दिखाया जाता तो प्रभावी होता।

कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर यदि फिल्म बनाई जा रही है तो फिल्म वास्तविकता के निकट होना चाहिए, लेकिन इसको लेकर भी निर्देशक राहुल कन्फ्यूज नजर आए। बिपाशा और संजय दत्त जैसे स्टार्स का प्रभाव उन पर हो गया।

संजय दत्त से उन्होंने कुछ ऐसे कारनामे करवाए जो बॉलीवुड का हीरो करता है। साथ ही उसे ठीक से जस्टिफाई भी नहीं किया गया है। प्रस्तुतिकरण भी इतना बेजान है कि दर्शक फिल्म से जुड़ नहीं पाता।

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कैरेक्टर ठीक से नहीं लिखे गए हैं और इसका असर कलाकारों के अभिनय पर भी पड़ा है। किसी को समझ में नहीं आया कि वह क्या कर रहा है। संजय दत्त, बिपाशा बसु और अनुपम खेर का अभिनय औसत दर्जे का रहा। कुणाल कपूर निराश करते हैं। महेश मांजरेकर और यशपाल शर्मा का पूरी तरह उपयोग नहीं हो पाया।

फिल्म के गाने थीम के अनुरूप हैं, लेकिन इन्हें नहीं भी रखा जाता तो खास फर्क नहीं पड़ता। जेम्स फोल्ड्‍स ने कैमरे को ज्यादा ही शेक किया है, जिसकी जरूरत नहीं थी।

कुल मिलाकर ‘लम्हा’ निराश करती है।

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